आज पूरा देश राममय है, रामभक्ति में सराबोर है। राम सामाजिक एकता की चेतना हैं, जीवन की अवधारणा हैं और आदर्श की पराकाष्ठा हैं। राम राज्य सुशासन के चार स्तंभों पर खड़ा था जहां सम्मान से, बिना भय के हर कोई सिर ऊंचा कर चल सके, जहाँ हर नागरिक के साथ समान व्यवहार हो, जहाँ हर कमजोर की सुरक्षा हो और जहां धर्म यानि कर्तव्य सर्वोपरि हो।
वर्तमान में देश के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में हम इन्हीं चारों स्तंभों को चरितार्थ होता हुआ देख रहे हैं। अयोध्या में रामलला के विराजमान होने से संपूर्ण विश्व में भारत की प्राचीन गौरवशाली धरोहर के प्रति सम्मान का नया भाव उभरा है। विश्व इस नए भारत की ओर आशा एवं सम्मान के भाव से देख रहा है। यह अचानक जादू से नहीं हुआ बल्कि इसके पीछे कठोर परिश्रम है। पिछले 10 वर्षों में हमने इस परिवर्तन को बहुत ही निकट से अनुभव किया है। मैं अभिभूत,आह्लादित और भाव-विभोर हूँ। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी और न ही सोचा नहीं था कि अपने इस जीवन काल में परमपिता की मुझ पर इतनी अहैतु कृपा होगी कि पुण्य नगरी अयोध्या में मैं अपने नयनों से वह नयनाभिराम दृश्य देख पाऊंगा जब मेरे आराध्य रामलला अपने मंदिर में अपूर्व ऐश्वर्य और अलौकिक दिव्यता के साथ विराजमान होंगे। 500 वर्षों के कठिन संघर्ष, करोड़ों लोगों के समर्पण और लाखों लोगों के आत्म-बलिदान के पश्चात 22 जनवरी 2024 को वह शुभ घड़ी आ ही गई जब रामलला अपने घर में पधारे। ये रामलला के बाल रूप विग्रह रूप की मात्र एक प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम नहीं था अपितु भारत और महान भारतीय संस्कृति की अस्मिता, उसके स्वाभिमान और गौरव की पुनर्स्थापना का अतुलनीय दिवस था। और, यह ईश्वरीय विधान ही है कि उन्होंने इसके लिए अपने एक ऐसे तपस्वी भक्त का चयन किया जो आधुनिक भारत की सांस्कृतिक पुनर्चेतना का निर्विवाद अग्रदूत है। उनके व्यक्तित्व में समर्थ शासक, विलक्षण प्रशासक और निरभिमानी उपासक निरन्तर दृष्टिगोचर रहता है।
दिन-रात देश के जन-जन के कल्याण के बारे में चिंतन करना, निरंतर देश के लिए अनन्य समर्पण भाव से काम करना और अनथक अविश्राम अद्भुत जीवन। ये प्रभु श्रीराम जी की ही शक्ति सामर्थ्य तो है जिसने एक ऐसे राजर्षि का चुनाव किया जो बिना थके, बिना रुके न केवल जनता-जनार्दन के लिए जीता है, देश के लिए जीता है बल्कि इस देश की महान दिव्य परंपराओं और सांस्कृतिक चेतना को भी जाज्वल्यमान बनाए रखने लिए अपना सर्वस्व अर्पण कर देता है। जब प्राण-प्रतिष्ठा के दिन श्री गोविंद गिरि जी महाराज ने पंचामृत से प्रधान सेवक नरेन्द्र मोदी का 11 दिनों के महा-अनुष्ठान का व्रत सम्पन्न करवाया तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो वे भारतवर्ष की इस पावन धरा के इस पुण्यात्मा पुत्र के उपवास की पूर्णाहुति में सम्पूर्ण सत्पुरुषों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जब मैं रामलला के मंदिर के सिंहद्वार से माननीय श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी के 11 दिवसीय महा-अनुष्ठान एवं उनकी कठिन तपश्चर्या के बारे में गोविंद गिरि जी महाराज को सुन रहा था तो मुझे तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मुझे यह पता था, कि प्रभु श्री राम ने उनका चयन अपने संकल्प की साकारता के लिये किया है।
