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हिन्दू महाकाव्य और सत्यान्वेषी-2

by
Dec 12, 1999, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Dec 1999 00:00:00

जेल में पढ़ी रामायण ने जीवन बदल दियाद हो.वे. शेषाद्रिधुर दक्षिणी प्रदेश केरल के नक्सलवादी आततायी का एक अन्य उदाहरण प्रस्तुत है। एक कट्टर नक्सलवादी अरैकंडी अच्युतन माक्र्सवादी दर्शन के तहत हिंसा, हत्या, सरकारी भवनों को जला देने आदि के बल पर सरकार को उखाड़ फेंकने की पद्धति में गहरी आस्था रखता था। उसका गुट इस प्रकार के अनेक कृत्यों में लिप्त था। उनका पहला बड़ा हमला कण्णनौर जिले के तेल्लीशेरी स्थित पुलिस थाने पर किया था। वायनाड जिले के अन्तर्गत पुलपुल्ली में अगला हमला किया, जिसमें उन्होंने एक पुलिस के जवान को मार दिया। इस लोमहर्षक कांड के बाद अच्युतन पुलिस के जाल में फंस गया और उसे आजीवन कारावास की सजा मिली। जेल में काफी वर्ष रहने के बाद उसे छोड़ दिया गया। इस समय वह एक निवृत्त जीवन जी रहा है। आज उसका साम्यवाद, नक्सलवाद आदि से मोह भंग हो चुका है।जब रा.स्व. संघ के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता उनके पास गए और उनसे पूछा कि आखिर उन्होंने अपनी पूर्व की प्रतिबद्धताओं को तिलांजलि कैसे दे दी, तो अच्युतन ने उन परिस्थितियों का वर्णन किया जो उसके अन्त:करण को पूरी तरह बदल देने में निर्णायक सिद्ध हुईं। उसने बताया, “जब मैं जेल में था तो मैंने जेल अधीक्षक से अपने लिए कुछ कम्युनिस्ट साहित्य को बाहर से मंगाने का आग्रह किया। चूंकि मैं घोर माक्र्सवादी था और जेल के पुस्तकालय में माक्र्सवाद से सम्बंधित एक भी पुस्तक नहीं थी। बहरहाल, जेल अधीक्षक ने अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए मुझे बताया कि उसे इस प्रकार के सरकार-विरोधी साहित्य को लाने की आज्ञा नहीं है। तब फिर अपना समय बिताने के लिए मैंने पुस्तकालय में जो भी पुस्तक उपलब्ध थी, उन्हें ही पढ़ना शुरू कर दिया। उसी दौरान मेरी नजर रामायण पर पड़ी तो मैंने उसे हल्के-फुल्के अंदाज में पढ़ना शुरू कर दिया, पर जल्दी ही मुझे उसमें रस आने लगा। धीरे-धीरे मेरा साक्षात्कार रामायण के चरित्रों के ऐसे प्रेरक विचारों, भावनाओं और अनुकरणीय कृत्यों से हुआ कि मैं भीतर ही भीतर अनजाने में स्वयं को बदलने में लग गया। जिस समय मेरी सजा खत्म हुई और मुझे छोड़ा गया तो मेरा जीवन बिल्कुल ही बदल चुका था। मैं एक कट्टर माक्र्सवादी से हिन्दू धर्म का समर्पित अनुयायी बन चुका था।19

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