बरसो पुरानी एक मांग को मुख्यमंत्री धामी ने पूरा करते हुए, चार नवंबर को लोकपर्व ईगास बग्वाल के दिन राजकीय अवकाश घोषित किया है। ईगास बग्वाल को बूढ़ी दीवाली भी कहा जाता है।
ईगास बग्वाल जिसे बूढ़ी दीवाली भी कहा जाता है, दीवाली के 11वे दिन मनाया जाता है। इस दिन सुबह मीठे पकवान बनाए जाते है जिनका स्थानीय देवी देवताओं को भोग लगाया जाता है। इसी दिन शाम को मैला जलाकर लोक नृत्य किया जाता है।
कुमाऊं में ईगास पर्व मनाए जाने के पीछे किदवंती ये है कि भगवान राम के रावण विजय के पश्चात अयोध्या पहुंचने की जानकारी ग्यारह दिन बाद मिली थी इसलिए यहां बूढ़ी दीवाली ग्यारह दिन बाद मनाई जाती है।
गढ़वाल क्षेत्र में कहा जाता है कि गढ़वाल नरेश महिपति शाह ने अपने सेनापति माधो सिंह और अपनी को दीपावली से पहले तिब्बत के राजा से युद्ध के लिए भेजा था। इस दौरान यहां दीवाली पर्व नही मनाया गया जब सेना ग्यारह दिन बाद दवापाघाट विजय श्री हासिल कर लौटी तो यहां दीवाली मनाई गई।
कुछ पुराने बुजुर्ग ये भी कहते है कि उत्तराखंड से बहुत लोग पलायन कर गए है वो दीपावली अपने अपने स्थानों पर मनाते है और ग्यारह दिन बाद वे अपने मूल निवास गांव में लौट कर आते है और अपने ईष्ट देवी देवताओं को मिष्ठान खिलाकर अपना पूजन करते है और मैला जलाकर लोक नृत्य करते है जिसमे देवी देवताओं की खुशी भी शामिल होती है। आमतौर पर चाछडी,झुमेलो नृत्य यहां होते है। बूढ़ी दीवाली के दिन तिल भंगजीरे हिसर के मिष्ठान और चीड़ की पराल से मैला बनाया जाता है।
मुख्यमंत्री धामी ने दी बधाई
लोकपर्व ईगास बग्वाल की शुभ कामनाएं देते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड के लोग अपने रूट्स को याद रखे इसलिए ये पर्व सामूहिक खुशी का पर्व है ,ये राज्य देव भूमि है, यहां की देवी देवता भी हमारी खुशी में शामिल होकर हमें आशीर्वाद देंगे।
इसी वजह से हमने अवकाश घोषित किया है। सुदूर शहरो में रहने वाले उत्तराखंड के निवासी इस पर्व को मनाए अपने मूल गांव आए यही हमारा प्रयास है।
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