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कट्टरपंथी फितूर है ‘गजवा’

दुनिया को हरी चादर से ढकने और इस्लामी राज कायम करने की सनक लिए कट्टरपंथी मुल्ला गजवा-ए-हिन्द की बात करके इस्लाम के उस चेहरे को उघाड़ते हैं, जो असलियत में उसकी सोच है। इस मजहबी चिंगारी को आज से नहीं, वर्षों से सुलगाकर एक वर्ग को उकसाने की कोशिश की जा रही

by नाजिया इलाही खान
Mar 12, 2024, 08:12 am IST
in विश्लेषण
गजवा-ए-हिन्द की आड़ लेकर मुल्ला जहर घोलने का काम कर रहे

गजवा-ए-हिन्द की आड़ लेकर मुल्ला जहर घोलने का काम कर रहे

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गजवा-ए-हिन्द इस्लाम के नजरिये से दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है, जबकि इस्लामिक कट्टरपंथियों के लिहाज से यह दुनिया का सबसे बड़ा सच है। मानवता के खिलाफ अनैतिक और गैर मजहबी युद्ध के नारे में बदल चुके ये तीन शब्द ‘आधी हकीकत आधा फसाना’ हैं। इनके पीछे कुछ इस्लामिक मुल्क, कई आतंकी संगठन, कट्टरपंथी संस्थाएं और कई मानवता विरोधी खड़े हैं। बीते कुछ दशकों से इस्लाम के नाम पर फैलने वाली हिंसक गतिविधियों, हमले की घटनाओं और युद्ध में इनकी बड़ी भूमिका है।

नाजिया इलाही खान

गजवा-ए-हिन्द दुनिया का सबसे बड़ा झूठ कैसे है? यह जानने के लिए इन शब्दों की उत्पत्ति और इनके अर्थ को जानना होगा। गजवा-ए-हिन्द उर्दू का शब्द है, जो अरबी में गजवातुल हिन्द है। कट्टरपंथी कभी इस शब्द का जिक्र कुरान में बताते हैं तो कभी हदीस में। पर सच यह है कि कुरान में इस शब्द का कहीं जिक्र नहीं है। सुन्नी और शिया, दोनों रवायतों में गजवा-ए-हिन्द या गजवातुल हिन्द का कहीं भी जिक्र नहीं है। कई लोगों की यह दलील होती है कि इन शब्दों का जिक्र कुरान में तो नहीं है, लेकिन इसकी चर्चा हदीस में है। सच यह है कि न तो सुन्नी और न ही शिया हदीस संकलन में इसे प्रामाणिक माना गया है। गजवा-ए-हिंद और उसके बारे में कई हदीसें हैं। लेकिन इन हदीसों के रावी कमजोर, शक में डालने वाले, कहीं-कहीं अतिरंजित होते हैं।

इसके बावजूद इनका मजहबी तकरीरों से लेकर इस्लाम की चर्चाओं में धड़ल्ले से प्रयोग होता है। जो मुसलमान अनपढ़ हैं, उन्हें इन शब्दों से बहुत आसानी से बरगलाया जाता है, साथ ही कट्टरपंथी मौलाना अपनी शोर भरी तकरीरों से पढ़े-लिखे लोगों के एक बड़े वर्ग का भी ‘ब्रेन वॉश’ करने में सफल हो जाते हैं। इस्लाम के जानकारों का मानना है कि मौजूदा दौर में गजवा-ए-हिन्द या गजवातुल हिन्द शब्द के प्रचार-प्रसार के पीछे मजहबी सोच न होकर पाकिस्तान है। यानी पाकिस्तान ने इन शब्दों को गढ़ा है। इसलिए यह मानने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए कि गजवा-ए-हिन्द सबसे बड़ा झूठ है।
गजवा-ए-हिन्द या गजवातुल हिन्द की बात करने वाले कट्टरपंथी यह दलील देते हैं कि इसके जरिए भारत पर इस्लामिक शासन के लिए युद्ध करना है। इसे और बेहतर तरीके से समझें। इस्लाम के सिद्धांतों के मुताबिक दुनिया दो हिस्सों में बंटी है। पहला हिस्सा ‘दारुल इस्लाम’कहलाता है। यानी वह देश, जहां मुसलमान रहते हैं और मुसलमानों का ही शासन है। इस्लाम के मुताबिक दूसरे हिस्से को ‘दारुल हरब’ कहा जाता है। दारुल हरब मतलब जहां मुस्लिम रहते हैं लेकिन गैर मुस्लिम शासन करते हैं। अब इसी दारुल इस्लाम और दारुल हरब की आड़ में इस्लाम के कई मनगढंÞत सिद्धांत हैं। ऐसे ही एक सिद्धांत के मुताबिक भारत मुसलमानों का तो हो सकता है लेकिन हिन्दुओं का नहीं हो सकता। ऐसी धारणा को अपने-अपने स्वार्थों के लिए देश के अंदर और बाहर से लगातार हवा दी जाती है। यह मजहबी चिंगारी आज से नहीं, वर्षों से सुलगाकर एक वर्ग को उकसाया जाता रहा है।

