इस बार कश्मीर घाटी में 77वां स्वतंत्रता दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया। गांव, देहात, जिला, शहर, हर जगह उत्साह और उमंग का वातावरण था। न बंद का आह्वान, न कोई राष्ट्र विरोधी रैली। न इंटरनेट पर रोक, न ही कहीं आने जाने पर पाबंदी।
जुलाई, 2017 में जम्मू-कश्मीर की तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने चेतावनी भरे लहजे में कहा था, ‘‘राज्य के लोगों को मिले विशेषाधिकारों (अनुच्छेद 370 और 35-ए) में किसी भी तरह का बदलाव किया गया तो राज्य में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं रहेगा।’’
अनुच्छेद-370 को निष्प्रभावी हुए चार साल ही बीते हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर की आबोहवा में परिवर्तन साफ नजर आ रहा है। इस बार कश्मीर घाटी में 77वां स्वतंत्रता दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया। गांव, देहात, जिला, शहर, हर जगह उत्साह और उमंग का वातावरण था। न बंद का आह्वान, न कोई राष्ट्र विरोधी रैली। न इंटरनेट पर रोक, न ही कहीं आने जाने पर पाबंदी। घाटी के रहने वाले कश्मीर इमेजेज के संपादक बशीर मंजर कहते हैं कि इस बार आजादी पर्व का जो उत्साह लोगों में दिखा, वह काबिलेतारीफ है। ऐसा नजारा तीन दशक बाद देखने को मिला है।
मैंने बचपन में ऐसा नजारा देखा था। लेकिन इस बार तो तीन दिन पहले से ही कश्मीर में तिरंगा लहराना शुरू हो गया था। मेरी बपचन की यादें ताजा हो गईं। पूरे राज्य में हर जगह तिरंगा रैली हुई। इसमें शामिल होने वाले सभी स्थानीय थे। हर छोटे-छोटे से गांव में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया और यह सब बिना खौफ के हुआ।
बशीर मंजर बताते हैं, ‘‘जब अवाम का हुकूमत में विश्वास बढ़ता है, तो ऐसा नजारा देखने को मिलता है। आज घाटी के लोग सही और गलत को पहचान रहे हैं। उन्हें पता है कि दशकों तक उन्हें पाकिस्तान, बंदूक और आतंकवाद के नाम पर कैसे डराया और बेवकूफ बनाया जाता रहा था। जब उन्हें यह बात समझ आने लगी तो वे बेखौफ होकर तिरंगा शान से लेकर सड़कों पर उतर आए। आज विरोधी भी मानते हैं कि राज्य का प्रशासन यहां के विकास में लगा हुआ है, अवाम की रोजी-रोटी की चिंता करता है, भ्रष्टाचार पर बंदिश लगाता है। तो स्वाभाविक है कि बदलाव नजर आएगा ही।’’
आतंक के गढ़ में लहराया तिरंगा
दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, पुलवामा और शोपियां आतंक और आतंकियों के गढ़ माने जाते रहे हैं। इन इलाकों में लोग ‘वंदे मातरम्’ बोलना तो दूर तिरंगा उठाने से भी डरते थे। उन्हें डर था कि जान न चली जाए। लेकिन अब उसी पुलवामा में ‘मेरी माटी, मेरा देश’ पर आयोजित तिरंगा रैली में भारी भीड़ उमड़ी। बच्चों से लेकर युवा, लड़कियों से लेकर वृद्ध सभी रैली में शामिल हुए।
शोपियां के सेब व्यापारी जावेद कहते हैं, ‘‘असल बदलाव अब देखने को मिल रहा है। यहां के लोग अब उन पंजों से निकलना चाहते हैं, जो इन्हें दशकों से जकड़े हुए थे। लोग विकास चाहते हैं, रोजगार चाहते हैं, अमन चाहते हैं। वे चाहते हैं कि अब कश्मीर में खूनखराबा न हो। हर जगह अमन और खुशी हो। जब उन्हें यह सब दिख रहा है तो वे बेखौफ होकर घरों से तिरंगा थामने निकल पड़े हैं। हकीकत में कहें तो इस बार अवाम अपने वतन के लिए सड़कों पर आया और स्वतंत्रता दिवस की खुशी मनाई।’’ इसी तरह, सामाजिक कार्यकर्ता मो. अशरफ कहते हैं, ‘‘कुछ साल पहले पाकिस्तान परस्तों द्वारा धमकी दी जाती थी कि कश्मीर से अगर अनुच्छेद-370 हटा तो घाटी में तिरंगा थामने वाला कोई नहीं मिलेगा। लेकिन अब उन्हें इसी कश्मीर से जवाब मिल रहा है। उनके मंसूबे यहां की जनता ध्वस्त कर रही है। उनका नैरेटिव नेस्तोनाबूद हो रहा है। आज समूचे जम्मू-कश्मीर की अवाम तिरंगा शान से थाम भी रही है और लाल चौक पर फहरा भी रही है।
