मंथन
July 19, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • अधिक ⋮
    • ऑपरेशन सिंदूर
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • जनजातीय नायक
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

मंथन

by
Apr 6, 2000, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 06 Apr 2000 00:00:00

श्रीलंका, फिजी और हम…

द देवेन्द्र स्वरूप

इस अन्तद्र्वन्द्व की गहराई में प्रवेश किए बिना लिक्खाड़ों का एक वर्ग भारत को तुरन्त सैनिक हस्तक्षेप करने के लिए उकसा रहा है और उसमें विलम्ब के लिए भारत सरकार की आलोचना कर रहा है। यह वह वर्ग है, जिसने चाहे जो बहाना खोजकर भाजपानीत गठबंधन सरकार की आलोचना करने का बीड़ा उठा लिया है। वह 1987 में राजीव गांधी द्वारा भेजी गयी भारतीय शान्ति सेना के कटु अनुभवों का न स्मरण करना चाहता है, न उनका विश्लेषण करना। वह भूल जाता है कि उस समय राजीव गांधी की मध्यस्थता से जो समझौता हुआ था, उसका दोनों पक्षों ने मिलकर उल्लंघन किया। भारतीय सेना ने अपना खून तो बहाया ही, बदनामी भी मोल ली।

दूसरी बात जिसे ये लोग भूल जाते हैं कि इस गृहयुद्ध का एक पक्ष तमिल होने के कारण पूरे तमिल समाज, विशेषकर तमिलनाडु में उस पक्ष के लिए सहानुभूति की भावना है। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक मोर्चे के कुछ घटक जैसे-एम.डी.एम.के., पी.एम. के एवं डी.एम.के. तमिल भवनाओं की उपेक्षा नहीं कर सकते। यह सत्य है कि लिट्टे ने अपने आतंकवादी और हिंसक आचरण से इस सहानुभूति को गंवा दिया है। सबसे बड़ी तमिल पार्टी द्रमुक के अध्यक्ष करुणानिधि ने लिट्टे से सम्बंधविच्छेद की सार्वजनिक घोषणा कर दी है। लिट्टे ने जिस नृशंसता के साथ अनेक श्रेष्ठ तमिल नेताओं की हत्या की है, उसके कारण लिट्टे को समस्त तमिलों का प्रतिनिधि कदापि नहीं माना जा सकता। लिट्टे के माथे पर राजीव गांधी, जिन्हें लिट्टे को शस्त्र, धन और कूटनीतिक मदद देने का श्रेय दिया जाता है, की क्रूर हत्या का कलंक लगा हुआ है। लिट्टे की इस कृतघ्नता को भारत कैसे क्षमा कर सकता है? चौथे लिट्टे जिस तमिल ईलम अर्थात् पृथक तमिल राष्ट्र की बात करता है, वह भारत में तमिल पृथकतावाद को भड़काने और भारत की अखण्डता के लिए खतरा बन सकता है। फिर इसकी गारन्टी कौन देगा कि भारतीय सेना के श्रीलंका की भूमि पर पहुंचने के बाद पहले की तरह इस बार भी दोनों युद्धरत पक्ष एक नहीं हो जाएंगे?

इससे भी बड़ा खतरा यह है कि यदि हम श्रीलंका सरकार की मौखिक पुकार पर सैनिक हस्तक्षेप या मध्यस्थता के लिए दौड़ पड़े तो क्या हमारा यह उदाहरण कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप के लिए निमंत्रण नहीं बन जाएगा? इन सब खतरों के होते भी हम अपने पड़ोसी को गृहयुद्ध की आग में भस्म होते नहीं देख सकते। उसकी सहायता करना हमारा नैतिक कर्तव्य है। किन्तु इस गुरुतर कर्तव्य को निभाने के लिए पहली आवश्यकता है राष्ट्रीय हितों का मतैक्य। भारत सरकार इसी दिशा में फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाती दीख रही है।

