लेखक – प्रारब्ध राय व सत्यम वत्स (स्नातक विद्यार्थी जर्मन अध्ययन केंद्र जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय)
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये
राम शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है “वह जो रोम रोम में बसे”। यदि हम सामाजिक, ऐतिहासिक आदि रूपों से देखेंगे तब भी यह परिभाषा सर्वथा उपयुक्त बैठती है। इतिहास का कोई पृष्ठ नहीं जहाँ श्री राम का प्रभाव न हो, समाज का कोई वर्ग नहीं जो राम भक्ति से अछूता हो। यह कहना तो कदापि अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम भारतीय जनमानस में बसते हैं। यहाँ पिछले सहस्त्रों वर्षों से आजतक जनता यदि किसी आदर्श शासनतंत्र को जानती है तो वो है रामराज्य। यदि कोई जिज्ञासावश जानना चाहे कि रामराज्य के इतने सहस्राब्दियों के बाद भी क्यों सब रामराज्य चाहते हैं तो उत्तर आता है करुणानिधान भगवान श्री राम की महानता।
भगवान श्रीराम की महानता की कोई थाह ही नहीं है, उनके कथा-प्रसंग का श्रवण-पठन कर के आज तक लोग अपने-अपने चरित्र का सुधार करते हैं। उनके अद्वितीय शौर्य एवं पराक्रम से उन्होने यज्ञरक्षा कर ऋषियों को भयहीन किया , उनका अनुपम बल ही खर, दूषण आदि का काल बना, वे ही शील के मूर्त स्वरूप है। धनुष भंग करने का सामर्थ्य होनेपर भी वा सभा मे शांति से बैठे थे और गुरुआज्ञा मिलने पर ही गए, पितृभक्ति ऐसी की पिता का वचन कभी मिथ्या न होने दिए भले स्वयं कष्ट सहे, त्याग ऐसा कि जब कुछ ही समय मे राजतिलक होना था तब भी वल्कल पहनकर वनगमन करने मे संकोच नहीं किया, ज्ञान वेद शास्त्रादि अनेकों ग्रंथों का, मातृभूमि के प्रति प्रेम इतना कि अपनी जन्मभूमि अयोध्या नगरी के बारे मे कभी बुरे शब्द सुनना तक नहीं सहा, धर्म परायण ऐसे जो साधुओं का दुःख सुनकर बोल उठे
“निशिचर हीन करहु महि, भुज उठाए पन कीन्ह।”
अनुजों से स्नेह ऐसा कि युगो तक उनके उदाहरण दिए जाते हैं, सीता माता से ऐसा प्रेम किया आज भी कई लोग सम्बोधन के रूप मे सीताराम ही बोलते हैं, सत्यवादी ऐसे कि ‘रामो द्विर्नाभिभाषते’ आज प्रेरणा वाक्य है, शबरी को स्वयं नवधा भक्ति का उपदेश देकर सामाजिक सौहार्द के प्रतीक बने, सुग्रीव की कठिन समय मे सहायता कर सच्चे मित्र होने का अर्थ समझाया, घोषणा करके-
“अनुज बधू भगिनि सुत नारी, सुन सठ कन्या सम ए चारि।
इन्हे कुदृष्टि बिलोकि जेई, ताहि बधे कछु पाप न होई॥”
समाज मे नारियों के सम्मान की शिक्षा दी।
राम अपने भक्तों के सामर्थ्य से भली भांति परिचित हैं तभी वह हनुमान को ही मुद्रिका देते हैं, भगवान राम की उदारता ऐसी है कि जो सम्पत्ति रावण को दस शीशों के दान के बाद मिली वो सम्पत्ति वो विभीषण को तो उसके आगमन के साथ दे देते है। यह परमपुनीत भगवान का बड़प्पन ही है जो पापियों को भी सुधरने का अवसर देते, रावण के पास भी उन्होने शांतिदूत अंगद को भेजा थे। मातृभक्ति ऐसी की कभी मन मे भी कैकयी माता के प्रति द्वेष भाव न रखा और वापस आ कर सर्वश्रेष्ठ शासक बन कर दिखाए जिनका उदाहरण लोग कई युगो बाद आज भी देते हैं।
“दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥”
असुरारि भगवान के कर्मों द्वारा स्थापित ऐसे ही आदर्शों ने मानव कल्याण मे भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत के संविधान की मूल प्रति मे दीनदयाल भगवान के चित्र हैं। गाँधी जी भी भगवान श्रीराम से ही प्रेरणा पाते थे और भारत मे रामराज्य चाहते थे। स्वामी रामानंद जैसे महान समाज सुधारक संत ने भी समाजिक पतन को रोकने के लिए रामनाम की महिमा का ही प्रयोग किया था । भगवान राम से प्रेरणा पाकर लोग समाजसेवा मे अत्यधिक योगदान करते है। आज भी भगवान राम की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है । हिंदू जनमानस के लिए भगवान राम की प्रासंगिकता उतनी ही ही जितनी सागर में जल की, वनों में वृक्ष की अथवा ज्ञानी पुरुषों में विनम्रता की होती है। राम हर हिंदू के लिए इस भारतवर्ष के पवित्र भूमि के हर कण में व्याप्त है। राम के बिना इस भारतवर्ष की कोई कल्पना नहीं की जा सकती। एक बार श्री राम का नाम-मात्र ही उनके भक्तों के संपूर्ण दुखो का हरण करने वाला है। भगवान राम का चरित्र आज के समय मे भी लोगो को सही दिशा बताने मे सक्षम है । कलिप्रभाव की कालिमा मे तो भगवान राम द्वारा दिखाया धर्मपरायण मार्ग अमावस की रात्रि मे दामिनी समान दमकता है।
भक्तवत्सल भगवान् के अवतार के अनेक कारण होते हैं, भक्तों पर कृपा इनमे प्रमुख हैं। गोस्वामी जी ने लिखा है
“जब जब होइ धरम कै हानी, बाढ़हि असुर संत अभिमानी।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा, हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा॥”
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धर्म की पुनः स्थापना के लिए दुनिया में श्री राम के रूप में अवतार लिया। भगवान से साँवले सलोने रूप मे महारानी कौशल्या और महाराज दशरथ के घर अयोध्या मे जन्म लेकर सर्वत्र आनंद का संचार किया ।
भगवान श्रीराम का जन्म परम्परागत रूप चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माना जाता है। उनके जन्मोत्सव के रूप मे राम नवमी मनाई जाती है। शरणागतवत्सल भगवान के इस पर्व को मनाने का उद्देश्य है धर्म स्वरूप भगवान पुरुषोत्तम राम द्वारा दिखाए गए मार्ग पर आना। आइए आगामी राम नवमी को हम सब मिलकर भगवान श्रीराम का प्राकाट्योत्सव मनाए और उनके चरित्र का गुणगान करें।
मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को हम नमस्कार करते हैं।
“भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौसल्या हितकारी
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप निहारि”
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