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राज्य बना पर विकास के लिए
संघर्ष अभी बाकी है
— राम प्रकाश पैन्यूली
क्षेत्रीय विकास एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्व को समझते हुए केन्द्र सरकार ने उत्तराञ्चल राज्य गठन के अपने पुराने संकल्प को मूर्त रूप प्रदान कर दिया। राज्य मिल जाने से एक ओर अपार हर्ष की लहर हैं तो दूसरी ओर नवगठित राज्य की सरकार के समक्ष अनेक चुनौतियां हैं, जिन्हें प्राथमिकता के आधार पर सुलझाना उसके लिए कसौटी सिद्ध होगी।
प्रश्न है कि नवगठित राज्य सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं? भौगोलिक संरचना के अनुसार सम्पूर्ण उत्तराञ्चल के विकास को तीन भागों में नियोजित किया जा सकता है। उच्च हिमालय (साढ़े सात हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित ग्राम), मध्य हिमालय तथा तराई अथवा मैदानी भाग। उच्च हिमालय की ऊंचाइयों को विकास रश्मियां स्पर्श भी नहीं कर सकीं। दस किलोमीटर से अधिक पैदल दूरी वाले ग्रामों की दशा अत्यन्त दयनीय है। ये ग्रामवासी कठिनाई से भेड़ पालन, आलू तथा राजमा का उत्पादन करते हैं। ढुलाई व्यय के कारण उन्हें उत्पादित माल का लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता। इस वर्ष उत्तरकाशी के मोरी विकास खण्ड के सीमान्त लिवाडी, फिताड़ी ग्रामों के काश्तकारों को एक बोरी आलू के 50 रु0 दाम भी प्राप्त नहीं हुए। आखिर कैसे यहां का किसान इन कठिनाइयों में अपनी आजीविका चला सकेगा? कृषि उत्पादों में सुधार की आवश्यकता है। फल पट्टी तथा नकदी फसलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। लघु उद्योगों को संरक्षण एवं प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
उत्तराञ्चल में शिक्षा की दशा अत्यन्त चिन्ताजनक है। सुविधाजनक विद्यालयों में आवश्यकता से अधिक शिक्षक तैनात हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों के अभाव में विद्यालयों में ताले लटके हुए हैं। जिला केन्द्रों तथा मैदानी क्षेत्र के शिक्षार्थियों कोअच्छे विद्यालयों एवं कोचिंग की सुविधा प्राप्त है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के ये नौनिहाल साक्षर होने को भी अभिशप्त हैं। यही दशा दूरस्थ क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग की भी है। चिकित्सालयों में चिकित्साकर्मी या तो हैं नहीं, उपस्थित हैं तो दवा नहीं। सरकारी सेवकों के लिए ग्रामों में चक्रीय स्थानान्तरण नीति बनायी जानी चाहिए। उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य आवासीय व्यवस्था दी जानी चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र (उच्च हिमालय) के छात्रों को जिला मुख्यालयों में पढ़ने हेतु विशेष सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। प्रतीक्षारत प्रशिक्षित बेरोजगारों को तुरंत रोजगार उपलब्ध कराए जाएं।
उत्तराञ्चल के विकास की सबसे बड़ी बाधा वन संरक्षण अधिनियम 1980 है। इस अधिनियम के कारण सड़कों का विस्तार, विद्युतीकरण तथा पेयजल योजनाओं का निर्माण बाधित है। वन माफिया का जाल इस तरह फैला है कि जड़ी-बूटियों का बड़ी बेरहमी से निर्मूलन किया जा रहा है। ग्रामीण जनता इस कारण उदासीन है कि उन्हें इस अधिनियम के द्वारा उनके पारम्परिक अधिकारों से वंचित किया गया है। सरकार को इस दिशा में सार्थक पहल करनी होगी। लघु जल-विद्युत परियोजनाएं भी निजी क्षेत्र के माध्यम से शीघ्र प्रारम्भ की जानी चाहिए। तीर्थाटन तथा पर्यटन इस क्षेत्र के आर्थिक सुधार का एक सबल आधार हो सकता है। उत्तराञ्चल की लचर यात्रा व्यवस्था को वि·श्वसनीय बनाना होगा।
राजधानी कहां हो?- यह विषय सर्वाधिक चर्चाओं में है। उत्तराञ्चल की राजधानी किसी मध्य स्थल पर हो, इस पर सभी एकमत हैं। गैरसैण से रामनगर तथा गढ़वाल-कुमाऊं के मध्य बहने वाली रामगंगा का सान्निध्य राजधानी के लिए सर्वाधिक उपयुक्त स्थान हो सकता है। उत्तराञ्चल आन्दोलन के समय से ही गैरसैण को राजधानी बनाने की मांग की जा रही है। यह स्थान सुरम्य तथा पर्वतीय अंचल में स्थित है। स्व. चन्द्र सिंह गढ़वाली की स्मृतियां भी यह स्थान अपने आंचल में संजोये है। राजधानी के लिए विस्तृत भू-भाग तथा जल की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता आवश्यक है। दस कि.मी. दूर त्यूणी धारा से पर्याप्त मात्रा में जल की आपूर्ति असंभव है। पिंडर नदी से जलापूर्ति करना अत्यंत व्ययसाध्य कार्य होगा। राजधानी के लिए रेल, वायु सेवा आदि सुविधाएं आवश्यक होती हैं। नियोजकों को सभी पहलुओं पर ध्यान देना होगा। स्थायी राजधानी के लिए समाधानकारक निर्णय यह हो सकता है कि रामनगर और गैरसैण को संयुक्त रूप से विकसित किया जाए। गैरसैण से चौखुटिया तक के क्षेत्र को भी उपांग के रूप में विकसित करना चाहिए। चौखुटिया रामगंगा के तट पर बसा है, जहां जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। राजधानी का मुद्दा अत्यन्त संवेदनशील है, इस समस्या पर विशेषज्ञ समिति द्वारा सांगोपांग विचार करके निर्णय लेना चाहिए। जिन अवसरवादी भू- माफियाओं ने बड़ी मात्रा में भूमि खरीद ली है, वे इस विषय को अधिक ही विवादास्पद बना रहे हैं।
नवगठित सरकार को भ्रष्टाचार निर्मूलन के लिए भी सार्थक पहल करनी होगी। पारदर्शिता एवं मितव्ययिता स्पष्ट दिखाई पड़नी चाहिए। उत्तराञ्चलवासियों को यह अनुभूति होनी चाहिए कि लखनऊ के वातानुकूलित भवनों से चलने वाली राजाज्ञाओं की अपेक्षा देहरादून से चलने वाली राजाज्ञाएं प्रभावी एवं स्वाभाविक हैं। मोरी विकास खण्ड के लिवाडी, फिताड़ी घाट विकास खण्ड के सुनोला तथा कनौल, भिलंगना विकास खण्ड के गंगी गेवाली तथा पिंस्वाड़ जैसे ग्रामों के ग्रामीणों को जब तक विकास की सच्ची अनुभूति नहीं होगी, तब तक उत्तराञ्चल का गठन अधूरा होगा। एक वर्ष के कार्यकाल के लिए नवगठित सरकार को कुछ सीमित परिणामकारी योजनाओं पर पहल करनी चाहिए। पूर्ण मद्यनिषेध की घोषणा भी तभी सार्थक होगी जब सैनिक कैंटीनों से वितरित होने वाली शराब नियंत्रित होगी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाली अवैध शराब का निर्माण रोक दिया जाएगा। अन्यथा पूर्ण मद्यनिषेध की घोषणा शराब माफिया के लिए वरदान साबित होगी।
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