हिंदी ने अपनी ज्ञान परंपरा से, भारतीय संस्कृति से विश्व को परिचित कराया है। भारत की संस्कृति का सार्वभौमिक भाईचारा का मूल्य हिंदी में भी दिखता है। हिंदी का किसी भी देश या विदेशी भाषा से किसी तरह का कोई विरोध या प्रतिरोध नहीं है
विश्व मंच पर हिन्दी की गूंज को रेखांकित करने के लिए फिजी का चयन महत्वपूर्ण है। विश्व के अनेक देशों में और गिरमिटिया देशों में भी, हिन्दी के सबसे जीवंत स्वरूप का साक्षात्कार फिजी में होता है। आम बोलचाल की भाषा होने के अतिरिक्त यह वहां की संसद में भी बोली जाती है और संसद में हिन्दी में प्रस्ताव भी पारित होते हैं, यह जानना कई भारतीयों के लिए भी आश्चर्य मिश्रित हर्ष की बात है। जब हम हिन्दी के विश्वबोध की बात करते हैं तो निश्चित ही भाषा के साथ इसका भूगोल भी शामिल होता है। हिन्दी यानी हिन्दुस्थान। हिन्दी यानी उस देश की संस्कृति, जिसने सबको साथ लेकर आगे बढ़ने का भाव पोषित किया।
भाषा केवल व्याकरण से नहीं चलती, भाषा एक व्यवहार से आती है और यह व्यवहार संस्कृति से आता है। भारत की संस्कृति में एक विश्वबोध है। वह एकांगी नहीं है। जो हिन्द का स्वभाव है, वही हिन्दी का स्वभाव है। यही इसकी वैश्विक व्यापकता का आधार है।
भारत या कहिए, हिन्द ने बहुत से आक्रांता और औपनिवेशिक हमले झेले फिर भी अपनी संस्कृति को आक्रांताओं की मजहबी, नस्लीय और वर्गीय हितों तक सिमटी संकीर्ण सोच से बचाए रखा।
बाबर के आक्रमण पर बाबा नानक ने जब ‘खुरासान खसमान किया हिन्दुस्तानु डराइया…’ कहा, तब उन्होंने इसी मजहबी कट्टरता की ओर इंगित किया जो मानवता को रौंद रही थी। सिर्फ ब्रिटिश हितों को पोसने वाला अंग्रेजी राज भी ऐसी ही संकीर्णताओं में जकड़ा था।
भारत किसी एक मत-संप्रदाय के हित की बात नहीं करता। पूरा विश्व, पूरी मानवता अपनी है। कोविड काल में भारत ने मानवता को बचाने के लिए 98 देशों को 23.50 करोड़ से ज्यादा कोरोना वैक्सीन मुहैया कराई। इसी तरह तुर्किये में भीषण भूकम्प आने पर शेष विश्व अभी सोच ही रहा था और भारत ने तत्काल राहत टीम रवाना कर दी। कोई जातीय, धार्मिक, पांथिक भाईचारा नहीं, सार्वभौमिक भाईचारा भारत का संस्कार है।
दो शब्द हैं-कीमत और मूल्य। पहली नजर में दोनों एक से लगते हैं परंतु अंतर है। कीमत चुकाने पर मूल्य स्थापित होते हैं। हिन्दी ने समय के संघर्षों में अपना वैश्विक मूल्य स्थापित किया है। यह मूल्य है मानवता, विश्व बंधुत्व।
कब्जे या लूटने के लिए आक्रमण एक सोच है, आक्रान्ता से बचाना दूसरी संस्कृति है। आक्रांता वर्गीय हित और केवल अपने मजहबी भाईचारे की बात करते हैं। अपने पाले में घसीटना नहीं तो दीवार में चिनवाने, सिर उतरवाने की जिद तक जाते हैं। किंतु हिन्द की चादर बढ़ती ही जाती है। कोई मैल नहीं…
हिन्दी की उदारता, हिन्दी की स्वीकार्यता इसके राम जी जैसी है। अपने सीने से राम जी को लगाए-लगाए जैसे गिरमिटिया अनेक देशों में फैले, वैसे ही अपनी बोलियों, बेटे-बेटियों को समेटे हिन्दी पूरे विश्व में फैली है।
