जियो और जीने दो जैन पंथ का मूलमंत्र है। इस एक मंत्र से, विश्व की सभी समस्याओं का निराकरण हो सकता है और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक भेदभाव और शोषण से मुक्ति मिल सकती है। जैन पंथ में अहिंसा, कायरों का शस्त्र नहीं, वीरों का भूषण है। ‘’सर्वे भवन्तु सुखिनः‘’ की मंगल भावना, अहिंसा का अमूल्य विचार है।
महावीर स्वामी ने मांसाहार का विरोध कर, शाकाहार को हर दृष्टि से लाभप्रद बताया। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो भी मांसाहार मनुष्य में हिंसक प्रवृत्ति को जन्म देता है। उच्च रक्त-चाप, मधुमेह, हृदय रोग जैसे गंभीर बीमारियां विकसित होती हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक, जार्ज बर्नाड शॉ शाकाहारी थे। उनका कहना था मेरा पेट, पेट है कोई कब्रिस्तान नहीं, जहां मुर्दों को स्थान दिया जाय। वह जैन मत से अत्यधिक प्रभावित थे। अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त करते हुए, उन्होंने कहा था यदि मेरा पुर्नजन्म हो तो भारत में हो और जैन कुल में हो।
“सत्य” महावीर द्वारा बताया गया महत्वपूर्ण सूत्र है। प्रत्येक व्यक्ति का चिंतन, मनन और विचार सत्य पर आधारित होना चाहिये। सत्य ही मानव को आत्मा से परमात्मा बनने की शक्ति देता है। महावीर के विचार में सत्य एवं अहिंसा से कोई राष्ट्र शांति एवं निर्भयता से प्रत्येक समस्या का समाधान कर सकता है।
महावीर का अनेकांतवाद अथवा स्यादवाद का सिद्धांत भी सत्य पर आधारित है। महावीर ने कहा था कि किसी भी वस्तु या घटना को एक नहीं वरन् अनंत सदृष्टिकोणों से देखने की आवश्यकता है। आज समाज में झगड़ा, विवाद आदि एकांगी दृष्टिकोण को लेकर होता है, यदि विवाद के समस्त पहलुओं को समझा जाय, निथ्या अंशों को छोड़, सत्याशों को पकड़ा जाय तो सम्भवतः संघर्ष कम हो जाय। वैज्ञानिक आइंस्टीन का सापेक्षवाद महावीर के अनेकान्तवाद पर ही टिका है।
आज के युग में, मनुष्य को सबसे अधिक आवश्यकता है, महावीर के अपरिग्रह के सिद्धांतों को समझने की। संग्रह अशांति का अग्रदूत है। कार्ल मार्क्स का साम्यवाद इस रोग की दवा नहीं, क्योंकि हिंसा से हिंसा शांत नहीं होती। महावीर का अपरिगृह का विचार ही, इसकी संजीवनी है जो अमीर गरीब की दूरी कम कर सामाजिक समता स्थापित कर सकती है।
महावीर के उपदेशों में, यदि अचौर्य के सिद्धान्त का अनुकरण किया जाए तो, आज विश्व में व्याप्त भ्रष्टाचार व काले धन पर अंकुश लगाया जा सकता है। महावीर ने, स्त्रियों को पूर्णतः स्वतंत्र और स्वावलम्बी बताया। आज स्त्रियों के समान अधिकार एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता हेतु महावीर के विचार आज भी सार्थक हैं।
जैन पंथ के सूत्रों में, एक महत्वपूर्ण सूत्र ब्रह्मचर्य है। आज के भोगवादी पाश्चात्य युग में इससे बढ़कर कोई त्याग नहीं। इससे बढ़ती जनसंख्या के दुष्प्रभावों से बच सकेंगे। निर्धनता, बेरोजगारी, भिक्षावृत्ति, आवास, निवास, अपराध, बाल अपराध आदि समस्याओं का निराकरण होगा।
महावीर ने तन-मन की शुद्धि तथा आत्म बल बढ़ाने हेतु, साधना एवं तपश्चर्या पर बल दिया। आज के भौतिकवादी युग में जहां खानपान की अशुद्धता एवं अनियमितता है, और जीवन तनावयुक्त है, महावीर द्वारा बताई तप, त्याग एवं साधनामय जीवन-शैली ही समस्याओं का समाधान है। महावीर के सिद्धांत, न केवल सामाजिक, आत्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में, वरन राजनीति क्षेत्र में भी प्रासंगिक हैं। महावीर का ‘’अहिंसा‘’ का दिव्य संदेश, स्वार्थ प्रवृति एवं संकीर्ण मनोवृत्ति को विराम दे सकता है, चुनावी हिंसा और आतंक को रोक सकता है। ‘’सत्य‘’ का आचरण घोटालों में लिप्त राजनेताओं एवं नौकरशाहों को राष्ट्रहित की प्रेरणा दे सकता है। ‘’अचौर्य‘’ और ‘’अपरिगृह‘’ का संदेश, भ्रष्टाचार एवं कालाबाजारी को रोक, सामाजिक विषमता को कम कर सकता है। ‘’जियो एंव जीने दो‘’ का सिद्धांत, आपसी बैरभाव और कटुता को कम कर सकता है। महावीर के अनेकान्तवाद के सच्चे प्रयोग से चुनाव में व्याप्त साम्प्रदायिकता एवं कट्टरता को भगाया जा सकता है।
महावीर का दर्शन सभी के लिये जीवन्त दर्शन है। इसके अभाव में ज्ञानी का ज्ञान, पंडित का पांडित्य, विद्वान की विद्वता, भक्तों की भक्ति, अहिंसकों की अहिंसा, न्यायाधीश का न्याय, राजनेताओं की राजनीति, चिन्तकों का चिन्तन, और कवि का काव्य अधूरा है। महावीर के सिद्धांतों को अस्वीकारना पूर्णत: गलत होगा क्योंकि उनके दर्शन में अहिंसा, अनेकान्त, अपरिग्रह का समग्र दर्शन है जो शाश्वत सत्य की आधारशीला पर प्रारूपित किया गया है।
महात्मा गांधी का जीवन जैन संस्कारों से प्रभावित था। जब मोहनदास करमचंद गांधी ने माता पुतलीबाई से विदेश जाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने अनुमति प्रदान नहीं की, क्योंकि मां को शंका थी कि वह विदेश जाकर मांस आदि का भक्षण करने न लग जाएं। उस समय एक जैन मुनि बेचरजी स्वामी के समक्ष महात्मा गांधी के द्वारा मांस भक्षण न करने की प्रतिज्ञा लेने पर मां ने विदेश जाने की अनुमति दी। इस तथ्य को गाँधी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में लिखा है।
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