यूके के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए यूके के इक्वालिटी लॉ के अंतर्गत महिला की परिभाषा दी। यूके के सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांस महिलाएं इक्वालिटी अधिनियम 2010 की परिभाषा के अंतर्गत महिलाओं की श्रेणी में नहीं आएंगी।
कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि इक्वालिटी अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत “महिला” की जो परिभाषा दी गई है, उसमें लिंग का निर्धारण जन्म से होता है अर्थात केवल जैविक लिंग ही लिंग निर्धारण कर सकते हैं।
स्कॉटलैंड की सरकार के दिशानिर्देशों पर निर्णय देते हुए यूके के सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा, “इन सभी कारणों से, हम निष्कर्ष निकालते हैं कि स्कॉटिश सरकार द्वारा जारी किया गया मार्गदर्शन गलत है। महिला लिंग में जीआरसी वाला व्यक्ति इक्वालिटी अधिनियम 2010 की धारा 11 में लिंग भेदभाव के उद्देश्यों के लिए ‘महिला’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। इसका मतलब यह है कि 2018 अधिनियम की धारा 2 में ‘महिला’ की परिभाषा, जिसे स्कॉटिश मंत्री स्वीकार करते हैं कि इक्वालिटी अधिनियम 2010 की धारा 11 और धारा 212 में ‘महिला’ शब्द के समान अर्थ होना चाहिए, जैविक महिलाओं तक सीमित है और इसमें जीआरसी वाली ट्रांस महिलाएं शामिल नहीं हैं।”
दरअसल, वर्ष 2022 में स्कॉटलैंड सरकार ने एक दिशानिर्देश जारी किया था। इसमें 2018 के अधिनियम में महिला शब्द की व्याख्या की गई थी और उसमें ट्रांस महिलाओं अर्थात वे व्यक्ति जो जन्म से महिला नहीं हैं और जिन्होंने या तो सर्जरी या हार्मोनल थेरेपी के माध्यम से महिला होने का प्रमाणपत्र प्राप्त किया है, को भी महिला के रूप में माना था। इस दिशा निर्देश के विरोध में फॉर वुमन स्कॉटलैंड लिमिटेड ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। सरकार का कहना था कि एक बार जिस व्यक्ति ने प्रमाणपत्र हासिल कर लिया है, वह महिला बन गया है और उसे इक्वालिटी अधिनियम 2010 और 2018 अधिनियम के अंतर्गत महिला श्रेणी में जारी रखना चाहिए।
न्यायालय ने सरकार की इस स्थिति को अस्वीकार कर दिया और यह कहा कि “इक्वालिटी अधिनियम 2010 में “महिला” और “लिंग” शब्दों की व्याख्या जैविक रूप से की जानी चाहिए।“ इस निर्णय के आने के बाद महिलाओं के समूहों में जश्न का माहौल है। क्योंकि इस निर्णय के बाद अब उन सभी क्षेत्रों में महिलाओं को ट्रांस महिलाओं अर्थात जैविक रूप से पुरुष और कागजी महिलाओं के साथ अपने बाथरूम आदि साझा नहीं करने पड़ेंगे।
16 अप्रेल 2025 को पाँच न्यायाधीशों की बेंच ने यह निर्णय दिया। लॉर्ड रीड (अध्यक्ष), लॉर्ड हॉज (उपाध्यक्ष), लॉर्ड लॉयड-जोन्स, लेडी रोज़ और लेडी सिमलर की पीठ के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी, जो जेंडर रेप्रिज़ेन्टेशन ऑन पब्लिक बोर्डस (स्कॉटलैंड) एक्ट 2018 के अंतर्गत जारी संशोधित वैधानिक मार्गदर्शन की वैधता से संबंधित थी।
