अमेरिका ने दो दिन पहले ईरान की तीन परमाणु साइट्स पर जबरदस्त हमले बोलकर उनके ढांचे को गंभीर नुकसान पहुंचाया था। अमेरिकी बमवर्षक ने सटीक निशाने लगाते हुए, तीनों ठिकानों को ध्वस्त किया है। उपग्रह चित्रों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि जमीन से सैकड़ों फीट नीचे मौजूद परमाणु साइटों को लगभग पंगु बना दिया गया है। इस हमले के बाद अमेरिकी उपराष्ट्रपति जे. डी. वेंस ने बयान दिया कि ईरान अब कभी परमाणु हथियार नहीं बना पाएगा। वेंस के इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति, सुरक्षा रणनीति और पश्चिम एशिया की स्थिरता को लेकर गंभीर चर्चा छेड़ दी है। यह बयान साफ बताता है कि अमेरिका ने ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों—फोर्डो, नतांज़ और इस्फहान—को बंकर-भेदी बमों से पूरी तरह नष्ट कर दिया है। लेकिन इस अमेरिकी हमले के रणनीतिक, कूटनीतिक और संभावित दीर्घकालिक असर को लेकर विशेषज्ञों में बइस छिड़ी है। यह सही है कि ईरान ने इस अमेरिकी हमले की प्रतिक्रिया कतर में मौजूद अमेरिकी एयरबेस पर बम बरसाए हैं और भविष्य में भी मुंहतोड़ जवाब देने की धमकी दी है। इस सबके बीच संघर्षविराम को लेकर भी अटकलों का बाजार गर्म है। दोनों की पक्षों के तेवर अब भी आक्रामक बने हुए हैं। ईरान द्वारा इस्राएल पर बम गिराने के समाचारों के बीच इस्राएल के रक्षा मंत्री ने पलटवार की धमकी भी दी है। लेकिन वेंस ने ईरान के परमाणु ठिकानों की बर्बादी को लेकर जो बयान दिया है, उसके मायने क्या हैं? क्या सच में ईरान का परमाणु कार्यक्रम ठप पड़ जाएगा?
अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर वह हमला ‘ऑपरेशन मिडनाइट हैमर’ के तहत सात बी-2 स्टील्थ बॉम्बर्स और 125 सैन्य विमानों की मदद से किया था। उन हमलों में 13.5 किलो वजनी बंकर-भेदी बमों का इस्तेमाल किया गया था, जिन्हें विशेष रूप से भूमिगत ठिकानों को नष्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उपराष्ट्रपति वेंस ने दावा किया कि वह हमला इतना सटीक था कि ‘वॉशिंग मशीन जितने’ लक्ष्य को भी भेद डाला।

हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों ने यह भी स्वीकार किया कि फोर्डो जैसे जमीन में बहुत गहरे बने ठिकानों को पूरी तरह नष्ट करना कठिन है, और उसके “पूरी तरह नष्ट” होने की पुष्टि करने में अभी और समय लगेगा। उधर वेंस ने स्पष्ट किया कि अमेरिका ईरान से युद्ध नहीं कर रहा, बल्कि उसके परमाणु कार्यक्रम से लड़ रहा है। यह बयान इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका का उद्देश्य वहां की सत्ता को बदलना नहीं, बल्कि परमाणु हथियारों के बनने की संभावना को समाप्त करना है। यह एक सीमित लेकिन दमदार सैन्य कार्रवाई थी।
दूसरी ओर ईरान ने इन हमलों को “कूटनीति की हत्या” बताया है और जवाबी कार्रवाई की चेतावनी दी है। हालांकि, अभी तक उसकी प्रतिक्रिया सीमित रही है। लेकिन यह आशंका बनी हुई है कि ईरान इस हमले को ‘आक्रामकता’ मानते हुए अपने परमाणु कार्यक्रम को और तेज़ कर सकता है, या फिर गुपचुप हथियार बनाने की दिशा में बढ़ सकता है।
अमेरिका के इस हमले पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने ‘गंभीर चिंता’ जताई है, जबकि रूस और चीन जैसे देश अमेरिका की इस कार्रवाई को एकतरफा और तनाव बढ़ाने वाला कदम मान रहे हैं। ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए हुए हैं। इसलिए हो सकता है इस हमले को वह अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताए।
वेंस ने साफ कहा है कि अमेरिका चाहता है कि ईरान दीर्घकालिक समाधान के लिए बातचीत के लिए आगे आए। लेकिन अब इस सैन्य कार्रवाई के बाद ईरान की ओर से कूटनीतिक वार्ता की संभावना धुंधला सकती है। यदि ईरान ने अपने परमाणु वैज्ञानिकों और सामग्री को वहां से हटाकर कहीं और सुरक्षित रखा हुआ है, तो वह कुछ साल के अंदर फिर से अपना परमाणु कार्यक्रम शुरू कर सकता है।
उपराष्ट्रपति जे. डी. वेंस ने दावा तो ये किया है कि ‘ईरान अब कभी परमाणु हथियार नहीं बना पाएगा’, लेकिन यह उनके रणनीतिक आत्मविश्वास का प्रतीक होने के साथ ही, तकनीकी और राजनीतिक दृष्टि से कुछ ज्यादा ही बड़ा दावा दिखाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान के पास अब भी समृद्ध यूरेनियम, वैज्ञानिक दक्षता और राजनीतिक इच्छाशक्ति है, जो उसे भविष्य में फिर से परमाणु कार्यक्रम शुरू करने के लिए आगे बढ़ा सकती है। यह हमला भले ही तात्कालिक रूप से ईरान की क्षमता में अड़चन डाल दे, लेकिन इस मामले का दीर्घकालिक समाधान केवल कूटनीति और पारदर्शिता से ही संभव है।
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