राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को दारुल उलूम देवबंद द्वारा जारी किए जा रहे फतवों के खिलाफ एक शिकायत प्राप्त हुई थी। इन फतवों में से एक फतवे में ‘बहिश्ती जेवर” नामक किताब का उल्लेख हुआ था, जिसे मौलाना अशरफ अली थानवी ने लिखा था। शिकायतकर्ता ने उस किताब से कुछ उद्धरण भी दिए थे, जिन्हें दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था। इस किताब में बहुत ही आपत्तिजनक एवं अवैध सामग्री थी जो बच्चों से सम्बंधित थी।
पहली नजर में शिकायत में दी गयी सामग्री को कानून द्वारा प्रदत्त प्रावधानों के अनुसार अपराध माना गया। शिकायतकर्ता की शिकायत प्राप्त होने के बाद सीपीसीआर अधिनियम की धारा 13 (1) (j) के अंतर्गत शिकायत प्राप्त होने पर आयोग ने यह पाया कि यह न केवल बच्चों के लिए अनुचित है बल्कि साथ ही यह देश में बच्चों की रक्षा के लिए प्रदत्त कानूनों का उल्लंघन करती है। ऐसी सामग्री के माध्यम से दारुल उलूम द्वारा बच्चों के साथ यौन दुर्व्यवहार को सामान्य बनाया जा रहा था, जो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) का उल्लंघन है।
प्रियंक कानूनगो के अनुसार “सहारनपुर देहात के एसपी और एडीएम (ईस्ट) आयोग में सुनवाई के लिए उपस्थित हुए और उन्होंने उस पाठ्यक्रम की कॉपी के साथ एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसे दारुल उलूम देवबंद में पढ़ाया जा रहा था। रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में एक चार सदस्यीय टीम का गठन किया गया था। आयोग द्वारा जिन फतवों पर आपत्ति दर्ज की गयी थी, उन्हें वेबसाईट से हटा दिया गया और साथ ही पाठ्यक्रम से ‘बहिश्ती जेवर’ नामक किताब को हटा दिया गया है!” साथ ही इस विषय में आयोग की तरफ से और जांच की जा रही है।
इस मामले में जुलाई माह में सहारनपुर के डीएम एवं एसएसपी सहारनपुर को नोटिस जारी किया गया था और यह अनुरोध किया गया था कि वह पूरी तरह से जांच करें, संस्थान की वेबसाइट की पड़ताल करते हुए ऐसे किसी भी मामले को तत्काल सुलझाएं। उस समय आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा था कि यह किताब बच्चों के साथ यौन संबंधों को वैध बताती है। बच्चों से अर्थ उन लड़कियों से है जिनका मासिक धर्म नहीं आरम्भ हुआ है और यह भी लिखा गया है कि ऐसी किसी भी हरकत के बाद आदमियों को नमाज पढ़ने से पहले नहाने की जरूरत नहीं है।
इनके माध्यम से मृत लड़कियों, जानवरों या छोटी बच्चियों के साथ यौन संबंधों को लेकर वैधता प्रदान की गयी थी। जुलाई 2023 से पहले जनवरी 2022 में आयोग ने जिला प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित किया था कि दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट पर कई ऐसे फतवे हैं, जिनके चलते गैर कानूनी गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है और उन्होंने अनुरोध किया था कि वह इसकी पूरी तरह से जांच करे और संस्थान की वेबसाइट की पड़ताल के बाद ऐसी किसी भी सामग्री को हटा लें।
उसके बाद आयोग को यह पता चला था कि इस मामले के लिए एक समिति का गठन कर लिया गया है। और जब जिले से इस विषय में कोई जानकारी नहीं मिली थी तो दिनांक 19 अक्टूबर 2023 को सहारनपुर के डीएम और एसएसपी को आयोग के समक्ष प्रस्तुत होने का आदेश दिया गया था। हालांकि कट्टरपंथी क़दमों के विरोध में ऐसे कदम उठाने के कारण असदुद्दीन ओवैसी ने एनसीपीसीआर पर एजेंडा चलाने का आरोप लगाया था! परन्तु इन सब शोर से परे आयोग की त्वरित गति से की जा रही इन्हीं सब गतिविधियों का यह परिणाम है कि मदरसे से वह किताब हट गयी है, जो पढ़ाई के नाम पर बच्चों को मजहबी कट्टरता की तालीम दे रही थी।
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