अब दारुल इस्लाम और दारुल हरब शब्दों के खेल से देश-दुनिया के ताने-बाने को बिगाड़ने वालों का मन-मिजाज पढे तो गजवा-ए-हिन्द की साजिश को समझ पाना मुश्किल नहीं होगा। इन्हीं शब्दों की आड़ में इसे इस्लामी सिद्धांत बताकर मौलाना लोग भारत को ‘दारुल इस्लाम’ बनाने के लिए यहां के मुस्लिमों की तरफ से ‘जिहाद’ के ऐलान को वाजिब मानते हैं। ऐसे लोगों के मुताबिक इस्लाम की कसौटियों पर भारत ‘दारुल हरब’ है और इसे दारुल इस्लाम बनाने के लिए जिस जिहाद की जरूरत महसूस की जा रही है वही गजवा-ए-हिन्द है।

अब अगर इस मानसिकता के साथ गजवा-ए-हिन्द की व्याख्या को देखें तो आजादी के बाद से आज तक की राजनीति का एक बड़ा दौर बेपर्दा हो जाता है। एक खास मजहब के लोगों के लिए पर्सनल लॉ, स्कूल-कॉलेज की जगह मरदसे, मजहबी जगहों से नफरती बयान की आजादी, दकियानूसी पहनावों-परंपराओं को सरकारी मान्यता और वोटबैंक बनाने के लिए खास तरजीह। सब कुछ आईने की तरह साफ होने लगता है।

इससे इतर मत वाले को काफिर और उस पर जीत को गजवा मानने वाली विचारधारा गहरी होने लगती है। इसे फैलाने की साजिश रचने वाले काफिरों को जीतने के लिए किए जाने वाले युद्ध को गजवा और युद्ध में हिस्सा लेने और जीतने वाले को गाजी कहा जाने लगा। ऐसे में जब गजवा-ए-हिन्द का नारा दिया जाता है तो इसके शब्द, अर्थ, मानसिकता और मकसद को समझना मुश्किल नहीं होता।
गजवा-ए-हिन्द की साजिश को हवा देने वालों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि गजवा शब्द का इस्तेमाल केवल पैगंबर मुहम्मद के नेतृत्व वाले अभियानों के लिए हुआ था। पैगम्बर के जाने के बाद मुस्लिम इतिहास में सभी सैन्य अभियानों को मार्का कहा जाता था।

इसलिए हिन्द क्षेत्र के विरुद्ध किसी सैन्य अभियान के लिए गजवा शब्द का सवाल ही पैदा नहीं होता। अगर गजवा-ए-हिंद की कहानी में थोड़ी भी सचाई होती तो इसे पैगम्बर के कई साथियों द्वारा सुनाया गया होता। इसलिए जहां भी हदीस का जिक्र कर इसे सही ठहराया जाता है, वहां पैगम्बर के केवल एक साथी का जिक्र होता है। इसलिए हदीस के इस हिस्से की असलियत पर भी कई बार सवाल उठे हैं। जमात-ए-इस्लामी ने इसे मुहम्मद बिन कासिम के भारत पर आक्रमण को सही ठहराने के लिए बनाई गई मनगढंत कहानी माना है।

जमात-ए-इस्लामी के दावे गलत नहीं हैं। एक समय जिस गजवा-ए-हिन्द को भारत पर आक्रमण की अपील के रूप में देखा जाता था, बाद में कई आतंकी और कट्टरपंथी समूहों ने उसे और ज्यादा विस्तार देने की कोशिश की।

इसी कोशिश में गजवा-ए-हिन्द में शामिल हिन्द शब्द का मतलब भारतीय उपमहाद्वीप से जोड़ दिया गया। मई 2014 में तब के अल कायदा से जुड़े इस्लामिक मूवमेंट आफ उज्बेकिस्तान ने बर्मी मुफ्ती अबुजर आजम का गजवा-ए-हिन्द की चर्चा वाला वीडियो साझा किया। इस वीडियो में वह कहता है कि हिन्द क्षेत्र में केवल भारत ही नहीं आता, बल्कि इसमें पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, बर्मा और बांग्लादेश भी शामिल हैं। इसी वीडियो में यह भी दावा किया गया कि पाकिस्तान में कथित जिहाद उनके समूह के गजवा-ए-हिन्द का हिस्सा था। कुछ इसी अंदाज में तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी ने अप्रैल 2014 में एक वीडियो जारी कर चीन के खिलाफ जिहाद को जरूरी बताया था।

