गत दिनों नासिक (महाराष्ट्र) में संस्कार भारती की अखिल भारतीय कार्यकारिणी बैठक हुई। इसमें अनेक विषयों पर मंथन हुआ। इसके साथ ही ‘स्टैंड अप कॉमेडी’ के गिरते स्तर की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया गया। इसमें कहा गया है कि भरत मुनि द्वारा रचित ‘नाट्यशास्त्र’ में वर्णित रस-भाव सिद्धांत भारतीय नाट्य परंपरा की आत्मा है, जो केवल मनोरंजन नहीं, अपितु ‘लोकशिक्षा’ और ‘चित्तविनोद’ का साधन है।
हास्य रस को नौ रसों में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह परंपरा सामाजिक चेतना, मानवीय व्यवहार, संस्कार एवं संस्कृति का संवाहक रही है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ‘स्टैंड अप कॉमेडी’ इस परंपरा की आधुनिक अभिव्यक्ति का नया रूप लेकर उभरी है। डिजिटल माध्यमों पर प्रसारित हास्य आधारित सामग्री युवाओं को तेजी से आकर्षित कर रही है। परंतु हाल के वर्षों में इस माध्यम की प्रस्तुति तथा विषयवस्तु के स्तर में गिरावट देखी गई है।
अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की आड़ में कई कलाकार जानबूझकर या अनजाने में धार्मिक प्रतीकों का उपहास, राष्ट्रनायकों की व्यंग्यात्मक आलोचना या सामाजिक प्रथाओं का मजाक उड़ाते हुए लोकप्रियता पाने का प्रयास करते हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहां केवल गालियों, यौन संकेतों या सांप्रदायिक टिप्पणियों के सहारे हंसी बटोरने का प्रयास किया जाता है। यह प्रवृत्ति युवा दर्शकों में संवेदनशीलता, सहिष्णुता और सांस्कृतिक सम्मान की भावना को भी क्षीण करती है। संस्कार भारती की कार्यकारिणी वर्तमान समय में ‘स्टैंड अप कॉमेडी’ जैसे विभिन्न हास्य कला प्रस्तुतियों के गिरते हुए स्तर पर गहरी चिंता व्यक्त करती है।
कार्यकारिणी यह मानती है कि भारतीय हास्य परंपरा की मूल आत्मा को आधुनिक संदर्भों में पुन: प्रतिष्ठित करना समय की मांग है। हास्य को एक संवेदनशील, उत्तरदायी और गरिमामय कला रूप में देखते हुए, उसके कलात्मक और नैतिक उत्थान हेतु प्रयास आवश्यक हैं। ‘स्टैंड अप कॉमेडी’ जैसे वर्तमान माध्यमों को अशोभनीय, असंवेदनशील और विवादास्पद विषयों से हटाकर, भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर मर्यादित, उद्देश्यपूर्ण और संवादपरक बनाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
कार्यकारिणी इस विधा से जुड़े कलासाधकों और दर्शकों के बीच सार्थक संवाद को प्रोत्साहित करते हुए हास्य कला के संतुलित विकास को आवश्यक मानती है और इस दिशा में सार्थक पहल और जागरूकता हेतु पूर्णत: प्रतिबद्ध है। कार्यकारिणी यह आह्वान करती है कि हास्य कला विधाओं की गरिमा, मर्यादा और उद्देश्य की रक्षा हेतु कलाकारों, दर्शकों, शासन तथा नीति-निर्माताओं की संयुक्त एवं उत्तरदायी भूमिका अनिवार्य है। कलासाधकों एवं रचनाकारों से अनुरोध है कि वे अपनी अभिव्यक्ति में नैतिक विवेक, सांस्कृतिक चेतना तथा सामाजिक उत्तरदायित्त्व का पालन करें।
दर्शकों से आग्रह है कि वे गुणवत्तापूर्ण, विवेकसम्मत एवं गरिमामय हास्य को प्रोत्साहन प्रदान करें तथा फूहड़ता और असंवेदनशीलता पर आधारित प्रस्तुतियों का सक्रिय रूप से विरोध करें। साथ ही सरकार, नीति-निर्माताओं और सांस्कृतिक संस्थाओं से आग्रह है कि हास्य विधा को दिशा देने हेतु प्रशिक्षण, मंच और संसाधन उपलब्ध कराए तथा उपयुक्त विधिक प्रावधानों, दिशा-निर्देशों तथा दंडात्मक व्यवस्थाओं के माध्यम से इस क्षेत्र में अनुशासन एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करें।
संस्कार भारती से जुड़े हुए कलासाधक तथा कार्यकर्ताओं से यह आह्वान है कि वे देशभर में सक्रिय, संवेदनशील एवं प्रेरणास्पद भूमिका का निर्वहन करें, जिससे हास्य विधा भारतीय मूल्यों, गरिमा और सांस्कृतिक उद्देश्य के अनुरूप विकसित हो सके।
विद्या भारती के नए अध्यक्ष और महामंत्री
गत दिनों राजगीर (बिहार) में विद्या भारती की साधारण सभा संपन्न हुई। इसमें डॉ. रविंद्र कान्हेरे को अध्यक्ष और देशराज शर्मा को महामंत्री का दायित्व दिया गया। इसके अलावा 30 कार्यकर्ताओं वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की भी घोषणा हुई। वर्तमान में डॉ. कान्हेरे मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा विभाग की प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति के अध्यक्ष हैं।
वे भोज मुक्त विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रति कुलपति रहे हैं। शिशु मंदिर योजना में एक आचार्य के तौर पर अपनी सेवा यात्रा प्रारंभ करने वाले देशराज शर्मा अपने समर्पण, संगठन कौशल्य और शैक्षिक दृष्टिकोण के कारण प्रधानाचार्य बने। इसके बाद उन्होंने संगठन के विभिन्न दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वहन करते हुए विद्या भारती, उत्तर क्षेत्र के क्षेत्रीय मंत्री बनाए गए।
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