खालिस्तानी समर्थक मो धालीवाल, आईएसआई के लिए काम करने वाला पीटर फ्रेडरिक, मोनिका गिल, प्रीत कौर गिल, आसिस कौर, क्लाउडिया वेबबे जैसे भारत विरोधियों के बीच भारत में किसान आंदोलन का चेहरा बने राकेश टिकैत को देखना क्या किसी भारतीय को पसंद आ सकता है?
जब प्रधानमंत्री द्वारा तीन कृषि कानून वापसी की घोषणा हुई, उसके बाद 22 नवंबर 2021 को ‘कौर (कोर) किसान’ नाम के एक संगठन की ओर से एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित किया गया। इसमें भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत के अलावा ये सभी खालिस्तान और आईएसआई समर्थक भी शामिल हुए।
गुपचुप तरीके से हुए वेबीनार की यह खबर कभी सामने नहीं आ पाती। यह जानकारी ‘व्हेयर-इज-प्रूफ’ नाम के एक ट्विटर हैंडल और कुछ खोजी वेबसाइट की वजह से सार्वजनिक हो पाई है। इस वेबीनार में हुए संवाद के संबंध में जिस तरह की जानकारी सामने आ रही है, उससे यही लगता है कि राकेश टिकैत कथित आंदोलन के पुर्जा मात्र हैं। इस आंदोलन को चलाने के लिए खर्चा किसी और का है और राकेश टिकैत जिस बयान को मीडिया के सामने पढ़ रहे हैं वह पर्चा भी किसी और का है।
जूम मीटिंग में जिस संगठन की ओर से ये मीटिंग आयोजित की गई थी, उस ‘कौर फार्मर्स’ की मेज़बान राज कौर ने टिकैत की खूब तारीफ की। खालिस्तानियों और आईएसआई हक में यदि राकेश काम करेंगे तो उनके बीच प्रशंसा पाएंगे ही। 26 जनवरी, 2021 को लाल किले की प्राचीर पर राकेश टिकैत समर्थकों का चढ़ जाना और दिल्ली में जगह—जगह हिंसा और अराजकता फैलाने की खबर आना, कौन भूल सकता है? उसके बाद यह आंदोलन खत्म मान लिया गया था। लोकतांत्रिक मूल्यों का हवाला देकर प्रारंभ हुए आंदोलन के पास इतनी हिंसा फैलाने के बाद, आंदोलन को जारी रखने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बचता था। लेकिन एक नाटकीय घटनाक्रम के बाद यह आंदोलन जारी रहा।
नाटकीयता से पहले एक बात हुई थी। जिसकी चर्चा दिल्ली में मीडिया वालों के बीच हुई लेकिन वह खबर रिपोर्ट नहीं हुई। यदि वेबीनार का आडियो और स्क्रीनशॉट एक खबरिया वेबसाइट के पास नहीं होता तो यह महत्वूपर्ण खबर भी रिपोर्ट नहीं हो पाती। जनवरी महीने की अंतिम तारीख को यह बात सामने आई कि राकेश टिकैत आंदोलन को खत्म करने के पक्ष में थे, लेकिन देश की सरकार को अस्थिर करने का यह आंदोलन जिनका टूल किट है, ऐसे कुछ लोग राकेश के टैन्ट में गए थे। उनके जाने के बाद ही राकेश मीडिया के सामने आकर रोए और लेफ्ट—लिबरल मीडिया अचानक से सक्रिय हो गई। ऐसा लगा कि जिस आंदोलन ने नैतिक समर्थन खो दिया था, उसे खालिस्तानी—बल ने एक बार फिर से खड़ा कर दिया। यदि राकेश टिकैत के टेन्ट में सीसीटीवी कैमरा होता तो यह खबर भी सिर्फ चर्चा में नहीं रहती। संभव है कि इसे एक प्रामाणिक आधार मिल पाता।
जब कृषि कानून निरस्त किए गए। उसके बाद भी टिकैत आंदोलन को खत्म ना करने के लिए मजबूर थे। ऐसा उनके बयानों से लग रहा था। मानों उन्होंने वर्ष 2022 और वर्ष 2024 तक किसानों के नाम पर प्रदर्शन के लिए किसी संगठन से अग्रिम ले रखा हो।
तीन कानून वापसी होने के बाद राकेश ने खुशी नहीं जताई। वे अधिक दुखी दिखे। अब उनके एजेंडे से तीन कृषि कानून का मुद्दा हट गया। अब वे एमएसपी, प्रदर्शनकारियों की मौत जैसे विषयों के साथ मैदान में आ डंटे। सरकार इन मुद्दों को सुलझाने के लिए पहल कर रही है, दूसरी तरफ राकेश जिनके साथ जूम मीटिंग कर रहे हैं, वे लोग इसे उलझाने की उन्हें नई—नई तरकीब बता रहे हैं।
यदि बैंकों के मुद्दे पर सहमति बन जाती है तो निजीकरण और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी हैं उनके झोले में, जिन्हें लेकर उन्हें 2022—24 तक अपने आंदोलन को प्रासंगिक बनाए रखना है। जिनके पास प्रीपेड मोबाइल हैं, वे इस बात को अधिक बेहतर तरह से समझ सकते हैं कि ऐसा मोबाइल उतना ही चलता है, जितने का रिचार्ज होता है। राकेश टिकैत के आंदोलन को देखने और समझने वाले यह कह रहे हैं कि उनके आंदोलन की वेैलीडिटी मई, 2024 तक की है, क्योंकि राकेश के आंदोलन में रिचार्ज उतने का ही हुआ है।
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