शंघाई सहयोग संगठन या एससीओ के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर इन दिनों चीन में हैं। वे सिंगापुर से सीधे इस बैठक के लिए बीजिंग पहुंचे। बैठक आरम्भ होने से पूर्व उनकी चीन के तीन बड़े नेताओं से वार्ता होना भारत—चीन संबंधों में महत्वपूर्ण आयाम जोड़ गया है। जयशंंकर ने चीन के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और विशेष रूप से विदेश मंत्री से अपनी वार्ता में सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए सीमा विवाद से लेकर व्यापार में सहयोग तक के बिन्दुओं का उल्लेख किया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अपनी सौहार्द भेंट के बाद जयशंकर ने ट्वीट करके बताया कि उन्होंने चीनी राष्ट्रपति को द्विपक्षीय संबंधों में हो रही प्रगति की जानकारी दी। इससे पूर्व भारत के विदेश मंत्री ने उपराष्ट्रपति हान झेंग और विदेश मंत्री वांग यी से भी मुलाकात की थी। उनकी ये वार्ताएं निश्चित रूप से द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत देती है। यह वार्ता न केवल राजनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि इससे क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक सहयोग और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी नई दिशा मिल सकती है।

दरअसल पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के बाद यह जयशंकर की यह पहली चीन यात्रा है। इससे दिखता है कि दोनों देश अब उच्च स्तर पर संवाद के माध्यम से समस्याओं को सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। चीनी नेताओं से अपनी बातचीत में जयशंकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि सीमा विवादों का समाधान और द्विपक्षीय संबंधों का सामान्यीकरण दोनों देशों के लिए लाभकारी होगा।उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय स्थिति बहुत जटिल है और ऐसे में भारत-चीन जैसे पड़ोसी देशों के बीच खुले विचार-विमर्श की पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है।
यहां ध्यान रहे कि भारत और चीन दोनों ‘ग्लोबल साउथ’ के प्रमुख सदस्य हैं। ऐसे में इनकी साझेदारी इस क्षेत्र के लिए एक सशक्त आवाज बन सकती है। जयशंकर ने चीन की एससीओ अध्यक्षता के प्रति भारत का समर्थन जताया, जो बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग को दर्शाता है। यह वार्ता ऐसे समय में हो रही है जब विश्व राजनीति में ध्रुवीकरण के संकेत दिख रहे हैं। भारत और चीन का संवाद इस ध्रुवीकरण को संतुलित करने में सहायक हो सकता है।
जयशंकर और वांग यी की इस मुलाकात के बाद, अगले महीने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल और वांग यी के बीच विशेष प्रतिनिधि तंत्र के तहत वार्ता की योजना है। यह दशकों पुराने एलएसी विवाद को सुलझाने की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है। इससे न केवल सैन्य तनाव में कमी आएगी, बल्कि सीमा पर स्थायी शांति की संभावना भी बढ़ेगी।

इसके साथ ही 5 वर्ष के अंतराल के बाद कैलास मानसरोवर यात्रा की बहाली भारत में बहुत सराही गई है। यह यात्रा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि भारत-चीन सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक भी मानी जाती है। कैलास यात्रा के प्रति भारत के श्रद्धालुओं में असीम उत्साह का भाव रहता है। कैलास पर्वत और मानसरोवर झील को हिंदू, बौद्ध और जैन पंथ में बहुत पवित्र माना जाता है। इस यात्रा के माध्यम से भारत के नागरिकों को धार्मिक और आध्यात्मिक जुड़ाव का अवसर मिलता है। इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा चीनी धरती से गुजरता है इसलिए चीन की इस यात्रा के लिए रजामंदी बहुत जरूरी थी, जो 5 साल बाद इस बार संभव हो पा रही है। यात्रा की बहाली को विश्वास बहाली के उपाय के रूप में देखा जा सकता है, जिससे आम नागरिकों के बीच संपर्क बढ़ेगा।
चीन के विदेश मंत्री और जयशंकर के बीच चर्चा में दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की बहाली, मीडिया संवाद और थिंक टैंक सहयोग जैसे उपायों पर भी सहमति जताई गई है। इससे व्यापारिक संबंधों में गति आएगी और जन स्तर पर समझ और सहयोग भी बढ़ सकता है। इस वर्ष भारत और चीन ने 750 तीर्थयात्रियों को कैलास यात्रा के लिए चुना है।
भारत और चीन ने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ भी मनाई है, जो इस यात्रा और वार्ता को ऐतिहासिक संदर्भ देती है। सीमा विवादों को सुलझाने की इच्छा, व्यापार और सांस्कृतिक संपर्क को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता और कैलास मानसरोवर यात्रा की बहाली जैसे पहलू इस बात की पुष्टि करते हैं कि दोनों देश अब संवाद और सहयोग के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं।
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