"कालजयी वीरांगना मणिकर्णिका : आखिर रानी लक्ष्मीबाई को इतिहास में कब मिलेगा न्याय..?
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“कालजयी वीरांगना मणिकर्णिका : आखिर रानी लक्ष्मीबाई को इतिहास में कब मिलेगा न्याय..?

कालजयी वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्य तिथि 18 जून, पर शत् शत् नमन कर,नई शिक्षा नीति के बी.ए.तृतीय वर्ष इतिहास के माइनर/ इलेक्टिव पाठ्यक्रम पर आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए प्रेषित है)

by डॉ. आनंद सिंह राणा
Jun 18, 2025, 09:04 pm IST
in भारत, मत अभिमत
चित्र प्रतीकात्मक- गूगल द्वारा लिया गया

चित्र प्रतीकात्मक- गूगल द्वारा लिया गया

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कालजयी वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई, आपके साथ अभी तक न्याय नहीं हुआ!!! यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि नई शिक्षा नीति में भी, आपके स्वतंत्रता संग्राम को विद्रोह पढ़ाया जा रहा है। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के पहले भी यही इतिहास पढ़ाया जाता रहा,! जिसे तत्कालीन सरकार के समर्थन से पाश्चात्य, वामी और तथाकथित सेक्युलर इतिहासकारों ने लिखा परंतु अब हम क्या कर रहे हैं? इसका भी आत्म अवलोकन करना चाहिए?

नई शिक्षा नीति लागू हो गई, स्वाधीनता का अमृत महोत्सव निकल गया और अमृत काल चल रहा है! फिर भी हम पाठ्यक्रम में बदलाव न कर पाए तो धिक्कार है?ये कौन लोग हैं जो पाठ्यक्रम बनाने गए थे? बनाने क्या गए थे और बना क्या बैठे? यदि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम को विद्रोह ही पढ़वाना था तो पाठ्यक्रम बनाने की आवश्यकता क्या थी?इधर इतिहास संकलन समितियाँ इतिहास का पुनर्लेखन करके दे रही हैं परंतु पाठ्यक्रम में ठीक तरह से शामिल ही नहीं किया जा रहा है? तो फिर पद पैसे और समय की बर्बादी क्यों ?ऐसे बदलेगा मत प्रवाह ( नैरेटिव )?बंद करिए पाठ्यक्रम को बदलने की नौटंकी?

क्षमा कीजिएगा राजमाता वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मीबाई आज आपकी पुण्य तिथि पर कड़वे वचन लिखने पड़े। आपने स्व के लिए सर्वस्व अर्पित किया। मातृभूमि की रक्षा करने के लिए बलिदान देकर देवीय स्वरुप को साकार किया।

इसलिए यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि
“या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थिता..मातृरुपेण संस्थिता.. मणिकर्णिका रुपेण संस्थिता..महारानी लक्ष्मीबाई रुपेण संस्थिता.. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।

यदकिंचित यह भी कि ऋग्वेद के देवी सूक्त में माँ आदिशक्ति स्वयं कहती हैं,”अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां,अहं रूद्राय धनुरा तनोमि “अर्थात मैं ही राष्ट्र को बांधने और ऐश्वर्य देने वाली शक्ति हूँ, और मैं ही रुद्र के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाती हूं। हमारे तत्वदर्शी ऋषि मनीषा का उपरोक्त प्रतिपादन वस्तुत: स्त्री शक्ति की अपरिमितता का द्योतक है, जिसका स्वरुप झांसी की रानी लक्ष्मी बाई में आलोकित होता है।

वीरांगना लक्ष्मीबाई की वीर गाथा का जब भी स्मरण करता हूँ तो जाने क्यों उनमें गोंडवाने की महान् वीरांगना रानी दुर्गावती का अक्स दिखता है,वही देवीय स्वरुप ,वही तीखे नैन-नक्श,वही तेज,वही स्वाभिमान ,वही कर्तव्य बोध,वही मातृ बोध,वही राष्ट्र के लिए आत्मोत्सर्ग की ललक- “मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी” और संस्कारधानी में इनका अक्स वीरांगना श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान में दिखता है।
ऐंसा लगता है कि मणिकर्णिका अपनी गाथा लिखने और स्वतंत्रता संग्राम में पुनः अपनी भागीदारी के लिए सुभद्रा जी के रुप में अवतरित होती हैं. और लिखती हैं “खूब लड़ी मरदानी, वो तो झाँसी वाली रानी थी।”

रानी लक्ष्मीबाई की वीरता से प्रभावित होकर और लड़ाई के मैदान में रानी से कई बार हारकर भाग चुके अंग्रेज जनरल ह्यूरोज ने कहा था कि-” यहां वह औरत सोई है जो विद्रोहियों में एकमात्र मर्द थी।”

एडविन अर्नाल्ड झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के पराक्रम का वर्णन करते हुए ,उनकी उपमा इंग्लैंड
रानी बौदिका (बोडिसिया) से क़ी है। इंग्लैंड के इतिहास में एक शक्तिशाली महिला थीं।ब्रिटेन ने कई वीर और महान योद्धाओं को जन्म दिया है, जिन्होंने ब्रिटेन को आज़ाद रखने के लिए लड़ाई लड़ी, लेकिन रानी बौदिका का नाम कभी नहीं भुलाया जा सकता।वहीँ डब्ल्यू सी. टारस ने अपने ग्रंथ में लिखा है कि “तुमुल और भयंकर युद्ध में कई घंटों तक घनघोर युद्ध व परिश्रम करने पर भी महारानी किसी प्रकार से रण से पीछे ना हटती थी।”

भारत माता की गोद में एक से बढ़कर एक वीरांगनाओं ने जन्म लिया जिनमें वीरांगना रानी दुर्गावती, देवी अहिल्याबाई होल्कर और महारानी लक्ष्मीबाई विलक्षण हैं क्योंकि तीनों वीरांगनाओं ने विधवा होते हुए परिवार से ऊपर उठकर संकटापन्न परिस्थितियों में अपनी मातृभूमि और प्रजा जन के हित में सर्वस्व अर्पित कर नारी सशक्तिकरण की मिसाल कायम की है,इसलिए भारत में राजमाता के रूप में सदैव पूजनीय रहेंगी।

‘पुनः वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की पुण्य तिथि पर शत् शत् नमन है।🙏 🙏

(डिस्क्लेमर : स्वतंत्र लेखन। यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं; आवश्यक नहीं किपाञ्चजन्य उनसे सहमत हो।)

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