हिन्दी ने अपनी ज्ञान परंपरा से, भारतीय संस्कृति से विश्व को परिचित कराया है। भारत कीसंस्कृति का सार्वभौमिक भाईचारे का मूल्य हिन्दी में भी दिखता है। हिन्दी का किसी भी देश या विदेशी भाषा से किसी तरह का कोई विरोध या प्रतिरोध नहीं है-अनेक भाषाओं के शब्द हिन्दी में समाते चले जा रहे हैं। यही कारण है कि हिन्दी शब्दकोश आज विश्व का सबसे बड़ा भाषिक शब्दकोश है। हिन्दी का जो संस्कार बोध है, जो मूल्य बोध है, वही इसके विश्वबोध को स्थापित करने वाला कारक है।
राम जी को देखिए! हम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं मगर इसके लिए उन्होंने क्या-क्या कीमत नहीं चुकाई… मर्यादा है तो पुरुषोत्तम है। मर्यादा के लिए कीमत चुकानी पड़ती है। आज विश्व भर में-फिजी, मॉरीशस, गयाना, बाली, इंडोनेशिया, अमेरिका, आस्ट्रेलिया-हर जगह हिन्दी और हिन्दी वालों ने स्थान बनाया है। फिजी के उप प्रधानमंत्री प्रो. बिमान प्रसाद विश्व में भारतवंशियों की बढ़ती प्रतिष्ठा के लिए भारतीय संस्कारों को कारण मानते हैं (साक्षात्कार देखें, पेज-6)। संघर्षों में संस्कृति को, संस्कार को बचाए रखते हुए विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्वकारी शक्ति का नाम है हिन्दी।
आज पूरे विश्व में हिन्दी का बोलबाला है। विश्व के 132 देशों में बसे भारतीय मूल के लगभग दो करोड़ लोग हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं। हिन्दी का शिक्षण-प्रशिक्षण अभी विश्व के लगभग 180 विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थानों में चल रहा है। सिर्फ अमेरिका में 100 से अधिक संस्थानों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। यह भविष्यवाणी की गई है कि वैश्वीकरण के दौर में विश्व की कुल 10 भाषाएं ही जीवित रहेंगी और इनमें एक नाम हिन्दी का है।
हिन्दी ने अपनी ज्ञान परंपरा से, भारतीय संस्कृति से विश्व को परिचित कराया है। भारत की संस्कृति का सार्वभौमिक भाईचारे का मूल्य हिन्दी में भी दिखता है। हिन्दी का किसी भी देश या विदेशी भाषा से किसी तरह का कोई विरोध या प्रतिरोध नहीं है-अनेक भाषाओं के शब्द हिन्दी में समाते चले जा रहे हैं। यही कारण है कि हिन्दी शब्दकोश आज विश्व का सबसे बड़ा भाषिक शब्दकोश है। हिन्दी का जो संस्कार बोध है, जो मूल्य बोध है, वही इसके विश्वबोध को स्थापित करने वाला कारक है।
हिन्दुस्थान ने समय और संघर्षों के दौर देखे, किंतु मानवता को रौंदने-रुलाने वाली इस मनोवृत्ति को स्वयं पर हावी नहीं होने दिया। हिन्दुस्थान की संस्कृति की यही उदारता और सब के लिए हृदय के द्वार खोलने का भाव हिन्दी में मिलता है। हिन्दी यानी विश्व बंधुत्व। गिरमिटिया देश या कहीं और, आज हिन्दी को तिलक लगाते भारतवंशीय विविध क्षेत्रों में समाज और विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं बिना किसी कड़वाहट के और अप्रतिम उदारता, उत्साह के साथ।
फिजी की गूंज को ध्यान से सुनिए- जय हिन्दी, जय हिन्दुस्थान! दुनिया हिन्दी की संस्कृति का यही नाद सुन रही है।
@hiteshshankar
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