हम महावीर जयंती इसलिए मनाते हैं कि उन्होंने जो दर्शन दिया, जो मूल्य स्थापित किए और जो सिद्धान्त निश्चित किए, वे सर्वजनहिताय थे। उनमें युग की समस्या का सम्यक समाधान निहित है।
ऐसी कौन-सी विशेषता है जिसके कारण महावीर जयंती मनाई जा रही है? हम महावीर जयंती इसलिए मनाते हैं कि उन्होंने जो दर्शन दिया, जो मूल्य स्थापित किए और जो सिद्धान्त निश्चित किए, वे सर्वजनहिताय थे। उनमें युग की समस्या का सम्यक समाधान निहित है। महावीर ने अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकांत, संयम ओर समता के जो सूत्र दिए, वे आध्यात्म को दृष्टि से तो असाधारण थे ही, राजनीतिक दृष्टि से भी उनके महत्व को नकारा नहीं जा सकता। वास्तव में वे लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के आधारभूत सूत्र हैं।
भारतीय ओर पश्चिमी दर्शन के मर्मज्ञ भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भी एक प्रसंग में कहा था कि स्वतंत्र भारत का लोकतंत्रात्मक संविधान पूर्णत: अनाक्रमण, सहअस्तित्व, समता ओर संयम पर आधारित है। ये तत्व महावीर के मौलिक और व्यावहारिक सिद्धान्त हैं। अत: हम कह सकते हैं कि भारतीय संविधान महावीर के सिद्धान्तों से प्रभावित है अथवा महावीर के सिद्धान्तों ने भारतीय लोकतन्त्र को मौलिक ओर वास्तविक दिशादर्शन दिया है।
अनाक्रमण नीति
भारतीय संविधान ने अनाक्रमण नीति को स्वीकार किया है। आज से ढाई हजार वर्ष पहले भगवान महावीर ने यही कहा था-‘तुम आक्रान्ता मत बनो। किसी पर आक्रमण कर उसकी सार्वभौम स्वतंत्रता का अपहरण मत करो।’
आज इस अनाक्रमण नीति के पक्ष में समूचे विश्व की जनभावना जागृत हो रही है। युद्ध की भयानक ओर विनाशकारी समस्या के समाधान में अनाक्रमण नीति सफल और कारगर सिद्ध हुई है। विश्व शान्ति की दिशा में इसे महावीर के सिद्धान्तों का मूल्यवान योग कहा जा सकता है।
भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त मौलिक और महत्त्वपूर्ण सूत्र है। जीवन की जटिलताओं और कठिनाइयों से राहत पाने का दिशादर्शन इससे प्राप्त होता है। अभाव, महंगाई आदि समस्याओं का समाधान भी संयम से प्राप्त हो सकता है। आज राष्ट्र जिन संकटपूर्ण स्थितियों से गुजर रहा है; उनके समाधान के लिए न केवल जैन अपितु समस्त देशवासियों के लिए संयम-साधना अत्यंत आवश्यक है। जो जितना संयम करेगा, वह उतना ही अधिक समाधान और राहत प्राप्त करेगा।
सह-अस्तित्व भगवान महावीर का ही सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त का ही सुपरिणाम है कि अत्यंत विरोधी विचारधारा वाले भी एक मंच पर बैठकर विश्व समस्याओं का समाधान खोजते हैं ओर मिल-जुलकर उस दिशा में प्रयास करते हैं।
समता का सिद्धान्त
महावीर ने कहा- ‘अर्थ का अति संग्रह मत करो। गलत तरीकों से अर्जन मत करो।’ अर्जन के साथ विसर्जन का सूत्र भी उन्होंने दिया, क्योंकि पूंजी का केन्द्रीकरण सामाजिक विषमता को बढ़ावा देता है। तत्कालीन समाज व्यवस्था में व्याप्त विषमता के विरुद्ध महावीर ने समता का सिद्धान्त प्रतिष्ठित किया। उन्होंने कहा-‘एकेव मानुषीजाति:’। जातीयता, प्रांतीयता, राष्ट्रीयता, साम्प्रदायिकता तथा भाषा आदि के आधार पर अखण्ड मानवजाति को विभक्त करना भयंकर भूल और मानवता के लिए अभिशाप है। भारतीय संविधान में भी जांति, धर्म, लिंग, रंग आदि के परिप्रेक्ष्यों में पलने वाले भेद-प्रभेदों का कोई स्थान नहीं है। नागरिकता के मूलभूत अधिकार सबके लिए समान रूप से सुरक्षित हैं। यह उदार दृष्टिकोण भगवान महावीर के समतावादी सिद्धान्त का ही क्रियान्वयन है।
संयम का महत्त्व
संयम, भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त मौलिक और महत्त्वपूर्ण सूत्र है। जीवन की जटिलताओं और कठिनाइयों से राहत पाने का दिशादर्शन इससे प्राप्त होता है। अभाव, महंगाई आदि समस्याओं का समाधान भी संयम से प्राप्त हो सकता है। आज राष्ट्र जिन संकटपूर्ण स्थितियों से गुजर रहा है; उनके समाधान के लिए न केवल जैन अपितु समस्त देशवासियों के लिए संयम-साधना अत्यंत आवश्यक है। जो जितना संयम करेगा, वह उतना ही अधिक समाधान और राहत प्राप्त करेगा। आज के युग में सत्ता और सम्पत्ति का व्यामोह भी क्रमश: बढ़ता जा रहा है। जनसामान्य के लिए अनुकरणीय ओर प्रशंसनीय वही व्यक्ति हो सकता है, जो इनसे दूर रहता है।
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