नई दिल्ली । पाञ्चजन्य की 78वीं वर्षगांठ पर दिल्ली के “द अशोक होटल” में पाञ्चजन्य बात भारत की कार्यक्रम के तहत अष्टयाम कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर छठे सत्र में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने “भारत और विश्व” विषय पर पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर के साथ संवाद किया। इस सत्र में भारतीय दृष्टि और वैश्विक करुणा से जुड़े मुद्दों पर चर्चा हुई। प्रस्तुत है उनके बीच हुए संवाद का विस्तृत विवरण।
प्रश्न : आप पहले ऐसे नोबेल शांति पुरस्कार विजेता हैं, जिनकी जन्मभूमि, कर्मभूमि और कर्मक्षेत्र सभी भारत में हैं। नोबेल शांति पुरस्कार के फ्रेमवर्क को आप किस दृष्टिकोण से देखते हैं, और क्या इसमें भारतीय मूल्यों की झलक दिखाई देती है?
उत्तर : कैलाश सत्यार्थी –
हमारे यहां वैश्विक दृष्टि और करुणा की जो अवधारणा है, वह पाश्चात्य दृष्टि से काफी अलग और गहरी है। हमारे ऋषियों ने हजारों साल पहले कहा था कि सारा संसार एक घोंसले की तरह है। जिस तरह चिड़िया अपने घोंसले में बच्चों का पालन करती है और उन्हें स्वतंत्र रूप से उड़ने के लिए तैयार करती है, वैसा ही भाव हमारी संस्कृति में है। यह करुणा और समर्पण का भाव है, जिसे हमें किसी पाश्चात्य विचारधारा से सीखने की आवश्यकता नहीं है।
हमारी संस्कृति में वसुधैव कुटुंबकम् का भाव गहराई से व्याप्त है। यह सोच कि “अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्।” बहुत छोटे दिल-दिमाग वाले लोग ही भेदभाव करते हैं। उदारचरित लोगों के लिए पूरी दुनिया एक परिवार है। यह करुणा भारतीय दृष्टिकोण से निकलती है।
रामचरितमानस में भी करुणा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। उदाहरण के लिए, जब सीता जी ने पहली बार भगवान राम को देखा, तो उन्होंने कहा, “करुणा निधान सुजान सील स्नेह जानत रघुराई।” राम की पहचान उनकी करुणा और सहृदयता से हुई। यह करुणा भारतीय संस्कृति की जड़ है और यही हमारी वैश्विक दृष्टि का आधार है।
प्रश्न : FCRA कानून और विदेशी फंडिंग से जुड़े मुद्दों पर आपकी क्या राय है? क्या यह कानून आवश्यक था, और क्या यह सही दिशा में है?
उत्तर : कैलाश सत्यार्थी –
जब मैंने बच्चों की बंधुआ मजदूरी और गुलामी को खत्म करने के लिए काम शुरू किया, तो शुरुआती दिनों में विदेशी फंडिंग के माध्यम से आने वाले पैसों के पीछे छिपे एजेंडे को समझना मुश्किल था। धीरे-धीरे मुझे यह एहसास हुआ कि कुछ विदेशी संस्थाएं अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भारत में फंडिंग कर रही थीं।
FCRA (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) का उद्देश्य ऐसे फंडिंग नेटवर्क को नियंत्रित करना है जो हिंसा, उग्रवाद, और अलगाववाद को बढ़ावा देते हैं। मैंने देखा कि पर्यावरण और अध्ययन के नाम पर भी कई बार फंडिंग होती थी, जिसका मकसद भारतीय समाज और संस्कृति को नुकसान पहुंचाना था।
यह सरकार की जिम्मेदारी है कि देश की अखंडता और सुरक्षा के लिए ऐसे फंडिंग नेटवर्क पर सख्त नियंत्रण रखे। लोकतंत्र में आवाज उठाना ज़रूरी है, लेकिन राष्ट्र के खिलाफ काम करने वालों को माफ नहीं किया जाना चाहिए।
प्रश्न: आपके पुराने मित्र और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर चुप क्यों हैं?
उत्तर : कैलाश सत्यार्थी –
यह सच है कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार चिंताजनक हैं। मैंने व्यक्तिगत रूप से मोहम्मद यूनुस साहब को इन मुद्दों पर कदम उठाने के लिए कहा है। उन्हें कई बार पत्र भी लिखा, लेकिन दुर्भाग्यवश कोई जवाब नहीं मिला।
बांग्लादेश की सरकार और वहां की राजनीति में कई अंतरराष्ट्रीय ताकतें शामिल हैं, जो भारत को कमजोर करने के लिए काम कर रही हैं। लेकिन यह कहना गलत होगा कि बांग्लादेश का पूरा समाज भारत विरोधी या हिंदू विरोधी है। वहां कई ऐसे लोग हैं जो भारत और हिंदुओं के समर्थन में खड़े हैं।
प्रश्न: बाल अधिकारों के मुद्दे पर आप भारत और विश्व की नीतियों को कैसे अलग पाते हैं?
उत्तर : कैलाश सत्यार्थी –
भारत में बाल अधिकारों को लेकर हाल के वर्षों में काफी प्रगति हुई है। हालांकि, चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। जहां एक तरफ भारत में सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बाल श्रम उन्मूलन के लिए कई पहल की हैं, वहीं वैश्विक स्तर पर इन मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए हमें और अधिक काम करने की आवश्यकता है।
भारत में बच्चों के अधिकारों के लिए किए गए प्रयास अब वैश्विक आंदोलनों का हिस्सा बन गए हैं। ग्लोबल कैंपेन फॉर एजुकेशन और ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर जैसे आंदोलन भारत की धरती से ही जन्मे हैं और आज 150 से अधिक देशों में इनका प्रभाव है।
कैलाश सत्यार्थी ने पाञ्चजन्य के इस सत्र में भारत की करुणा, वैश्विक दृष्टि, और बाल अधिकारों पर जोर दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की करुणा आधारित सोच ही उसे विश्व में अलग स्थान दिलाती है। साथ ही, FCRA जैसे कानूनों की प्रासंगिकता और बांग्लादेश में हो रहे अत्याचारों पर भी अपने विचार रखे।
उनकी यह बात कि “करुणा न केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा है, बल्कि वैश्विक सोच का आधार भी बन सकती है,” भारत के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है।
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