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महाशिवरात्रि विशेष : प्रकृति पूजा ही शिव पूजा

इस महाशिवरात्रि हम यह संकल्प लें कि देश को प्लास्टिक कचरे से मुक्त बनाने का प्रयास करेंगे। देश प्लास्टिक मुक्त होगा तो पर्यावरण स्वच्छ रहेगा और कैंसर जैसे रोग नहीं होंगे

by प्रवीण कुमार
Feb 26, 2025, 09:25 am IST
in भारत, विश्लेषण, संस्कृति
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यह समस्त विश्व विश्वनाथ की रचना है। जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु, आकाश, चन्द्र, सूर्य, यजमान/ आत्मा इस प्रकार आठ प्रत्यक्ष रूपों में भगवान शिव सबको दिखाई देते हैं। भारतीय दृष्टि से समस्त जीव जगत तथा इसका पोषण-संवर्धन करने वाले प्राकृतिक तत्त्व विश्वमूर्ति शिव का प्रत्यक्ष शरीर है। इस प्रकार समस्त चेतन – अचेतन प्राणियों के पिता शिव हैं। जैसे पुत्र-पुत्रियों का भला करने वाले पर पिता प्रसन्न होते हैं। वैसे ही पर्यावरण के उपरोक्त घटकों को हानि से बचाने वाले, प्रदूषणमुक्त एवं पोषण देने वालों पर भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। यदि कोई भी मनुष्य इन आठ मूर्तियों में से किसी का भी अनिष्ट करता है तो वह वास्तव में भगवान शंकर का ही अनिष्ट कर रहा है।

भगवान शंकर का रूप भी पर्यावरण का परिचायक

जटायें- महाराजा दलीप के पुत्र भगीरथ ने घोर तपस्या की और मां गंगा प्रसन्न हुईं परन्तु मां गंगा ने आशंका व्यक्त की कि उसके प्रचण्ड वेग को धरती कैसे सहन करेगी। महाराजा भगीरथ ने तप के द्वारा शिव भोलेनाथ को प्रसन्न किया। भोलेनाथ ने अपनी जटाओं में गंगा को स्थान दिया। वृक्षों की जड़ें शिवजी की जटाओं का ही कार्य करती हैं। वर्षा के तीव्र वेग को वृक्षों की जड़ें अपने ऊपर लेकर मिट्टी के कटाव और बहाव को रोकती हैं।

सांप-
उनके गले का आभूषण सांप है। फसलों के दुश्मन चूहों आदि को खाकर सांप कीट नियंत्रक का कार्य करते हैं।

नीलकंठ-
समुद्र मंथन में से निकले सबसे विनाशकारी विष को भगवान शिव ने पी लिया था और विष के प्रभाव से उनका कंठ नीलवर्ण हो गया। इसीलिये वे नीलकंठ कहलाए। नीलकंठ भगवान का उपरोक्त कार्य पृथ्वी पर वृक्ष करते हैं। वृक्ष कार्बनडाईआॅक्साइड जैसी विषैली गैसों को पीकर, हमें बदले में आक्सीजन देते हैं।

बाघम्बर-
क्योंकि वे मृत बाघ की छाल पर विराजते हैं इसलिए उनका नाम बाघम्बर पड़ा। शेरों की अनेक जातियां विलुप्त हो रही हैं, उनकी सुरक्षा एवं संभाल आवश्यक है।

भस्म- शिवजी का सौन्दर्य प्रसाधन है भस्म। भस्म की विशेषता है कि यह शरीर के रोमछिद्रों को बंद कर देती है। इसे शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। इस भस्म को तैयार करने की आवश्यक सामग्री रहती है -कपिला गाय का गोबर, शमी, पीपल, पलाश, बढ़, अमलतास और बेर के वृक्षों की लकड़ियों की भस्म।

नंदी- उनका वाहन नंदी नामक बैल है। गौवंश सभी जीव-जन्तुओं का पालन करता है। उसे हम जीवन का अभिन्न अंग बनाएंगे तो सदा सुख पाएंगे।

बिल्व वृक्ष- वायुमंडल में व्याप्त अशुद्धियों को सोखने की क्षमता सबसे अधिक इसी वृक्ष में होती है। इसीलिए महादेव की पूजा में बेलपत्र को जोड़ा गया ताकि इसके रक्षण को प्रोत्साहन मिले।

हिमालय- भगवान शिव का निवास हिमालय पर होना यह दर्शाता है कि मानवता के कल्याण के लिए जमीन, जंगल, जीव-जन्तु , जल-सरोवरों, पहाड़ों, ग्लेशियरों आदि का संरक्षण आवश्यक है। प्रकृति के मध्य शिव और पार्वती का निवास उनके प्रकृति के प्रति प्रेम को दिखाता है।

तांडव- पहाड़ों का खिसकना, बादलों का फटना, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के जल स्तर का बढ़ना, मौसम चक्र में बदलाव आदि मनुष्य जाति को सचेत करने हेतु शिव द्वारा दिए जाने वाले पर्यावरण असंतुलन के संकेत हैं। क्रोध में आकर शिवजी के द्वारा तांडव नृत्य करना इस बात का परिचायक है कि मनुष्य जाति को विनाश से बचाने हेतु पर्यावरण संरक्षण आवश्यक है।

भगवान का अर्थ

भगवान शब्द पांच अक्षरों से बनता है। प्रत्येक अक्षर पर्यावरण के एक-एक तत्त्व का परिचायक है। भूमि से ‘भ’, गगन से ‘भ’, वायु से ‘व’, अग्नि से ‘अ’ और नीर से ‘न’ अक्षर लिये गये हैं। अर्थात् भगवान की पूजा का अर्थ है उपरोक्त पांच तत्त्वों का संरक्षण एवं संवर्धन।

