नरेला, दिल्ली । एक सड़क दुर्घटना ने भले ही 21 वर्षीय कुसुम की सांसें छीन लीं, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के संस्कारों से ओतप्रोत उनके परिवार ने इस कठिन क्षण को भी समाज सेवा का माध्यम बना दिया। परिवार ने अंगदान करके न केवल अपनी बेटी की स्मृति को अमर किया, बल्कि कई और ज़िंदगियों को एक नई सुबह प्रदान की।
दरअसल नरेला के स्वतंत्र नगर की रहने वाली कुसुम मिरांडा हाउस कॉलेज में बीएलएड कोर्स की अंतिम वर्ष की छात्रा थीं, वह 13 अप्रैल को अपनी छोटी बहन और भाई के साथ स्कूटी पर सवार होकर बड़ी बहन से मिलने जा रही थीं। तभी स्मृति वन के पास एक वाहन ने टक्कर मार दी, जिससे तीनों घायल हो गए। इस हादसे में कुसुम अत्याधिक रूप से गंभीर चोट लगी। कई दिनों के तमाम प्रयासों के बावजूद चिकित्सक कुसुम को नहीं बचा सके।
इसके बाद कुसुम के पिता सुधीर गुप्ता, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नरेला इकाई में सह नगर कार्यवाह भी हैं, उन्होंने बेटी के निधन के बाद जो निर्णय लिया, वह समाज के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है। उन्होंने कहा- “बेटी को तो हम नहीं बचा सके, लेकिन उसके अंगों से कई लोगों को जीवन मिल सके– यही हमारी सबसे बड़ी सांत्वना है। संघ ने हमें सिखाया है कि जीवन तभी सार्थक होता है जब वह किसी और के काम आए”
कुसुम के देहत्यागने के बाद परिवार ने तुरंत अंगदान की सहमति दी। इसके बाद फोर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग की टीम ने कुसुम की दोनों किडनियां, लीवर, आंतें और आंखें आदि अंगों को प्रत्यारोपण कर दिल्ली और मुंबई में ज़रूरतमंद मरीजों तक पहुंचाया। कुसुम के इस अंतिम योगदान ने उन्हें एक ‘अंगदाता नायिका’ बना दिया।
बता दें कि कुसुम न केवल पढ़ाई में मेधावी थीं, बल्कि ट्यूशन पढ़ाकर बच्चों को शिक्षित करने का कार्य भी करती थीं। वे प्रकृति प्रेमी और हमेशा मुस्कराने वाली, खुशमिजाज युवती थीं। उनके पिता बताते हैं कि कुछ हफ्ते पहले ही घर में अंगदान पर चर्चा हुई थी, जिसमें कुसुम ने गहरी रुचि दिखाकर अपने अंगदान करने की इच्छा भी व्यक्त की थी। लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि वही विषय इतनी जल्दी उनके जीवन का हिस्सा भी बन जाएगा।
कुसुम के पिता सुधीर गुप्ता ने भावुक होकर कहा- “बेटी तो चली गई, लेकिन अपने अंगों के माध्यम से वह कई जिंदगियों में जीवित है। वह हमेशा मुस्कराती रहती थी और अपने स्वभाव से सबके जीवन में खुशबू बिखेरती थी– अब वही खुशबू उसके अंगों के माध्यम से इस दुनिया में जीवित रहेगी।”
कुसुम की अंतिम यात्रा में न केवल आँसू थे, बल्कि गर्व और प्रेरणा भी थी। कुसुम अब नहीं हैं, लेकिन उनके अंगों से कई जीवन मुस्करा रहे हैं। और यह मुस्कान उस परिवार की देन है, जिसने अपने गहरे दुख को समाज कल्याण में बदलने की मिसाल कायम की।
प्राकृतिक सौंदर्य से प्रेम करने वाली, सदैव मुस्कराने वाली कुसुम ने अंगदान करके अपने नाम के अर्थ ‘फूल’ को वास्तव में सार्थक किया।
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