सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्याओं के बाद एक बार फिर भारत में रह रहे घुसपैठियों पर अहम टिप्पणी की है। मानवाधिकार के नाम पर जो अधिवक्ता एवं अन्य भारत में हो रही घुसपैठ को सही ठहराने एवं जो यहां आ गए हैं, उन्हें बसाए रखने की वकालत करते हैं, वास्तव में यह निर्णय उन सभी के लिए कोर्ट द्वारा दिखाया गया एक आईना है। न्यायालय बार-बार यह कहना चाहता है कि पहले अपने देश के लोगों की चिंता करो, जब अपने ही लोगों की जनसंख्या आवश्यकता से अधिक हो, तब दूसरों का अतिरिक्त भार देश नहीं सह सकता।
ताजा प्रकरण श्रीलंकाई नागरिक से जुड़ा है, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने कहा, “क्या भारत को दुनिया भर से शरणार्थियों की मेजबानी करनी है? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। यह (भारत) कोई धर्मशाला नहीं है कि हम हर जगह से विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकें।” हम हर कोने से आए शरणार्थियों को शरण नहीं दे सकते। यहां इस प्रकरण में श्रीलंकाई याचिकाकर्ता के वकीलों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दी गई जानकारी के अनुसार, वह वीजा पर भारत आया था। उसे उसके देश में जान का खतरा है। न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा, “आपको यहां बसने का क्या अधिकार है?” वकील ने जवाब दिया, “याचिकाकर्ता एक शरणार्थी है।” न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, “अनुच्छेद 19 के अनुसार, केवल भारत के नागरिकों को ही भारत में बसने का मौलिक अधिकार है। अगर उनकी जान को खतरा है, तो उन्हें दूसरे देश चले जाना चाहिए,” भारत ही क्यों?
देखा जाए तो अदालत का यह निर्णय भी अभी कुछ दिन पहले रोहिंग्याओं को लेकर दायर की गई याचिकाओं पर आए सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों एवं दिए गए पूर्व निर्णय की तरह ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि रोहिंग्या म्यांमार और बांग्लादेश से घुसपैठ कर भारत में प्रवेश कर गए, यह मामला श्रीलंका के नागरिक से जुड़ा है। वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि रोहिंग्याओं का भारत में अवैध रूप से रहना देश की सुरक्षा के लिए खतरा है। इसलिए अवैध तरीके से भारत में रहने वालों के खिलाफ कानून के अंतर्गत कार्रवाइयां की जाती रहेंगी। केंद्र सरकार ने तत्कालीन समय में कोर्ट को यह भी बताया था कि किस हद तक भारत पहले ही बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठ का सामना कर रहा है, जिसके चलते कुछ सीमावर्ती राज्यों (असम और पश्चिम बंगाल) की जनसांख्यिकी प्रोफाइल बदल गई है। तब सरकार से जवाब से कोर्ट संतुष्ट नजर आई थी। पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी सुनवाई के दौरान कहा था, भारत ने पहले ही कई शरणार्थियों को शरण दी है, लेकिन अब यह संभव नहीं। शरणार्थियों की मौजूदगी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकती है, और भारत के सीमित संसाधनों को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा उठाया जा रहा यह कदम जरूरी है। इसी प्रकार की टिप्पणियां इसी माह के दूसरे सप्ताह में रोहिंग्याओं को लेकर कोर्ट की सामने आई थी।
सरकार और सुप्रीम कोर्ट का रुख देश की सुरक्षा के पक्ष में है। दूसरी ओर ये कुछ मानवाधिकार संगठन और कुछ विपक्षी दलों के नेता हैं, जिन्हें देश की सुरक्षा से अधिक रोहिंग्या एवं ऐसे ही अन्य “निर्दोष शरणार्थी” नजर आते हैं। आश्चर्य होता है कि सुप्रीम कोर्ट के दो टूक कहने के बाद भी मानवाधिकार का हवाला देने वाले बार-बार उसके पास पहुंच रहे हैं! न्यायालय अपनी ही बात दोहरा रहा है कि ‘शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) द्वारा जारी पहचान पत्र उनके लिए कोई मददगार नहीं हो सकते हैं।’ वास्तव में “यदि वे विदेशी अधिनियम के अनुसार विदेशी हैं, तो उन्हें निर्वासित किया जाना चाहिए।” इन्हें तत्काल निर्वासित किया जाए।
दूसरी ओर इन घुसपैठियों को भारत को बाहर करने के सुप्रीम निर्णय को आज केंद्रीय गृह मंत्रालय की सभी राज्यों के लिए निर्देश ने एक नई दिशा भी दे दी है। : केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों से कहा गया है कि अवैध अप्रवासियों का वेरिफिकेशन करने के लिए एक महीने की डेडलाइन है। गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अवैध घुसपैठियों का पता लगाने, उनकी पहचान करने और उन्हें निर्वासित करने के लिए अपनी वैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल करने को कहा है। इसके लिए आवश्यकतानुसार ऐसे व्यक्तियों को रखने के लिए पर्याप्त जिला-स्तरीय डिटेंशन सेंटर स्थापित करने के लिए भी कहा गया है।गृह मंत्रालय ने बांग्लादेश और म्यांमार से अवैध घुसपैठियों होने का संदेह रखने वाले उन लोगों के प्रमाण-पत्रों को सत्यापित करने के लिए 30 दिन की समय-सीमा तय की है जो भारतीय नागरिक होने का दावा करते हैं। स्वाभाविक तौर पर अब ऐसे में यही माना जा रहा है कि 30 दिन की अवधि के बाद यदि किसी के दस्तावेजों का सत्यापन नहीं किया जाता है तो उन्हें निर्वासित किया ही जाएगा।
इसके साथ ही, अप्रवास ब्यूरो को सार्वजनिक पोर्टल पर निर्वासित लोगों की सूची प्रकाशित करने के लिए कहा गया है। यह डेटा यूआईडीएआई, चुनाव आयोग और विदेश मंत्रालय के साथ भी साझा किया जाएगा। ताकि भविष्य में ऐसे व्यक्तियों को आधार आईडी, वोटर कार्ड या पासपोर्ट जारी करने से रोका जा सके। वैसे भी इस वर्ष फरवरी में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इस संबंध में चेतावनी देते नजर आए थे, उस वक्त उन्होंने साफ कह दिया था कि अवैध घुसपैठियों का मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है और इससे सख्ती से निपटा जाएगा। उनकी पहचान कर उन्हें निर्वासित किया जाना जाएगा। तब से, राजस्थान और गुजरात राज्यों ने बांग्लादेश से अवैध अप्रवासी होने के संदेह में लोगों की पहचान करने और उन्हें हिरासत में लेने का क्रम जारी है। अब तक कई राज्यों से ये घुसपैठिए रोज पकड़े जा रहे हैं और उन्हें देश से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।
स्वभाविक है कि इन परिस्थितियों में भी जो लोग आज इन घुसपैठियों का साथ देने न्यायालय में खड़े हो रहे हैं, उन्हें एक बार अवश्य सोचना चाहिए कि क्या वह ऐसा करके अपने देश के साथ मानवाधिकार के नाम पर अन्याय तो नहीं कर रहे! क्योंकि देश हित से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता है।
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