मध्यप्रदेश के वनवासी बहुल जिले झाबुआ में पर्यावरण और जल संरक्षण की अनूठी परंपरा कि बन चुकी नारी शक्ति यहां हर वर्ष जिले के सैकड़ो गांव के हजारों लोग कई दिन जुटते हैं और सामूहिक श्रम के माध्यम से क्षेत्र में जल संरचनाएं बनाते हैं।
शिवगंगा झाबुआ अचंल कि हलमा कि परंपरा का लगातार उपयोग कर पर्यवरण के संरक्षण व संर्वधन मे अहम भुमीका निभा रहा हे। इस परंपरा को अब झाबुआ मुख्यालय से ग्रामीण अंचल कि ओर रुख करके गांव गांव मे कट चुके जगंल पुनः जीवित करने का कार्य किया जा रहा हे।
शिवगंगा झाबुआ की प्रेरणा से अंचल की परमार्थी परम्परा हलमा करके गांव वालों ने कर दिया अद्भुत कार्य पर्यावरण संरक्षण की पहल से गांव गांव हो रहे हैं जंगल। माता वन के संरक्षण का संकल्प लिया पिछले कई साल से यह लोग पौधे फलदार वृक्ष और अलग-अलग वृक्ष बांस, सागोन, सीताफल, आम, नींबू, अमरूद, पत्थरचट्टा, गलवेल, पीपल, बिलिपत्र, खाकरा, खेरिया, करंज, निम, इमली, अलग-अलग प्रकार के पौधे हजारों से ज्यादा पौधे लगाएं और उनका संरक्षण कर रहे हैं ।
870 करोड़ लीटर वर्षा जल हर साल सहेज रकर खड़े कर दिए पांच लाख से अधिक पेड़
झाबुआ में आज से 23 साल पहले हुए एक आयोजन ने बीते दो दशकों में वनवासी अंचल में व्यापक बदलाव ला दिया है। 17 जनवरी 2002 को हरिभाऊ की बावड़ी पर हिन्दू संगम हुआ था जो इस क्षेत्र के पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ ही आर्थिक प्रगति में आज भी योगदान दे रहा है। उसी का परिणाम है कि ‘शिवगंगा झाबुआ’ के नाम से शुरू हुई एक संस्था आज 106 बड़े तालाबों का निर्माण कराने के साथ ही 1.61 लाख कंटूर ट्रेंच बनाकर हर साल 870 करोड़ लीटर वर्षा जल का प्रत्यक्ष संग्रहण कर रही है।
वनवासी समाज के दर्शन पर चलते हुए इन्होंने 160 मातावन बना डाले, जिनमें पांच लाख से ज्यादा पेड़ लगे है 21 हजार से अधिक प्रशिक्षित वनवासी युवा 750 गांवों में जन, जल, जंगल और जमीन की समृद्धि के लिए काम कर रहे हैं। इस दौरान 2000 स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी तैयार किए गए जो ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी उन्नति के लिए जुटे हुए हैं।
बिना सरकारी मदद और लागत से 13 साल में बना दिए 106 तालाब
शिव गंगा जल संग्रहण के लिए कर रहा अनूठा प्रयास मानव श्रम की सार्थकता का उदाहरण है देखना हो तो आप वनवासी अंचल झाबुआ आइए। एक समय था जब यहां डाटा केवल एक फसल ले पातें थे वजह सिंचाई के लिए पानी की कमी लेकिन अब गांव में लबालब तालाब नजर आने लगे हैं इनमें से 106 तालाब बिना सरकार की मदद और हलमा के माध्यम से बनाई गए है। जल बचाने का अभूतपूर्व बदलाव और वनवासियो में जागरूकता लाने में हम भूमिका शिवगंगा संगठन ने निभाई। इतना ही नहीं ग्रामीणों ने परस्पर सहयोग से वनवासियों की प्राचीन परंपरा जीवित भी किया। इन जल संरचनाओं के माध्यम से एक वर्षा काल में करीब 1510 करोड़ लीटर पानी सहेजा जा रहा है इसके परिणामस्वरूप भू जल स्तर तो बढ़ रहा है साथ ही समाज में सामूहिकता, परमार्थ, स्वाभिमान जैसे संस्कारों का पूनजागरण हो रहा है।
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