कुछ दिन पहले मैंने सोशल मीडिया पर आज से 32 साल पहले 15 जनवरी 1992 का एक चित्र देखा था जिसमें आदि श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या में राम मंदिर पहुंचे थे। मैं इस बारे में जानता भी था क्योंकि उस समय कन्याकुमारी से कश्मीर तक एकता का संदेश फैलाने के लिए एकता यात्रा निकाली जा रही थी। उस समय रामलला टेंट में रहने को विवश थे। मुझे सुनने में आया कि उसी काल श्रीमान नरेन्द्र मोदी जी ने प्रतिज्ञा की थी कि अयोध्या में रामलला का मंदिर बनने पर ही वे यहाँ उनके दर्शन को आयेंगे। प्रभु की कृपा देखिये कि उन्होंने अपने इस अनन्य भक्त को गले लगा कर मानो उनकी कठिन तपस्या का संपूर्ण फल दे दिया।
आपने इससे पहले कब ऐसे राजर्षि के बारे में सुना था जो मान-अपमान, राग-द्वेष से मुक्त होकर अपने राजकीय कर्तव्यों और साथ ही सांस्कृतिक कर्तव्यों के प्रति कटिबद्ध होकर समर्पण भाव से मानवता की सेवा में जुटा हुआ हो। ये राष्ट्र ऐसे तपः पूत को पाकर धन्य है। प्राण प्रतिष्ठा के लिए श्रीयुत नरेन्द्र मोदी ने जी ने स्वयं ही आचार्यों से विधि विधान के लिए पूछा था। रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा में यजमान बनने के लिए उन्हें तीन दिन का अनुष्ठान करने को कहा गया था, उन्होंने 11 दिनों का महा-अनुष्ठान किया। वे अन्न का त्याग कर नारियल पानी के सहारे 11 दिनों तक रहे, भूमि पर सोये और राम में लीन रहे। उन्हें जितना कठोर व्रत करने को कहा गया था, उन्होंने उससे ज्यादा कठोर व्रत किया पर, उन्होंने अपने शासकीय कर्तव्यों को भी उसी निष्ठा से निभाया। यही तो राजर्षि का सही अर्थ जो उनमें सदैव जाग्रत और जीवंत है।
भारत के संविधान की पहली प्रति में भगवान राम विराजमान हैं। संविधान के अस्तित्त्व में आने के बाद भी दशकों तक प्रभु श्रीराम के अस्तित्त्व को लेकर कानूनी लड़ाई चली। यह कैसी विडंबना थी कि अपने ही देश में, रामलला को अपने ही घर से बेदखल होकर 500 सालों तक टेंट में बारिश, धूप और शीत के साए में कष्ट भोगना पड़ा। उनके लिए एक वर्ष में केवल 7 कपड़े और 20,000 रुपये ,हर भारतवासी का मन क्षुब्ध था, व्यथित था, दुखित था लेकिन हम कर भी क्या सकते थे। इस देश के स्वाभिमान को निचले स्तर की राजनीति ने जो जकड़ रखा था ! देश को आवश्यकता थी एक ऐसे सपूत की जो इस देश के खोये हुए स्वाभिमान को जगा सके, सुसुप्तावस्था में जा चुके सनातन मानस को चैतन्य कर सके। वर्षों बाद भारत ने श्री नरेन्द्र मोदी में अपने खोये हुए गौरव का प्रकाश देखा। दशकों की दासता की मानसिकता को तोड़कर उठ खड़ा हुआ भारतवर्ष अतीत के हर दंश से मुक्ति पाता हुआ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नए इतिहास का सृजन कर रहा है। आज से हजार साल बाद भी लोग 22 जनवरी 2024 की तारीख को याद करेंगे और आज के इस पल की चर्चा करते नहीं थकेंगे। जिन-जिन के प्रयासों के बल पर रामलला अपने मंदिर में विराजमान हो पाए और हमें इस स्वर्णिम, अद्भुत एवं अविस्मरणीय क्षण को जीने का अवसर मिला, उन्हें हम कोटि-कोटि आत्मीय अभिनन्दन करते हैं ।
राम राष्ट्र की संस्कृति हैं, राम राष्ट्र के प्राण हैं। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार संसद में कहा था कि राम मंदिर का निर्माण राष्ट्रीय स्वाभिमान का मुद्दा है। रामलला के मंदिर का निर्माण का अर्थ भारत का नवनिर्माण है। अयोध्या धाम में श्री राम लला की प्राण-प्रतिष्ठा का अलौकिक क्षण हर किसी को भाव-विभोर करने वाला है। इस दिव्य कार्यक्रम का साक्षी बनना मेरा परम सौभाग्य है।
वन्दे मातरम् !!
लेखक – आचार्य महामण्डलेश्वर जूना अखाड़ा एवं हिन्दू धर्म आचार्य सभा के अध्यक्ष हैं।
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