अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ईरान के सर्वोच्च मजहबी नेता खामनेई को बातचीत शुरू करने के लिए लिखी गई चिट्ठी दुनियाभर में चर्चा को विषय बनी हुई है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से खनिज संधि को लेकर हुई गर्मागर्म बहस के ठीक अगले दिन ट्रंप ने शिया बहुल ईरान को बातचीत की मेज पर आने संबंध चिट्ठी लिखी, जिसकी जानकारी खुद राष्ट्रपति ट्रंप ने खुद को मीडिया को दी। उसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि ईरान अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार होगा भी कि नहीं। लेकिन ताजा खबर यह है कि ईरान अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैरूार हो गया है, लेकिन इसके लिए उसने अपनी कुछ शर्तें सामने रखी हैं। यानी गेंद अब वापस अमेरिका के पाले में डाल दी गई है।
ईरान के संयुक्त राष्ट्र मिशन ने एक बयान में कहा है कि अगर बातचीत सिर्फ और सिर्फ परमाणु कार्यक्रम के सैन्यीकरण को लेकर उपजी चिंताओं पर केन्द्रित रहने वाली है तो वे कदम आगे बढ़ा सकते हैं। यहां यह जान लेना दिलचस्प होगा कि ईरान के सर्वोच्च मजहबी नेता अली खामनेई ने पहले अमेरिका के साथ बातचीत का न्योता ठुकरा दिया था। खामनेई का कहना था कि अमेरिका की मांगें सेना से जुड़ीं जो ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव से संबंधित होंगी। ये ईरान को स्वीकार्य नहीं है।

लेकिन तेहरान में पिछले कुछ दिन से तेज हुई कूटनीतिक हलचल के बाद सामने यही आया है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम के सैन्यीकरण के बारे में बात करने को तैयार है। इसके साथ ही तेहरान ने साफ कहा है कि वह अपने शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने जैसे किसी भी बिन्दु पर बात नहीं करने वाला।
हालांकि दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल में दावा किया था कि उन्होंने ईरान को भेजे अपने पत्र में तेहरान के तेजी से बढ़ते परमाणु कार्यक्रम पर लगाम लगाने को कहा था। ट्रंप ने आगे लिखा कि उनके पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका जिस परमाणु समझौते से अलग हो गया था उसकी जगह एक नया समझौता करने की जरूरत है। ट्रंप की इस बात पर खामनेई ने द्विपक्षीय चर्चा से मना कर दिया था।
खामेनेई ने कहा था कि अमेरिका की मांगें सैन्य तथा ईरान के क्षेत्रीय प्रभाव को लेकर होंगी। उन्होंने कहा कि इस तरह की बातों से ईरान और पश्चिम के बीच की चुभने वाले बिन्दु सुलझने वाले नहीं हैं। ट्रंप की ओर से बातचीत की यह पेशकश ऐसे वक्त पर की गई है जब इस्राएल और अमेरिका दोनों की ओर से सावधान किया गया है कि वे कभी भी ईरान को ऐसे परमाणु हथियार प्राप्त नहीं करने देंगे, जिससे सैन्य टकराव की आशंका बढ़ गई है क्योंकि तेहरान यूरेनियम को हथियार-स्तर के करीब बढ़ा रहा है, ऐसा सिर्फ परमाणु-सशस्त्र राष्ट्र ही कर सकते हैं.
तेहरान ने लंबे समय से कहा है कि उसका कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन ईरान के कई नेताओं और अधिकारियों ने बम बनाने की धमकी दी है. ये ऐसे समय पर हो रहा है, जब अमेरिका के साथ उसके प्रतिबंधों को लेकर तनाव अपने चरम पर है और गाजा में हमास के खिलाफ युद्ध में इजराइल के साथ युद्ध विराम अस्थिर है.
ईरान और अमेरिका के बीच संबंध एक लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं, इसमें अन्य बातों के अलावा ईरान का पूरी दमदारी के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम को जारी रखना भी। अमेरिका इसे लेकर कई बार आपत्ति जताता आ रहा है।
ईरान के यूएन मिशन ने अपनी एक्स पोस्ट में लिखा है, “अगर बातचीत का उद्देश्य ईरान के परमाणु कार्यक्रम के किसी भी संभावित सैन्यीकरण से जुड़ी चिंताओं पर स्पष्टीकरण पाना है तो ऐसी बातचीत पर गौर किया जा सकता है।”
टिप्पणियाँ