लिट्टे पर पुरानी सरकारों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को जारी रखकर एवं उसकी तमिल ईलम की मांग को ठुकरा कर भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह लिट्टे को सब तमिलों का प्रतिनिधि मानने के बजाय उसे एक आतंकवादी संगठन मानती है। वह ईलम की मांग को मान्यता देकर न तो श्रीलंका की अखण्डता को नष्ट करना चाहेगी न भारत में पृथकतावाद को बढ़ावा देना। दूसरे, श्रीलंका में किसी प्रकार का हस्तक्षेप या मध्यस्थता की पहल करने से पूर्व वह एक ओर तो वि·श्व की महाशक्तियों, विशेषकर अमरीका की पूर्ण सहमति प्राप्त कर लेना, दूसरी ओर श्रीलंका की ओर से लिखित प्रार्थना प्राप्त करना चाहेगी। स्पष्ट ही, लिट्टे को अपनी सैनिक शक्ति का इतना अधिक अहंकार हो गया है कि उसे जाफना की विजय का पूर्ण विश्वास है, इसलिए वह भारत के हस्तक्षेप को अपनी विजय के मार्ग में बाधक समझ रहा है और भारत में उसके कुछ हित चिन्तक भी भारत सरकार को हतोत्साहित कर रहे हैं। पर, भारत सरकार ने यह घोषणा कर दी है कि वह श्रीलंका सरकार के सैनिकों को लिट्टे की घेराबन्दी से सुरक्षित बाहर निकालने के लिए पूरी तरह सन्नद्ध है। इसकी आवश्यकता तो तभी पड़ेगी जब लिट्टे का जाफना पर कब्जा हो जाए। किन्तु पिछले एक सप्ताह से श्रीलंका सरकार की सेना ने लिट्टे की गति को जिस प्रकार कुंठित कर दिया है, उससे लिट्टे की विजय की संभावना क्षीण हो गयी है। इसीलिए भारत सरकार ने दोनों पक्षों से युद्धविराम की अपील की है। इस सम्बंध में एम.डी.एम.के. के नेता वाईको का यह कथन बहुत अर्थपूर्ण है कि यदि भारत ने श्रीलंका के सैनिकों को जाफना में लिट्टे की घेरेबन्दी से सुरक्षित बाहर निकाल दिया तो श्रीलंका सरकार पिछली बार की तरह इस बार भी जाफना क्षेत्र की आर्थिक नाकाबन्दी कर देगी, जिसके कारण वहां की तमिल जनता भूखों मर जाएगी। घटनाचक्र इतनी तेजी से घूम रहा है कि यह कहना कठिन है कि इन पंक्तियों के पाठकों के हाथ में पहुंचने तक श्रीलंका का ऊंट किस करवट बैठेगा। स्थिति चाहे जो बने, निष्कर्ष एक ही है कि खून और इतिहास का रिश्ता हमें श्रीलंका से बांधे हुए है। उसका संकट, उसकी पीड़ा, हमारा संकट, हमारी पीड़ा है। इस संकट का हल युद्ध से नहीं, आपसी समझ और सहभाव से ही निकल सकता है।

श्रीलंका से हमारा भूगोल, रक्त और इतिहास का रिश्ता है तो प्रशांत महासागर में आस्ट्रेलिया के उस पार न्यूजीलैण्ड के उत्तर में स्थित फिजी द्वीप समूह से हमारा रिश्ता भूगोल से तनिक नहीं है, हां, ब्रिटिश उपनिवेशवादियों की कृपा से पिछले डेढ़ सौ साल से इतिहास और खून का रिश्ता बन गया है। इस समय फिजी की जनसंख्या का 45 प्रतिशत भाग भारतीय मूल का है। इन प्रवासी भारतीयों के पूर्वजों को अंग्रेज उपनिवेशवादी कुली बनाकर वहां ले गए थे किन्तु उन्होंने अपने खून को पसीना बनाकर फिजी को समृद्धि दी, उसे आधुनिक बनाया। आज उनकी यह समृद्धि और प्रगति ही उनके प्रति ईष्र्याजनित अभिशाप का कारण बन गयी है। फिजी के मूल निवासी या देशज लोग वहां की जनसंख्या का 51 प्रतिशत होते हुए भी पिछड़े और विभाजित हैं। उन्हें सरलता से समृद्ध भारतीयों के विरुद्ध भड़काया जा सकता है। मुट्ठी भर गोरे लोग उन्नीसवीं शताब्दी से ही फिजी की वन सम्पदा के अवैध व्यापार में लगे रहे हैं।