प्लास्टिक कचरे से हानियां

जल प्रदूषण- खुले में फेंका गया प्लास्टिक बारिश के पानी के साथ बहकर नदियों और समुद्रों में चला जाता है, जिससे पानी दूषित हो जाता है। प्लास्टिक कचरा सीवरेज निकासी में बाधा बनता है। धरती पर फैले माइक्रो-प्लाटिक वर्षा के पानी के धरती में रिसाव में रुकावट बनते हैं। फलस्वरूप जलस्तर कम हो रहा है।

जमीन का प्रदूषण- खेतों में प्लास्टिक कचरे के बढ़ने से मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है और फसलों की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कुतुबमीनार जैसे कचरे के ढेरों का मूल घटक प्लास्टिक ही है।

वायु प्रदूषण- अक्सर प्लास्टिक कचरे को जला दिया जाता है, जिससे हवा में जहरीले पदार्थ घुल जाते हैं। हर साल लाखों लोग खराब वायु गुणवत्ता के कारण अपनी जान गंवाते हैं और लाखों लोग आजीवन स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों से पीड़ित रहते हैं।

जीव- जंतुओं की मौतों का कारण- प्लास्टिक कचरा जीव—जंतुओं के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। हजारों मछलियां, कछुए,गाय और पक्षी प्लास्टिक को गलती से भोजन समझकर निगल लेते हैं। जिससे उनकी मृत्यु हो जाती है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव- प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक रसायन पानी और भोजन में मिलकर कैंसर, हार्मोन असंतुलन और अन्य गंभीर बीमारियों का कारण बन रहे हैं। प्लास्टिक की प्लेटों, कटोरियों, में जैसे ही गर्म वस्तु डालते हैं, वह कैंसर कारक बन जाती है।

एक थैला एक थाली अभियान

प्रयागराज महाकुंभ 2025 को हरित, पवित्र और स्वच्छ कुंभ बनाने हेतु एक थैला एक थाली अभियान की योजना और क्रियान्वयन पर्यावरण संरक्षण गतिविधि द्वारा किया गया। पूरे देश से लोगों से कपड़े के थैले और थालियां इकट्ठी कर प्रयागराज महाकुम्भ में भेजी गईं, ताकि वहां प्लास्टिक का कचरा कम किया जा सके। महाकुंभ के भंडारों में स्टील की थालियां 10.25लाख, कपड़े के थैले 13 लाख, स्टील के गिलास 2.5 लाख नि:शुल्क वितरित किए गए।

उपलब्धियां:

पर्यावरणीय स्वच्छता का संदेश घर—घर तक पहुंचा, देशव्यापी अभियान में लाखों परिवारों की सहभागिता से हरित कुंभ अभियान सफल हुआ। परिवारों तक पर्यावरणीय स्वच्छता का संदेश प्रभावी रूप से पहुंचा। वे अपनी स्थानीय नदियों, झीलों, जल स्रोतों की स्वच्छता हेतु प्रेरित हुए।

डिस्पोजेबल कचरे में कमी: महाकुंभ में डिस्पोजेबल प्लेटों, गिलासों और कटोरों (पत्तल-दोना) का उपयोग 80-85% तक कम हुआ।
कचरे में कमी: कचरे उत्पादन में लगभग 29,000 टन की कमी आई, जबकि अनुमानित कुल कचरा 40,000 टन से अधिक हो सकता था।

लागत बचत: डिस्पोजेबल प्लेटों, गिलासों और कटोरों पर प्रतिदिन 3.5 करोड़ रुपए की बचत हुई।

लंगर कमेटियों के लिए बचत : स्टील के बर्तन नि:शुल्क मिलने से अखाड़ों, भंडारा कमेटियों को महत्वपूर्ण बचत हुई। अन्यथा डिस्पोजेबल बर्तनों पर लाखों रुपया खर्च करते।

दीर्घकालिक प्रभाव: आयोजन में वितरित की जाने वाली स्टील की थालियों का उपयोग वर्षों तक किया जाएगा।

सांस्कृतिक बदलाव: इस पहल ने सार्वजनिक आयोजनों के लिए ‘बर्तन बैंकों’ के विचार को प्रोत्साहित किया है, जो समाज में स्वस्थ परम्पराओं को बढ़ावा देगा।

हरित महाशिवरात्रि

इस जागरूकता अभियान का वास्तविक उद्देश्य देश को प्लास्टिक मुक्त व कैंसर मुक्त बनाना है। स्वच्छ व स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण के लिए स्थानीय गणमान्य व संत समाज के मार्गदर्शन में विभिन्न सामाजिक, स्वयंसेवी, धार्मिक संगठनों से सम्पर्क कर अपील की जा रही है कि वे महाशिवरात्रि महोत्सव पर लगने वाले लंगरों के दौरान डिस्पोजेबल प्रयोग न करें और प्रसाद को स्टील प्लेट में ही वितरित करें। इसका प्रतिसाद काफी उत्साहवर्धक मिल रहा है। महाशिवरात्रि महोत्सव पर बर्तन बैंक बनाने का संकल्प लेकर देश को प्लास्टिक व कैंसर मुक्त बनाएं।
(प्रांत संयोजक, हरियावल पंजाब)

Topics: LunaजलAnfitriónपृथ्वीमहाशिवरात्रि महोत्सवअग्निभगवान शंकर का रूपपाञ्चजन्य विशेषविश्व विश्वनाथ की रचना’ ‘आत्माचन्द्रवायुसूर्यFestival MahashivratriयजमानCreación de Vishwa VishwanathAguaFuego
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