दुनिया के बड़े हिस्से से कट्टरपंथी धड़े गजवा-ए-हिंद की बात करके सनसनी फैलाते हैं। उकसाने वाली तकरीरें पढ़कर नफरत फैलाई जाती है। मजहबी किताबों की गलत व्याख्या कर ‘प्रोग्रेसिव मुसलमानों’ तक का बे्रनवाश किया जाता है। और जब कोई सवाल उठाता है तो मुल्ला-मौलवी फतवे की आड़ लेकर आंखों पर पट्टी बांधने की कोशिश करते हैं।

बीते दिनों इस्लामी शिक्षण संस्था दारुल उलूम ने ऐसी ही कोशिश की। दरअसल, 2015 में दारुल उलूम की वेबसाइट पर किसी व्यक्ति ने गजवा-ए-हिन्द को लेकर जानकारी मांगी जिस पर दारुल उलूम ने पुस्तक सुन्नत-अल-नसाई का हवाला दिया, जिसमें गजवा-ए-हिन्द को इस्लाम के नजरिए से जायज बताया गया है। हालांकि इस मामले के तूल पकड़ने के बाद बाल संरक्षण आयोग ने इसे देश विरोधी बताकर डीएम सहारनपुर और एसएसपी को इसकी जांच कर कार्रवाई के आदेश दे दिए।

दारुल उलूम के मामले में जांच तो शुरू हो गई, लेकिन यहां से मिले जवाब ने कई लोगों को एक खास सोच बनाने में मदद की। खास सोच बनाने में ऐसी ही मदद तीन तलाक के समर्थन में खड़े होने वाले, स्कूल-कॉलेजों में बुर्का-हिजाब पहनने की छूट मांगने वाले, नाबालिग बच्चियों के निकाह को मजहबी हक बताने वाले, मजहब छुपाकर धोखे से शादी करने वाले, लव जिहाद करने वाले और इनके बचाव के साथ ही इन मांगों के समर्थन में हिंसक प्रदर्शन करने वाले भी करते हैं। इनमें कई बार कुछ हरकतें गजवा-ए-हिन्द के मकसद से ही की जाती हैं।

मठ-मंदिरों पर जबरन कब्जा, सार्वजनिक जगहों पर गलत तरीके से इबादत करना या इबादतगाह बनाना और फिर उसे अपना हक मानकर बैठ जाने की मानसिकता के पीछे भी वही खास सोच है। ऐसी ही सोच जब गहरी होती है तो इसका फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान से सरहद पार कर आतंकी आते हैं। यही आतंकी कभी संसद पर हमले को अंजाम देते हैं तो कभी मुंबई पर हमला करते हैं। कभी कश्मीर में मासूमों का खून बहाते हैं तो कभी देश के किसी और हिस्से में हिंसा फैलाते हैं। ऐसा करने वालों को मजहब की आड़ में यही गजवा-ए-हिन्द का पाठ पढ़ाया जाता है।

गजवा-ए-हिन्द की गहरी होती मानसिकता को अब पाकिस्तान से खाद-पानी की भी जरूरत नहीं रही। बीते कई दशक से तुष्टीकरण की राजनीति ने ऐसे लोगों को बेलगाम होने की छूट दी है। परिणाम गजबा-ए-हिन्द से लेकर देश के बंटवारे के वक्त का दिया नारा डायरेक्ट ऐक्शन का बदला रूप ‘2023 में डायरेक्ट जिहाद’ जैसे जुमलों में सुनाई पड़ता है। इसी मानसिकता का नतीजा है कि बीते दिनों देश में आतंक का गजवा-ए-हिन्द मॉडल मिला। एनआईए ने छानबीन शुरू की तो इसके तार मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, केरल और बिहार तक से जुड़ पाए गए। बिहार के फुलवारी शरीफ से पीएफआइ के संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी से इसका खुलासा हुआ। उनके पास से 2047 तक भारत को इस्लामी देश बनाने का दस्तावेज भी बरामद हुआ। पकड़े गए लोगों के संपर्क पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से भी बताए गए।

निश्चित तौर पर दुनिया में इस्लामी राज कायम करने की सनक का एक नाम गजवा-ए-हिन्द है। हालांकि फिलहाल हिन्द शब्द से इसके भारत तक सीमित रहने का आभास होता है, लेकिन ऐसा मानना अधूरा सच होगा। पीएफआइ, आईएस, अलकायदा जैसे आतंकी संगठन इसी सनक के मारे हैं।

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