भारत को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने में भारत माता के वीर सपूतों ने अपने प्राणों तक की परवाह नहीं की। इन अमर सपूतों की अनगिनत गाथाएं हैं। ब्रिटिश हुक्मरान द्वारा उन पर किए गए अत्याचारों की कहानी आज भी झकझोर देती है। इन अमर बलिदानियों का त्याग स्तुत्य है। भारत को बेड़ियों से मुक्त कराने में अक्षरों का, गीतों का भी योगदान रहा है।
ऐसे गीतों और लोकगीतों को एकत्र कर, एक सूत्र में पिरोकर पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने मुक्तिगाथा का प्रस्तुतिकरण तैयार किया है। इसमें ठुमरी, कजरी, फाग, बिरहा, आल्हा, प्रार्थना, गजल एवं बंदिशों के माध्यम से आजादी की पूरी कहानी कही गई है। पचास कलाकारों के अथक परिश्रम से इसे तैयार किया गया है। वीरों की इस शौर्य गाथा का आयोजन उत्तर प्रदेश के लखनऊ में 1 जुलाई को सायं 6.30 बजे से संत गाडगे प्रेक्षागृह, संगीत नाटक अकादमी में होगा। इसमें राज्यपाल आनंदीबेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी और उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह शामिल होंगे।
प्रख्यात लोकगायिका मालिनी अवस्थी कहती हैं कि भारतवर्ष आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से मना रहा है। यह आजादी हमें लम्बे संघर्ष के बाद प्राप्त हुई है। हमें स्वतंत्रता दिलवाने में भारत के अशेष वीर सपूतों का स्तुत्य योगदान रहा है, जिनके त्याग और बलिदान की शौर्यगाथा गीतों के रूप में लोककंठों में अमर हो गई। इन गीतों की लोकप्रियता से भयभीत होकर ब्रिटिश सरकार ने इन गानों को प्रतिबंधित कर दिया था। ऐसे गीतों एवं लोकगीतों से बुनी हुई भारत की मुक्तिगाथा का प्रस्तुतीकरण तैयार किया गया है। जिसमें ठुमरी, कजरी, चैती, पूर्वी, फाग, बिरहा, आल्हा, ग़ज़ल एवं बंदिशों के माध्यम से वाचन करते हुए, आज़ादी की पूरी कहानी कही गई है।
भारत को स्वाधीनता दिलाने में उस समय के संयुक्त प्रांत अर्थात आज के उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण स्थान था। स्वाधीनता संग्राम की जो चिंगारी मेरठ में भड़की, वह लखनऊ, कानपुर, झांसी से भड़कती हुई पूरे देश में फैली। मंगल पांडेय, रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब, बेगम हजरत महल के शौर्य ने आजादी का बिगुल बजाया। चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु, अशफाकउल्ला खां ने अंग्रेजी हुकूमत को लोहे के चने चबवा दिए। इनके बलिदान की गाथा गांव-गांव में गूंज रही थी। इन गीतों से जन-जन में स्वाधीनता की अलख जाग उठी। भारत की चेतना स्वत्व को प्रकाशित करने के लिए हिलोर लेने लगी। इन गीतों से अंग्रेज भयभीत हुए और उन्होंने इन पर पाबंदी लगा दी। आजादी मिलने के बाद ये गीत प्रकाशित हुए। इनका नवीनतम संकलन वर्ष 2016 में राष्ट्रीय संग्रहालय, भारत सरकार ने प्रकाशित किया। ऐसे गीतों एवं लोकगीतों को एकत्र कर, एक सूत्र में पिरोकर पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने मुक्तिगाथा का प्रस्तुतिकरण किया है।
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