संघ यद्यपि राजनीतिक संस्था नहीं है, पर भारत के नागरिक होने के नाते स्वयंसेवक राजनीति में जरूर हैं। ऐसे ही एक स्वयंसेवक अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने पर उन लोगों का ध्यान भी संघ की ओर गया, जो अब तक इसकी उपेक्षा करते थे। उन्हें लगा कि ‘भारतीय जनता पार्टी’ की वृद्धि और विस्तार का रहस्य संघ की कार्यप्रणाली में है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। अत: इसके बारे में अधिकाधिक जानने की इच्छा लोगों में सदा से ही रही है। संघ अपने प्रारम्भ काल से ही प्रचार की ओर से उदासीन रहा। अत: कुछ लोग इसे गुप्त संगठन मानते हैं, तो कुछ हिंसक और राजनीतिक। संघ के बारे में प्रचलित पुस्तकें प्राय: विरोधियों या विदेशी चश्मे से देखने वालों ने लिखी हैं। ऐसा अधिकांश साहित्य अंग्रेजी में है, जिससे तथाकथित बौद्धिक जमात तथा विदेशियों को प्रभावित किया जा सके।
आजादी के बाद प्राय: संघ विचार के विरोधी ही सत्ता में रहे। उन्होंने भी बहुत भ्रम फैलाए, पर संघ ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगा रहा। अत: संघ और बाकी लोगों में कुछ परदा सा बना रहा।
संघ यद्यपि राजनीतिक संस्था नहीं है, पर भारत के नागरिक होने के नाते स्वयंसेवक राजनीति में जरूर हैं। ऐसे ही एक स्वयंसेवक अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने पर उन लोगों का ध्यान भी संघ की ओर गया, जो अब तक इसकी उपेक्षा करते थे। उन्हें लगा कि ‘भारतीय जनता पार्टी’ की वृद्धि और विस्तार का रहस्य संघ की कार्यप्रणाली में है। 2014 और फिर 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने से लोगों का यह विश्वास और दृढ़ हुआ है।
पुस्तक : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
क्या, क्यों, कैसे?
लेखक : विजय कुमार
पृष्ठ : 184
मूल्य : 250 रु. (पेपरबैक संस्करण) प्रभात प्रकाशन
4/19 अरुणा आसफ अली रोड, नई दिल्ली – 110022
सच तो यह है कि संघ को किताबों से नहीं समझा जा सकता। फिर भी जिज्ञासुओं को संघ के बारे में कुछ प्राथमिक जानकारी देने में यह पुस्तक सहायक होगी। इसमें सिद्धांत की कम और व्यवहार की बातें अधिक हैं। पुस्तक के पहले अध्याय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाहरी स्वरूप का वर्णन है, जो सार्वजनिक रूप से सबको दिखता है।
यह बताता है कि ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्या’ है? दूसरे, तीसरे और चौथे अध्याय में संघ का विचार और उससे प्रेरित होकर स्वयंसेवकों द्वारा समय-समय पर किए गए कुछ ऐसे कामों का उल्लेख है, जो इतिहास में दर्ज हैं। इससे प्रकट होता है कि हिन्दू संगठन होने के बावजूद संघ का दायरा इससे कहीं अधिक बड़ा है।
यह संघ की आवश्यकता अर्थात् ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ क्यों’ को समझाने का प्रयास है। पांचवें अध्याय में संघ से प्रेरित होकर हर क्षेत्र में स्वयंसेवकों द्वारा निर्मित संस्थाओं और संगठनों का वर्णन है। यह बताता है कि 1925 में नागपुर में छोटे बच्चों के साथ शुरू हुए संघ ने जमीनी विस्तार और वैश्विक प्रभाव में वृद्धि कैसे की?
पुस्तक का एक अध्याय ‘कुछ अटपटे प्रश्न’ है। इसमें संघ के बारे में षड्यंत्रपूर्वक जो झूठ फैलाए गए हैं, उनका उत्तर बहुत सरल और रोचक शैली में दिया है। जैसे ‘संघ मराठी ब्राह्मणों का संगठन है’,‘ यह महिला और आरक्षण का विरोधी, जबकि जाति और वर्ण व्यवस्था का समर्थक है’, ‘पुरातनपंथी होने के कारण यह देश में हिन्दी और संस्कृत थोपना चाहता है’, ‘यह मुसलमान और ईसाइयों का विरोधी तथा गांधीजी का हत्यारा है’, ‘यह फासीवादी है’… आदि।
‘संकट और उपलब्धियां’ अध्याय बताता है कि देश, धर्म, समाज और फिर खुद पर भी आए संकटों को किस प्रकार धैर्य, अनुशासन और कुशल नेतृत्व के बल पर संघ ने झेला और अपने काम को बढ़ाया। स्वयंसेवकों द्वारा शुरू किए गए 38 संगठनों और संस्थाओं की उनके पते तथा वेबसाइट सहित अद्यतन जानकारी भी इसमें दी गई है।
पुस्तक की एक अन्य विशेषता इसकी सरल भाषा शैली है। इसके लेखक विजय कुमार आठ वर्ष ‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका में सहायक संपादक रहे हैं। अनेक पत्र-पत्रिकाओं के वे नियमित लेखक हैं। अब तक कई विधाओं में उनकी 15 पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। लगभग 100 अधिकृत संदर्भों के कारण यह पुस्तक शोधार्थियों, लेखक और पत्रकारों के लिए अत्यधिक उपयोगी है। अनेक ऐसे तथ्य और घटनाओं की भी इसमें चर्चा है, जो अल्पज्ञात हैं या जिन्हें जानबूझ कर सामने नहीं आने दिया गया।
इसकी प्रस्तावना प्रख्यात लेखक, पत्रकार, दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक तथा राज्यसभा सांसद प्रोफेसर राकेश सिन्हा ने लिखी है। कुल मिलाकर यह संघ को समझने और दूसरों को समझाने के लिए एक अच्छी पुस्तक है। इसलिए इसका स्वागत होना चाहिए। यह इंटरनेट के प्रमुख बिक्री केन्द्रों पर तथा ई.बुक के रूप में भी उपलब्ध है।
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