भारत के उत्तर पूर्व से सटे एक अन्य कट्टर इस्लामी देश, बांग्लादेश में दंगे—फसाद मचने की आहट सुनाई दे रही है। आज का दिन उस देश में एक बार फिर आंदोलनों और आगजनी की शुरुआत देखने को मजबूर किया जा सकता है। मजहबी उन्मादियों की अराजकता चरम पर है, लेकिन मुख्य सलाहकार का उन पर कोई नियंत्रण नहीं दिख रहा है। तिस पर सेना प्रमुख का यह बयान भी आया है कि आम चुनाव इसी साल दिसम्बर में करा लिए जाएं तभी देश पटरी पर आ सकता है। देश की कानून व्यवस्था राजनीतिक दलों की कठपुतली बनी पुलिस नहीं संभाल पा रही है इसलिए सेना ने इसकी कमान संभाली है इससे भी मजहबी उन्मादियों में आक्रोश है। बहुत संभव है कि आज की नमाज के बाद, उन्मादियों की भीड़ मस्जिदों से निकल कर सड़कों पर उग्र प्रदर्शन करने उतर आए।
इस्लामवादियों की कठपुतली बन चुके अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस स्थितियों को संभालने में नाकाम साबित हो चुके हैं। चारों तरफ से दुत्कार सुन रहे यूनुस ने आखिरकार धमकी दे दी है कि ऐसे ही सब चला तो वह कुर्सी से हट जाएंगे। इन्हीं सब वजहों से विभिन्न रंगों व मिजाज के गुटों में जोर आजमाइश के लिए ढाका को जड़ बना देने के लिए उग्र प्रदर्शनों की आहट सुनाई देने लगी है।
दरअसल यूनुस ने त्यागपत्र देकर कुर्सी छोड़ने की धमकी बांग्लादेश सेना प्रमुख जनरल वकारुज्जमां के कल के कड़े शब्द सुनने के बाद दी है। सैन्य अधिकारियों के सामने भाषण देते हुए सेना प्रमुख ने साफ कहा है कि इस साल दिसम्बर तक आम चुनाव करा लिए जाएं। उधर बांग्लादेश की कट्टरपंथी पार्टी बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी यानी ने भी मांग की है कि चुनाव जल्दी कराए जाएं। पूर्व प्रधानमंत्री और निवर्तमान प्रधानमंत्री की कट्टर विरोधी खालिदा जिया की पार्टी के लोग अब ‘बैकडोर’ से सत्ता पर हुक्म चलाने की बजाय खुद सत्ता में आने को आतुर हैं क्योंकि अब वह देश पूरी तरह इस्लामवादियों के हाथों में पहुंचाया जा चुका है। दूसरे, वहां आईएसआई की शरारतें शुरू हो चुकी हैं। आईएसआई उसे अपनी भारत विरोध हरकतों के लांचपैड की तरह इस्तेमाल करने को बेचैन दिखाई देती है।

खालिदा जिया की पार्टी बीएनपी यूनुस की अंतरिम सरकार में मौजूद दो मंत्रियों या कहें ‘सलाहकारों’ तथा ताजा कुर्सी पर बैठाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से भी खार खाए हुए और उनको बाहर का रास्ता दिखाने की जिद पर अड़ी है।
ऐसे कई पहलू हैं जो बांग्लादेश में आज भीतर ही भीतर धधक रहे हैं। इसीलिए आसार बने हैं कि एक बार फिर से ढाका उग्र प्रदर्शनों का गवाह बन सकता है। हाल ही में बनाई गई नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के छात्रों ने देश के युवाओं और कट्टरपंथी तत्वों से सड़कों पर उतरने को कहा है। सोशल मीडिया पर कई पोस्ट चल रही हैं जो आज जुमे की नमाज के बाद मुल्ला—मौलवियों को मस्जिदों से सीधे सड़क पर पहुंचने को कह रही हैं। आम लोगों का भी कहा जा रहा है कि प्रदर्शनों में मौजूद होकर अपने ‘मजहब की शान बढ़ाएं’। यह एनसीपी एक प्रकार से यूनुस को कुर्सी पर बनाए रखने में रुचि दिखा रही है। बांग्लादेश की सबसे बड़ी कट्टरपंथी राजनीतिक पार्टी जमाते इस्लामी इस पार्टी के पीछे मानी जा रही है।
बांग्लादेश की मजहबी राजनीति के जानकारों का मानना है कि यूनुस ने त्यागपत्र देने की धमकी भी इन्हीं मजहबी तत्वों के कहने पर दी है जिससे सेना प्रमुख पर दबाव पड़े। लोग सड़कों पर उतरकर वकारुज्जमां को हटाने की मांग करें। मजहबी उन्मादी दल नहीं चाहते हैं कि चुनाव के बाद कोई चुनी सरकार आए और देश में चल रही मजहबी मनमानी पर किसी प्रकार की लगाम लगाने की कोशिश करे। इसलिए यूनुस जैसे ढुलमुल व्यक्ति का कुर्सी पर बने रहना उनके लिए आवश्यक जान पड़ता है।
अब सवाल है कि अगर बांग्लादेश के सेना प्रमुख के विरुद्ध कोई हिंसक आंदोलन भड़काया जाता है तो वकारुज्जमां क्या रास्ता अपनाएंगे। कारण यह कि उन्हें भी सख्त तेवरों वाला फौजी माना जाता है। क्या पाकिस्तान की राजनीति की तर्ज पर वहां कोई तख्तापलट देखने में आ सकता है? अथवा क्या यूनुस सेना से टकराव की स्थिति में बने रहकर सत्ता में बने रह सकते हैं? क्या जमाते इस्लामी उस इस्लामवादी देश में परोक्ष रूप से अपना मजहबी एजेंडा चलाते रहने में कामयाब रहेगी?
प्रकट तौर पर तो कट्टरपंथी बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी ने चुनाव कराने की अपनी मांग और तेज कर दी है। उसकी धुर विरोधी शेख हसीना की अवामी पार्टी को कथित साजिश के तहत चुनाव लड़ने से अमान्य कर ही दिया गया है तो अब बीएनपी को कुर्सी तक की अपनी राह आसान दिख रही है। बीएनपी ने सरकार के जिन दो सलाहकारों को कुर्सी से हटाने की मांग की है वे हैं महफूज आलम और आसिफ महमूद शोजिब भुइयां। इनके अलावा वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर्रहमान को भी हटाने की मांग कर रही है। उसके अनुसार इनसे सरकार की सूरत भद्दी दिख रही है।
कुल मिलाकर बांग्लादेश में एक बार फिर, भारत के पश्चिमी पड़ोसी जिन्ना के देश की तरह राजनीतिक उठापटक बढ़ती जा रही है। सेना प्रमुख का इस साल दिसंबर तक चुनाव कराने की स्पष्ट मांग ने आग में कैरोसीन का तेल डाल दिया है। वे चाहते हैं कि साल 2026 नई सरकार के तहत शुरू हो। वे नहीं चाहते कि देश हिंसा की गर्त में पड़ा रहे। यूनुस इस्लामवादी एजेंडे पर चलते हुए सहयोग करने के मूड में नहीं हैं। उनकी इस्तीफे की धमकी के पीछे सेना प्रमुख को खलनायक जैसा दिखाकर अपना हित साधने के अलावा और कुछ नहीं है। कहना न होगा, बांग्लादेश में इन दिनों स्थिति बेहद संवेदनशील है। आज का दिन किस करवट बैठेगा, उससे आगे की राह कुछ साफ हो पाएगी।
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