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जज ने भरे कोर्ट में वकील को टोका, बोले- ‘मीलॉर्ड’ नहीं, यह कहकर बुलाएं…

भारत की अदालतों में जजों को ‘मीलॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर बुलाने की पुरानी परंपरा अब सवालों में है। कई जजों ने कहा है कि यह अंग्रेजों के समय की परंपरा है और अब इसकी जरूरत नहीं है।

by Mahak Singh
Jul 21, 2025, 03:24 pm IST
in भारत
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भारत की अदालतों में वकीलों द्वारा न्यायाधीशों को ‘मीलॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर संबोधित करने की पुरानी परंपरा अब सवालों के घेरे में है। समय-समय पर देश की विभिन्न अदालतों में खुद न्यायाधीशों ने इस पर आपत्ति जताई है। हाल ही में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने एक मामले की सुनवाई के दौरान वकील को टोका, जब उसने उन्हें ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर संबोधित किया। चीफ जस्टिस ने कहा, “नहीं, नहीं। सारे लॉर्डशिप तो 1947 में ही इस देश को छोड़कर चले गए थे। हमें ‘सर’ या ‘योर ऑनर’ कहिए, बस इतना ही काफी है।” इस टिप्पणी से साफ है कि अब न्यायपालिका में भी अंग्रेजों के समय की बची-खुची औपचारिकताओं को समाप्त करने की सोच बन रही है।

गुलामी की परंपरा का प्रतीक- ‘मीलॉर्ड’ और ‘योर लॉर्डशिप’ जैसे शब्द ब्रिटिश राज की न्याय व्यवस्था से जुड़ी औपचारिकताएं हैं। जब भारत गुलाम था, तब अंग्रेज न्यायाधीशों को इसी तरह संबोधित किया जाता था। आजादी के इतने वर्षों बाद भी यह परंपरा अदालतों में जारी है, जिससे कई लोग असहज महसूस करते हैं।

साल 2011 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस विषय पर एक ठोस कदम उठाया था। उन्होंने अपने सदस्यों से अनुरोध किया कि वे जजों को ‘सर’ कहें और ‘मीलॉर्ड’ जैसे संबोधन छोड़ दें। उन्होंने इसे गुलामी का प्रतीक बताया और कहा कि वकीलों को अब आज़ाद भारत की भावना के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए। यहां तक कि निर्देशों की अवहेलना करने पर कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई थी। यह कोई पहली बार नहीं है जब किसी न्यायाधीश ने इस परंपरा पर सवाल उठाया हो। मार्च 2021 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस अरुण कुमार त्यागी ने कहा था कि वे नहीं चाहते कि उन्हें ‘मीलॉर्ड’ या ‘योर लॉर्डशिप’ कहकर बुलाया जाए। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में भी यह मुद्दा उठ चुका है। साल 2014 में, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने स्पष्ट किया था कि इस तरह के संबोधन अनिवार्य नहीं हैं। बेंच ने कहा था, “हमने कब कहा कि ये जरूरी है? बस हमें सम्मान के साथ संबोधित करें, यही पर्याप्त है।” इससे यह साफ होता है कि खुद न्यायाधीश भी चाहते हैं कि अदालतों में अनावश्यक औपचारिकता से बचा जाए और एक अधिक भारतीय, सहज और सम्मानजनक माहौल बने।

वकीलों की अलग-अलग राय- सभी वकील इस बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। कुछ का मानना है कि यह परंपरा न्यायपालिका का सम्मान बनाए रखने का तरीका है। वहीं, कुछ वकील इसे पुराने समय की गुलामी और अधीनता का प्रतीक मानते हैं और बदलाव की जरूरत महसूस करते हैं।

Topics: ‘मीलॉर्ड’‘योर लॉर्डशिप’Punjab and Haryana High Courtjudiciaryपंजाब और हरियाणा हाईकोर्टब्रिटिश न्याय व्यवस्थाBritish judicial system
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