बोफोर्स घोटाले का जिन्न फिर बाहर आया है। भारत ने बोफोर्स मामले से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए अमेरिका को न्यायिक अनुरोध पत्र भेजा है। वहीं, एक नई किताब में यह भी खुलासा हुआ है कि राजीव गांधी को बचाने के लिए भारतीय नौकरशाहों और बोफोर्स के अधिकारियों के बीच गुप्त रूप से बैठकें हुई थीं। इन बैठकों में यह भी चर्चा हुई थी कि भ्रष्टाचार को कैसे छिपाया जाए।
64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले का जिन्न एक बार फिर बाहर आया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने भारत की एक विशेष अदालत की ओर से जारी न्यायिक अनुरोध अमेरिका के न्यायिक विभाग को भेजा है। सीबीआई ने अमेरिकी जासूसी कंपनी फेयरफैक्स के मुखिया माइकल हर्शमैन से जुड़ी जानकारी मांगी है। हर्शमैन ने वर्ष 2017 में दावा किया था कि तत्कालीन सरकार ने बोफोर्स को लेकर उनकी जांच को विफल किया था। उन्होंने यह भी दावा किया था कि जब उन्हें स्विस खाता मोंट ब्लांक मिला था तो राजीव गांधी बहुत क्रोधित हो गए ,थे इस खाते में बोफोर्स का रिश्वत का पैसा कथित तौर पर जमा किया गया था। उन्होंने यह भी कहा था कि वह जांच में भारतीय एजेंसियों का सहयोग करेंगे।
अब भारत की ओर से अमेरिकी न्याय विभाग को भेजा गया अनुरोध पत्र इसके संकेत दे रहा है कि बोफोर्स मामले की जांच फिर से शुरू हो सकती है।
किताब में बड़ा खुलासा
बोफोर्स घोटाले पर एक नई किताब ( Bofors Gate) में कई सनसनीखेज खुलासे किए गए हैं। इस किताब में दावा किया गया है कि बोफोर्स घोटाले में राजीव गांधी को बचाने के लिए भारतीय नौकरशाहों और बोफोर्स अधिकारियों के बीच गुप्त बैठकें हुई थीं। यह किताब खोजी पत्रकार चित्रा सुब्रमण्यम ने लिखी है। उन्होंने बोफोर्स घोटाले से संबंधित दावे स्वीडिश पुलिस प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रोम (‘स्टिंग’) की ओर से दिए गए दस्तावेजों के आधार पर किए हैं। लिंडस्ट्रोम स्वीडन में इस मामले की जांच कर रहे थे। चित्रा सुब्रमण्यम ने लिंडस्ट्रोम के हवाले से दावा किया है कि बोफर्स घोटाले में हुए भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बचाने के लिए भारतीय नौकरशाहों और बोफोर्स कंपनी के अधिकारियों के बीच कई गुप्त बैठकें हुई थीं।
क्या है बोफोर्स घोटाला
24 मार्च, 1986 को भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ। यह सौदा भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोपों की आपूर्ति के लिए हआ था। कंपनी ने सौदा हासिल करने के लिए भारत के बड़े नेताओं और सैन्य अधिकारियों को 1.42 करोड़ डॉलर (64 करोड़ रुपये) की रिश्वत दी थी। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, सोनिया गांधी और कांग्रेस के कई नेताओं का नाम आया। इस सौदे में इतालवी कारोबारी ओत्तावियो क्वात्रोकि की भूमिका रही, जो गांधी परिवार का करीबी था, जबकि 20 अप्रैल, 1987 को लोकसभा में राजीव गांधी ने कहा था कि सौदे के लिए न तो घूस दी गई और न ही इसमें किसी बिचौलिये की भूमिका थी। जुलाई 1993 में क्वात्रोकि भारत छोड़कर भाग गया और फिर कभी नहीं आया। बाद में सीबीआई ने उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस वापस ले लिया और सर्वोच्च न्यायालय से मामले को बंद करने की अनुमति मांगी। बाद में अजय अग्रवाल ने लंदन में क्वात्रोकि के खाते से संबंधित दस्तावेज मांगे, लेकिन सीबीआई ने याचिका का जवाब नहीं दिया।
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