ईसाई संस्थानों और पादरियों पर कथित तौर पर हमले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देश में ईसाइयों पर हमले को लेकर याचिकाकर्ता की ओर से रखे गए आंकड़े गलत हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र की दलील पर जवाब दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ता को तीन हफ्ते का समय दिया।
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता ने लोगों के आपसी झगड़ों को भी ईसाई समुदाय के खिलाफ हमले की तरह पेश किया है। ऐसी याचिकाओं के जरिये विदेश में देश की छवि बिगड़ती है। लोगों को लगता है कि ईसाई यहां खतरे में है। 13 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार को निर्देश दिया था कि वो ईसाई संस्थानों और पादरियों पर कथित तौर पर हमले से संबंधित वेरिफिकेशन रिपोर्ट दाखिल करे। एक सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वो उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक और ओडिशा सरकार से रिपोर्ट तलब करे। ईसाईयों के खिलाफ हमलों के मामले में गिरफ्तार लोगों और जांच की स्थिति पर रिपोर्ट पेश करें।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 300 से ज्यादा ऐसी घटनाएं हुई हैं। याचिका में सांप्रदायिक हमले का जो आरोप लगाया गया है वो गलत है। तब कोर्ट ने कहा था कि याचिका में लगाए गए आरोपों को वो स्वीकार नहीं कर रहा है, लेकिन आरोपों का वेरिफिकेशन होना चाहिए।
कोर्ट ने पांच अगस्त 2022 को इस मामले पर सुनवाई करते हुए केंद्र को नोटिस जारी किया था। इस याचिका में घृणा अपराधों पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पहले के दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन की भी अपील की गई है। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कहा था कि देशभर में 500 से ज्यादा ईसाई संस्थाओं पर हमले हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ द्वारा हिंसा पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश का पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग की।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमें जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया जाए। तब कोर्ट ने कहा था कि तहसीन पूनावाला के मामले में सुप्रीम कोर्ट पहले ही आदेश दे चुका है। हमें ये देखना है कि उसे लागू किया जा रहा है कि नहीं। हम व्यक्तिगत मामलों को नहीं देख सकते हैं।
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