1970 में ब्रिटेन की दासता से मुक्त होने पर भारतीयों ने फिजी का संविधान बनाने में प्रमुख भूमिका निभायी। उन्होंने स्वयं अपने अधिकारों को देशज लोगों के पक्ष में त्याग दिया और मूल निवासियों को भूमि, परम्परा व संस्कृति के विषयों पर विशेषाधिकार संविधान में दे दिए। भारतीयों के पूर्ण सहयोग व समर्थन से उस समय तिमोची बवाडरा प्रधानमंत्री बने। किन्तु मेजर जनरल सितेवेनी राबुका ने 1987 में भारतीयों के विरुद्ध जनभावनाएं भड़का कर तिमोची का तख्ता पलटने की कोशिश की और अन्तत: उन्हें हटा कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया। उस समय भी भारतीयों को जान-माल की भारी हानि उठाना पड़ी थी। और उनके विरुद्ध हिंसा का नग्न प्रदर्शन किया गया था।

1999 में नए संविधान के अन्तर्गत भारतीय मूल के महेन्द्र चौधरी की बहुजातीय लेबर पार्टी लोकतांत्रिक चुनावों के माध्यम से पूर्ण बहुमत पाकर जीती। महेन्द्र चौधरी ने अपने 18 सदस्यीय मंत्रिमण्डल में 11 देशज सांसदों को मंत्री बनाया। फीजी के राष्ट्रपति पद पर भी एक देशज रातुसर कामिसेसे विराजमान हैं। फिजी की सेना में शत-प्रतिशत देशज लोग हैं। वहां के पुलिस बल में केवल एक तिहाई भारतीय मूल के लोग हैं। इस प्रकार फिजी का सत्ता तंत्र पूरी तरह देशज लोगों के हाथ में है। महेन्द्र चौधरी को प्रधानमंत्री बनने पर खाली खजाना, बढ़ती बेरोजगारी, बढ़ते अपराध आदि विरासत में पिछली राबुका सरकार से मिले। वे सब लोगों को साथ लेकर फिजी को इस संकट से उबारने में लगे हुए थे। उनकी लोकप्रियता बढ़ रही थी, किन्तु यह स्थिति सितेवेनी राबुका को असहाय थी। राबुका को फिजी की राजनीति का स्थायी खलनायक कहा जा सकता है। उन्होंने पहले प्रधानमंत्री तिमोची बवाडरा के विरुद्ध दो बार तख्ता पलट की कार्रवाई की, वे भारत विरोधी भावनाएं भड़काकर देशज लोगों का नेतृत्व पाने की कोशिश करते हैं। इस समय वे 40 सदस्यीय जनजातीय महापरिषद् के अध्यक्ष हैं। 19 मई शुक्रवार को फिजी की राजधानी सुवा में जो घटनाचक्र आरम्भ हुआ, उसके पीछे मुख्य षड्यंत्रकारी मस्तिष्क राबुका का ही दिखाई देता है।

करमचंद रामरखा, जो 1966 से 1982 तक फिजी के सांसद रहे हैं, के अनुसार 19 मई को जिस जार्ज स्पेईट के एके 47 बन्दूकों से लैस गिरोह ने संसद में घुसकर प्रधानमंत्री महेन्द्र चौधरी और उनके मंत्रिमण्डलीय सहयोगियों को बंधक बना लिया, वह गोरी नस्ल का है। उसका पिता साम स्पेईट इस समय फिजी की संसद का सदस्य है। जार्ज आस्ट्रेलिया का ग्रीन कार्डधारी है और पहले बिसबेन में रहता था। उसकी वास्तविक पत्नी और दो बच्चे अभी भी वहां रहते हैं। उन्हें छोड़कर जार्ज फीजी चला आया। यहां एक बीमा कम्पनी का मुख्य प्रशासक अधिकारी बन गया किन्तु आर्थिक घोटाले के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया। तब इसने लकड़ी का तस्कर व्यापार आरम्भ कर दिया और राबुका सरकार के हटने तक वह इस व्यापार में लिप्त था। अचानक वह एक शस्त्र गिरोह का सरगना बनकर सत्तापलट विद्रोह का नायक बन बैठा। किन्तु तब से अब तक के घटनाचक्र के अध्ययन से प्रतीत होता है कि जार्ज स्पेईट स्वयं नायक न होकर किसी बड़े षड्यंत्र का मुखौटा मात्र है।