इस निर्णय के बाद उन सभी लोगों के चेहरे पर मुस्कान है, जो लगातार यह बात वर्षों से कहते हुए आ रहे थे कि लिंग केवल दो ही होते हैं। पुरुष और महिला। हैरी पॉटर की लेखिका जे के रोलिंग ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए लिखा कि इस निर्णय के खिलाफ स्कॉटलैंड की महिलाओं ने लड़ाई लड़ी और उन्होनें यह मुकदमा जीतकर पूरे यूके में महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा की है।
It took three extraordinary, tenacious Scottish women with an army behind them to get this case heard by the Supreme Court and, in winning, they’ve protected the rights of women and girls across the UK. @ForWomenScot, I’m so proud to know you 🏴💜🏴💚🏴🤍🏴 https://t.co/JEvcScVVGS
— J.K. Rowling (@jk_rowling) April 16, 2025
इस निर्णय के आने के बाद उन सभी क्षेत्रों में ट्रांस महिलाओं का प्रवेश बंद हो जाएगा, जो केवल महिलाओं के हैं। जैसे महिलाओं की खेलकूद प्रतिस्पर्धा, जैसे महिलाओं के लिए सैलून, महिलाओं के लिए बने हुए वाशरूम आदि। अभी हाल ही में यूके में यह भी नियम आया था कि ट्रांस महिला अधिकारी आम महिलाओं की तलाशी ले सकती हैं। इस पर भी काफी हंगामा मचा था। ऐसा भी नहीं है कि ट्रांस लोगों के अधिकारों का हनन किया गया है। ट्रांस जेंडर्स को यूके के तमाम कानूनों के अंतर्गत सुरक्षा मिलेगी। मगर सुप्रीम कोर्ट ने केवल यह पुष्टि की है कि ट्रांस पहचान वाले लोग स्वयं को महिला मानना बंद करें और जो महिला अधिकार हैं, उनमें अतिक्रमण न करें।
अपनी लैंगिक पहचान को लेकर भ्रमित होने वाले लोगों की सुरक्षा पर कोई भी हमला नहीं किया गया है। बस इतना निर्धारण कोर्ट ने किया है कि महिला केवल और केवल वही हैं, जो जन्म से ही महिला हैं।
इस निर्णय को लेकर लोग उन राजनेताओं पर भी प्रश्न उठा रहे हैं, जिन्होनें महिला होने के बाद भी महिलाओं के साथ हो रहे इतने बड़े अन्याय पर आवाज नहीं उठाई थी। पत्रकार डेन वूट्टन ने एक्स पर लिखा कि “निकोला स्टर्जन, रेचल रीव्स, एनेलिस डोड्स और अन्य सभी महिला राजनेताओं पर शर्म आती है जिन्होंने अपने ही लिंग के साथ विश्वासघात किया। आप जैसे चाहें वैसे कपड़े पहनें, लेकिन भाषा और विज्ञान को न बदलें।“
IT'S OFFICIAL & UNANIMOUS!
According to the UK Supreme Court, India Willoughby is NOT a woman by law.
Shame on Nicola Sturgeon, Rachel Reeves, Anneliese Dodds & all the other female politicians who betrayed their own sex.
Dress how you want, but do not change language & science. pic.twitter.com/6xFd1ldz70— Dan Wootton (@danwootton) April 16, 2025
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस जेन्डर डिस्कोर्स में महिलाओं से जुड़े हुए तमाम शब्दों को भी बदला जा रहा था, जैसे मिडवाइफ शब्द पर बहस छिड़ी थी, जैसे ब्रेस्ट फीडिंग को चेस्ट फीडिंग कहे जाने पर जोर दिया जा रहा है।
इस निर्णय से कोर्ट के अनुसार महिला की परिभाषा निर्धारित हुई है, परंतु इस निर्णय को लेकर वोक एक्टिविस्ट वर्ग के बीच निराशा है। परंतु आम महिलाएं इस निर्णय से प्रसन्न हैं। हालांकि यह निर्णय यूके सुप्रीम कोर्ट ने दिया है, मगर इसका प्रभाव व्यापक होगा और इस पागलपन के खिलाफ लड़ने वाले तमाम लोगों को इस निर्णय से शक्ति प्राप्त होगी।
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