‘हम हिन्दुस्थानी हैं, हिन्दुस्थानी रहेंगे’
‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा।’ यह कहना है उत्तर कश्मीर के सोपोर में हिज्बुल मुजाहिद्दीन के आतंकी जावेद मट्टू के भाई रईस मट्टू का, जो अपने घर पर तिरंगा फहराते हुए नजर आए। तिरंगा लहराते हुए उनका वीडियो सोशल मीडिया में खूब वायरल हुआ, जिसमें वह अपनी छत पर खड़े होकर तिरंगे को लहरा रहे हैं। बातचीत में वह कहते हैं, ‘‘मेरे ऊपर किसी तरीके का कोई दबाव नहीं है। मैंने दिल से तिरंगा लहराया है।’’
इलेक्ट्रानिक्स की दुकान चलाने वाले रईस आगे कहते हैं कि आज कश्मीर में विकास हो रहा है। पहले स्वतंत्रता दिवस के पहले से ही घाटी बंद हो जाती थी। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अगर मेरे भाई तक मेरी आवाज पहुंच रही है तो मैं उससे भी यही कह रहा हूं कि वापस आ जाओ। एजेंसियों से बात करो। पाकिस्तान पर भरोसा मत करो। वह तो खुद बर्बाद मुल्क है। वह हमें क्या देगा। हम हिन्दुस्थानी हैं और हिन्दुस्थानी ही रहेंगे।
इसी तरह लाल चौक पर पूर्व आतंकी सैफुल्लाह फारुक ने अपने साथियों के संग तिरंगा फहराया। इस दौरान उसने कहा कि आज तिरंगा फहराते हुए मुझे लगा कि जैसे मैं कोई हीरो हूं। आज यहां जो माहौल है, वैसा पहले कभी नहीं था। यह बदला हुआ हिन्दुस्थान है। अब कश्मीरी जाग चुका है। अब अगर बंदूक उठानी भी पड़ेगी तो वतन और झंडे के लिए उठाऊंगा।
आकर्षण का केंद्र बना लाल चौक
स्वतंत्रता दिवस के पूर्व से ही लाल चौक जगमगा रहा था। घंटाघर के शिखर पर शान से फहराता तिरंगा बदले वातावरण की खबर दे रहा था। पर्यटक घंटाघर के सामने खड़े होकर बिना किसी डर के तस्वीरें ले रहे थे। कोई तिरंगा लहरा रहा था तो कोई भारत माता की जयजयकार कर रहा था। कुछ उत्साही पर्यटक तो तिरंगे के रंगे में रंगे नजर आ रहे थे।
घाटी के बीडीसी चेयरमैन गुलाम मोहम्मद सोफी कहते हैं कि इस बार शोपियां तो क्या पुलवामा, अनंतनाग से लेकर पहलगांव तक, डोडा से लेकर जम्मू तक हर जगह तिरंगा रैली और भारत माता की जय ही सुनाई दी। लाल चौक तो देखने लायक था। यह वही श्रीनगर का लाल चौक था, जहां जाने से लोग डरते थे, आतंकियों ने जिसे अपना अड्डा बना रखा था, जहां पाकिस्तानी झंडे खुल्लम खुल्ला लहराए जाते थे। सुरक्षाबलों पर पथराव किया जाता था। पर अब यहां वैसा कुछ भी नहीं होता। अब यहां कोई डर नहीं है। सुरक्षा बलों का पहरा तो है पर अवाम की सुरक्षा के लिए। अब यहां शान से तिरंगा फहराता है।
मोहम्मद सोफी कहते हैं, ‘‘बदले माहौल ने यहां की अवाम में भरोसा पैदा किया कि अब तिरंगा थामने वालों की नहीं, तिरंगा का विरोध करने वालों की खैर नहीं। इसी का परिणाम था कि जो इलाके कभी पाकिस्तान प्रायोजित आतंक के लिए जाने जाते थे, वहां लोग तिरंगा हाथ में थामे नजर आए। यह उन लोगों को जवाब था, जो कश्मीर को आज तक बहकाते आ रहे थे। अनुच्छेद-370 की समाप्ति के पहले शोपियां, पुलवामा, अनंतनाग कभी आतंकियों के लिए पनाहगाह थे, जहां लोग तिरंगा थामने से डरते थे, वहां अब बड़ी-बड़ी तिरंगा रैली निकलीं। स्थानीय लोग बढ़-चढ़कर इनमें शामिल हुए। क्या यह बड़ा बदलाव नहीं है?’’
बहरहाल, समूचे जम्मू-कश्मीर में जो परिवर्तन दिख रहा है, वह अनुच्छेद-370 के निष्प्रभावी होने के बाद का है। यह परिवर्तन है विकासकारी योजनाओं का, जिनसे घाटी की जनता लाभान्वित हो रही है। यह परिवर्तन है बिना किसी भेदभाव के लागू जनकल्याणकारी योजनाओं का। यह परिवर्तन है शोषण, अत्याचार, अनाचार और भ्रष्टाचार से कुछ हद तक मुक्ति का। और अंत में, यह परिवर्तन है केंद्र की स्पष्ट नीति का कि अगर किसी ने आतंक और आतंकियों का साथ दिया तो सुरक्षा बल उसका समूल नाश करने में जरा भी देर नहीं लगाएंगे। ल्ल
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