जिस समय स्पेईट संसद में घुसकर बन्दूक की नोक पर लोकतंत्र की हत्या कर रहा था, उसी समय सुवा की सड़कों पर लगभग 7000 देशज लोगों की भीड़ भारतीयों की सम्पत्ति को लूट और जलाकर आतंक और भय का वातावरण पैदा कर रही थी। स्पेईट ने निर्वाचित प्रधानमंत्री महेन्द्र चौधरी और उनके कुछ मंत्रियों को बल प्रयोग व अपमानित करके त्यागपत्र देने के लिए विवश करने की कोशिश की किन्तु अभी तक महेन्द्र चौधरी ने आत्मसमर्पण नहीं किया है। देशज राष्ट्रपति रातु मारा ने अपनी प्रथम प्रतिक्रिया में इस घटना की निन्दा करने की औपचारिकता का निर्वाह करते हुए भी यह संकेत दे दिया कि वे संविधान में परिवर्तन करके नयी सरकार के गठन का स्वागत करेंगे। अर्थात् लोकतंत्रीय पद्धति से निर्वाचित महेन्द्र चौधरी को प्रधानमंत्री नहीं रहने देंगे। उधर, मेजर जनरल राबुका ने 40 सदस्यीय जनजातीय महापरिषद् की बैठक बुलाकर जार्ज स्पेईट से बंधकों को रिहा करने की अपील करने का नाटक किया, जिसे स्पेईट ने ठुकराना ही था। जिस समय जनजातीय महापरिषद् की बैठक राजधानी सुवा के बाहर चल रही थी, उसी समय देशज लोगों की उत्तेजित भीड़ ने सुवा में भारतीयों की सम्पत्ति को लूटने और जलाने का दूसरा चक्र शुरू कर दिया था। ग्रामीण क्षेत्रों के नकाबपोशधारी गिरोह अल्पसंख्यक भारतीयों की सम्पत्ति पर हमला करके आतंक का वातावरण पैदा कर रहे हैं जिस कारण भारतीयों ने स्वयं को घरों में बंद कर लिया है। एक प्रकार से फीजी की 45 प्रतिशत जनसंख्या बंधक बना ली गयी है। आतंक का शिकार बनी इस जनसंख्या का एकमात्र अपराध यह है कि वह भारतीय मूल की है। यह एक प्रकार से भारत के राष्ट्रीय स्वाभिमान को चुनौती है।

समूचा देश अन्याय और आतंक की इस लोकतंत्र विरोधी राजनीति से उद्वेलित है। महेन्द्र चौधरी हरियाणा के निवासी हैं। उनके परिवारजन अभी भी यहां रहते हैं। उद्विग्न ग्रामवासी हरियाणा के मुख्यमंत्री चौटाला और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिले। दिल्ली में प्रदर्शन भी हुए। स्वाभाविक ही, उनकी अपेक्षा है कि भारत सरकार हस्तक्षेप करे और फीजी में बसे भारतीय मूल के लोगों को इस आतंक राज्य से मुक्त करे। वहां लोकतंत्र को बहाल कराए।

