बीज की मात्रा : पनीरी दूारा बिजाई के लिए 800 ग्राम प्रति एकड़ और सीधी बिजाई के लिए 2.0 से 2.5 किलो
प्रति एकड़ बीज चाहिए।
बिजाई का समय: कंगनी की बिजाई अप्रैल से जुलाई के बीच कभी भी की जा सकती है। कंगनी की फसल का कद 2.5 से 3 फुट तक हो सकता है और ये पकने के लिए 80 से 100 दि नों का समय लेती है। कंगनी के दाने का उत्पादन 6-7 क्विंटल प्रति एकड़ होता है और 8-16 क्विंटल चारा मिलता है।
कंगनी का बीज बिजाई से पहले 12 घंटे के लिए पानी और कच्चे दूध के मिश्रण में भिगोकर रखें। 1 लीटर पानीमेँ देसी गाय का एक गिलास ताजा दूध (बिना उबलाहुआ) मिलाएं और इसमें कंगनी का बीज भिगो कर रखें। 10-12 घंटे भिगोने के बाद बीज के ऊपर छानी हुई राख लगा कर उसको सुखा लो ओर फिर बिजाई करो।
पनीरी की बिजाई का तरीका : एक एकड़ की पनीरी एक मरला (16.5×16.5) फीट जगह में बीजे। जमीन की जुताई करके सुहागा लगा कर समतल कर लें। जमीन उँची नीची ना हो। लगभग 10 किलो बारीक पुरानी रूड़ी की खाद अथवा केंचुआ खाद को पनीरी वाली क्यारी में बिजाई के समय मिट्टी में मिला लो। अब इसमें 800 ग्राम बीज को दो बार छाटा दें और तांगली या पंजे के साथ बीज को ऊपर की मिट्टी में मिला दें। अगर संभव हो तो क्यारी की भूसे/पराली के साथ मल्चिंग कर दे और पानी लगा दे। 3-4 दिन बाद जब बीज हरा हो जाए तो शामके समय भूसे/पराली की तह हटा दे। 20-25 दि नों में पनीरी खेत में लगा ने के लिए तैयार हो जाती है।
पनीरी को 2 तरीकों से खेत में लगाया जा सकता है:
1) पलेवा करने के बाद जब जमीन वत्तर आ जाए तो हलचला कर, सुहागा लगाकर जमीन को समतल कर लें। अब 1-1 कनाल की क्यारी बना कर खेत में पानी भर दें। जब खेत पानी सोख लें तब उसमें कंगनी की पनीरी शाम के समय लाइनों में लगाए। लाइन से लाईन की दूरी डेढ़ फुट और पौधे से पौधे की दूरी 1 फुट रखें।
2) बेड मेकर के साथ 2 फुट चौड़ाई वाले बैड तैयार करो। खालियों में पानी लगाओ और शाम के समय पनीरी को 1-1 फुट की दूरी पर खाली के किनारे से 6 इंच बैड के अंदर की तरफ लगाएं। अगर संभव हो तो बैड के ऊपर सुखा भूसे/पराली के साथ मल्चिंग करें।
सीधी बिजाई के माध्यम से कंगनी की काश्त: 2.0 से 2.5 किलो बीज को 12 घंटे दूध और पानी के घोल में भिगो कर राख में अच्छी तरह से मिलाकर सुखाने के बाद अच्छी तरह से सिंचित नमी पूर्ण जमीन में हैपी सीडर या सीड ड्रिल के साथ बिजाई की जा सकती है। खेत वहाई के बाद उस में तीन बार भारी सुहागा लगाओ ताकि मिट्टी के भीतर की हवा बाहर निकल जाए। इससे बीज का पुंगार अच्छा होता है। लाइन से लाइन की दूरी डेढ़ से दो फुट रखो। पौधे से पौधे 10 सेंटी सें मीटर और बीज की गहराई 2-3 सेंटी सें मीटर रखो।
नोट: सीधी बिजाई करते समय बीज ज्यादा घना ना रहे, इस लिए बीज के अंदर भूना हुआ बाजरा या चावल की किणकी मिलाई जा सकती है।
गुड़ाई: कंगनी में से खरपतवार खत्म करने के लिए त्रिपाली, कसिये या खुरखुपी के इस्तेमा ते ल से कम से कम दो गुड़ाई करनी जरूरी है।
पानी: मूल अनाजों की काश्त के लिए कोशिश करो की इन्हें कम से कम पानी लगाकर पकाया जाए। बारिश के मौसम को ध्यान में रखकर और मिट्टी की नमी को देखकर इन्हें 1 से 2 सिंचाई की ही जरूरत होती है। सिंचाई करते समय ते खेत में 200 लीटर प्रति एकड़ गुड़ जल अमृत या वेस्ट डीकॅम्पोसर का घोल छोड़े।
कीट और बिमारी प्रबंधन: कंगनी को आमतौर पर कोई कीट और रोग नहीं लगता। जितना कम सिंचाई के पानी का उपयोग होगा उतने ही कीट या रोग आने की संभावना भी कम हो जाती है और पौधे की जड़े भी उतनी ही मजबूतबू होती हैं और फसल गिरती नहीं। कम पानी लगाने से दाना अच्छा पकता है और उसका वजन भी बढ़ता है। छिलका पतला रहता है जिससे प्रति क्वांटिल दाने का भार ज्यादा और छिलके का वजन कम रहता है।
कटाई: जब कंगनी की बालियां हरे रंग से पक कर पीले-भूरे रंग की हो जाएं तब फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है। कंगनी के पौधे से केवल बालियां पकने के बाद पूरा पौधा भी जमीन से काटा जा सकता है। दानों को थ्रैशर थ्रै की मदद से नाड़ से अलग किया जा सकता है। जब कंगनी के बाल (छिटे) पकने के समय छोटी लाल-भूरे रंग की चिड़ियाँ उसके दाने खाती हैं अत: रखवाली की भी जरूरत पड़ सकती है।
फसल चक्र: सरसों-साठी मूंगी -कंगनी, साठी मूंगी-कंगनी- हरे छोले, सरसों-कंगनी-सावन की मूंगी, साठी मूंगी-कंगनी-जों, कंगनी-मक्की (RELAY CROP) (बीच में बिजाई)।
कंगनी की फसल 100 दिन में पक्क जाती है। इसलिए बिजाई के समय इस बात का ध्यान रखिये कि अगर बिजाई अप्रैल प्रै में कर रहें हैं तो कंगनी को ज्यादा पानी लगाने की जरूरत पड़ सकती है और खरपतवार की समस्या भी बढ़ सकती है और ये फसल जुलाई में पकेगी। अगर बिजाई मई में करते हैं तो अगस्त में पकेगी। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि फसल पकने के समय बारिश ना शुरूशु हो जाए और अगली फसल कौनसी लगानी है इसी हिसाब से कंगनी की बिजाई का समय निर्धारित करें।
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