पंजाब सरकार गैंगस्टरों से लड़ रही है और एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स का गठन भी किया है परन्तु हैरानी की बात है कि सरकार ने इस शब्द की परिभाषा नहीं की है। इसको लेकर पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने सरकार को फटकारा है। कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा कि आखिर ‘गैंगस्टर’ शब्द की परिभाषा क्यों तय नहीं की गई है।
अदालत ने पंजाब सरकार को यह भी निर्देश दिया कि संगठित अपराध नियंत्रण इकाई व एंटी गैंगस्टर टास्क फोर्स के गठन से संबंधित सभी दस्तावेज कोर्ट के समक्ष पेश किए जाएं। इसके साथ ही यह भी पूछा गया है कि पंजाब कंट्रोल ऑफ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट की वर्तमान स्थिति क्या है जो इस समय गृह विभाग के विचाराधीन है।
इससे पहले तीन अप्रैल को जब यह मामला जस्टिस हरकेश मनुजा की अदालत में आया तो उन्होंने पंजाब पुलिस के एआईजी स्तर के अधिकारी से यह स्पष्ट करने को कहा कि ‘गैंगस्टर’ शब्द की परिभाषा राज्य के किसी भी कानून में दी गई है या नहीं।
इस पर एआईजी ने अदालत से दो सप्ताह का समय मांगा पर अदालत ने सुनवाई आठ अप्रैल के लिए टालते हुए राज्य को निर्देश दिया कि वह इस संबंध में अपना जवाब दाखिल करे।
याचिकाकर्ता के वकील ने भी अदालत में कहा कि हैरानी की बात यह है कि ‘गैंगस्टर’ शब्द की कोई विधिक परिभाषा किसी भी अधिनियम में नहीं दी गई है। इससे पहले अदालत ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या संगठित अपराधों से निपटने के लिए कोई अलग कानून बनाया गया है। साथ ही यह भी पूछा गया था कि राज्य भर में कितने ऐसी एफआईआर दर्ज हुई हैं जिनमें आम लोगों ने ‘गैंगस्टर’ से जान का खतरा होने की बात कही है।
यह आदेश अदालत ने एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए जो गुरदासपुर निवासी 42 वर्षीय सिमरजीत सिंह द्वारा दायर की गई है। याचिका में उन्होंने पंजाब के एडीजीपी (सुरक्षा) सुधांशु श्रीवास्तव के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई की मांग की है।
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