किन्तु यहां भूगोल हमारे विरुद्ध कार्य कर रहा है। भारत सरकार चाहे भी तो सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती। उसे अन्तरराष्ट्रीय सहयोग जुटाना होगा। आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एलेक्जेंडर डोनवर ने एक वक्तव्य देकर इतना तो कहा है कि यदि फीजी में लोकतंत्र की बहाली नहीं हुई तो आस्ट्रेलिया उससे राजनीतिक सम्बंधविच्छेद कर लेगा और आर्थिक मदद के कार्यक्रमों को भी रद्द कर देगा। किन्तु निकटतम शक्ति होने के कारण आस्ट्रेलिया को शब्दों से आगे बढ़कर कुछ ठोस कार्रवाई भी करनी चाहिए। फीजी भी राष्ट्रकुल का सदस्य है। राष्ट्रकुल के महासचिव डान मैककिनन और संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्वी तिमोर स्थित प्रमुख अधिकारी सर्गियो विएराडिमेलों कोफी अन्नान का संदेश लेकर वहां पहुंच चुके हैं। उन्होंने राष्ट्रपति मारा से भेंट की और उनकी अनुमति लेकर बंधक प्रधानमंत्री महेन्द्र चौधरी से भी भेंट की। किन्तु उनके प्रयत्नों का अब तक कोई परिणाम नहीं निकला है। इधर भारत के विदेश सचिव ललित मानसिंह और अमरीका के विदेश उप सचिव थामस पिकरिंग के बीच भी इस स्थिति पर चर्चा हुई है। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस घटनाचक्र पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए विदेशमंत्री जसवंत सिंह को निर्देश दिया है कि वे फीजी में लोकतंत्र की हत्या को रोकने के लिए वि·श्व जनमत को जाग्रत करें और राष्ट्र संघ व राष्ट्रकुल को हस्तक्षेप के लिए प्रेरित करें। इस बीच मेजर जनरल राबुका की अध्यक्षता में जनजातीय महापरिषद् ने जार्ज स्पेईट को खुला समर्थन दे दिया है और नया संविधान बनाने का निश्चय प्रकट किया है। इस संविधान में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति आदि सर्वोच्च पद फीजी के गैर-देशज नागरिकों के लिए निषिद्ध कर दिए जाएंगे।

कैसी विडम्बना है कि एक ओर सूचना क्रान्ति का शोर हो रहा है,समूचे वि·श्व को एक गांव बताया जा रहा है दूसरी ओर पूरे वि·श्व की आंखों के सामने बन्दूक की नोक पर लोकतंत्र की हत्या की जा रही है, नस्ल के आधार पर किसी देश के 45 प्रतिशत नागरिकों को दूसरे दर्जे का नागरिक घोषित किया जा रहा है। और यह भारत देश है जिसका राजनीतिक नेतृत्व और बुद्धिजीवी वर्ग अपनी पूरी अक्ल अपने देश की सरकार को गिराने और लांछित करने में ही खर्च कर रहा है। वह भूल गया है कि संसार शक्ति की उपासना करता है और किसी राष्ट्र की शक्ति शस्त्रों से अधिक उसकी एकता में होती है। द (26 मई, 2000)

37

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

ज्ञान सभा 2025 : विकसित भारत हेतु शिक्षा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, केरल के कालड़ी में होगा आयोजन

सीबी गंज थाना

बरेली: खेत को बना दिया कब्रिस्तान, जुम्मा शाह ने बिना अनुमति दफनाया नाती का शव, जमीन के मालिक ने की थाने में शिकायत

प्रतीकात्मक चित्र

छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में छह नक्सली ढेर

पन्हाला दुर्ग

‘छत्रपति’ की दुर्ग धरोहर : सशक्त स्वराज्य के छ सशक्त शिल्पकार

जहां कोई न पहुंचे, वहां पहुंचेगा ‘INS निस्तार’ : जहाज नहीं, समंदर में चलती-फिरती रेस्क्यू यूनिवर्सिटी

जमानत मिलते ही करने लगा तस्करी : अमृतसर में पाकिस्तानी हथियार तस्करी मॉड्यूल का पर्दाफाश

Pahalgam terror attack

घुसपैठियों पर जारी रहेगी कार्रवाई, बंगाल में गरजे PM मोदी, बोले- TMC सरकार में अस्पताल तक महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं

अमृतसर में BSF ने पकड़े 6 पाकिस्तानी ड्रोन, 2.34 किलो हेरोइन बरामद

भारतीय वैज्ञानिकों की सफलता : पश्चिमी घाट में लाइकेन की नई प्रजाति ‘Allographa effusosoredica’ की खोज

डोनाल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका

डोनाल्ड ट्रंप को नसों की बीमारी, अमेरिकी राष्ट्रपति के पैरों में आने लगी सूजन

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • जीवनशैली
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies