अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस
भाषा केवल संचार का साधन नहीं बल्कि हमारी पहचान, संस्कृति और विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम भी है। वैश्वीकरण और आधुनिक शिक्षा प्रणाली के दबाव में कई भाषाएं धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं, लेकिन इन्हें संरक्षित करना हमारा दायित्व है। भाषा की विविधता न केवल हमें एक-दूसरे से जोड़ती है बल्कि यह हमारे सोचने-समझने और सीखने की प्रक्रिया को भी समृद्ध करती है। इसी कारण विभिन्न देशों ने भाषा की विविधता और बहुभाषावाद को संरक्षित करने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। मातृभाषा का महत्व केवल संचार तक सीमित नहीं है बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान, बौद्धिक विरासत और सामाजिक विकास से भी गहराई से जुड़ी होती है।
दुनियाभर में भाषायी विविधता को बढ़ावा देने, बहुभाषावाद को प्रोत्साहित करने और उन भाषाओं को संरक्षित करने, जो धीरे-धीरे विलुप्ति की ओर बढ़ रही हैं, के उद्देश्य से ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन’ (यूनेस्को) द्वारा हर साल 21 फरवरी को एक महत्वपूर्ण थीम के साथ ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ मनाया जाता है। यह दिवस हमें सिखाता है कि अपनी मातृभाषा को संजोना और उसका सम्मान करना हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस भाषाओं का जश्न मनाने का अवसर प्रदान करता है और साथ ही भाषाई विविधता एवं बहुभाषिता के महत्व को उजागर करने के लिए जागरूकता फैलाने का कार्य भी करता है। भाषाई विविधता शिक्षा, समाज और संचार को समृद्ध बनाती है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2025 के लिए थीम है ‘भाषाएं मायने रखती हैं: अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का रजत जयंती समारोह’। 2024 में यह दिवस ‘बहुभाषी शिक्षा अंतर पीढ़ीगत शिक्षा का एक स्तंभ है’ विषय के साथ मनाया गया था। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस 2023 की थीम ‘बहुभाषी शिक्षारू शिक्षा को बदलने की आवश्यकता’ थी। इससे पहले 2022 की थीम ‘बहुभाषी शिक्षण के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोगरू चुनौतियाँ और अवसर’ थी जबकि 2021 के मातृभाषा दिवस की थीम थी ‘शिक्षा और समाज में समावेशन के लिए बहुभाषावाद को प्रोत्साहन’। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2019 को स्वदेशी भाषाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया गया था। इस दिवस को मनाने की प्रेरणा बांग्ला भाषा आंदोलन से मिली थी। 21 फरवरी 1952 को बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) में छात्रों ने अपनी मातृभाषा बांग्ला को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए विरोध प्रदर्शन किया था, जिसमें कई छात्रों की जान चली गई थी। उस बलिदान की स्मृति में, कनाडा में रहने वाले बांग्लादेशी नागरिक रफीकुल इस्लाम ने 1999 में यूनेस्को को प्रस्ताव भेजा था, जिसे स्वीकार कर 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में घोषित किया गया था और वर्ष 2000 से इसे वैश्विक स्तर पर मनाया जाने लगा।
मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं होती बल्कि यह हमारी संस्कृति और पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। बचपन में सीखी गई भाषा हमारे मानसिक और बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शोध बताते हैं कि मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्र अन्य भाषाओं को अधिक आसानी से सीख सकते हैं और उनकी संज्ञानात्मक क्षमता भी बेहतर होती है। बहुभाषावाद, जो एक से अधिक भाषाएं सीखने और समझने की क्षमता को दर्शाता है, वैश्विक समाज में एक महत्वपूर्ण कौशल बन चुका है। विभिन्न संस्कृतियों को समझने, व्यापारिक संभावनाओं को बढ़ाने और सामाजिक समावेशन को प्रोत्साहित करने में बहुभाषिता अहम भूमिका निभाती है।
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, विश्व में लगभग सात हजार भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत भाषाएं ऐसी हैं, जिन्हें बोलने वाले एक लाख से भी कम लोग हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक तथ्य यह है कि दुनिया की लगभग 40 प्रतिशत भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं। वैश्विक स्तर पर केवल कुछ सौ भाषाएं ही शिक्षा प्रणालियों और सार्वजनिक जीवन में प्रयोग की जाती हैं, जिससे कई भाषाओं के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। डिजिटल दुनिया में भी भाषाओं की स्थिति कमजोर है। वैश्विक डिजिटल सामग्री का 80 प्रतिशत से अधिक केवल 10 प्रमुख भाषाओं में उपलब्ध है, जिससे कई स्थानीय भाषाओं को संरक्षण और बढ़ावा देने की आवश्यकता बढ़ जाती है।
भारत बहुभाषी देश है,जहां संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है जबकि 121 से अधिक भाषाएं व्यापक रूप से बोली जाती हैं। हालांकि, यहां भी कई मातृभाषाएं लुप्त होने के खतरे में हैं। ‘पीपुल्स लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ के अनुसार, भारत में लगभग 600 भाषाएं बोली जाती हैं लेकिन इनमें से 220 भाषाएं पिछले 50 वर्षों में विलुप्त हो चुकी हैं। अनुमान है कि यदि यही प्रवृत्ति जारी रही तो 21वीं सदी के अंत तक भारत की 50 प्रतिशत से अधिक भाषाएं विलुप्त हो सकती हैं। हालांकि भारत में भाषा संरक्षण के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। भारत सरकार ने मातृभाषाओं के संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं। लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण योजना के तहत भारतीय भाषाओं के दस्तावेजीकरण और अध्ययन के लिए कार्य किया जा रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में सुझाव दिया गया है कि कक्षा पांच तक, और जहां संभव हो, आठवीं कक्षा तक मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा प्रदान की जाए। यूजीसी की पहल के तौर पर विश्वविद्यालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भाषा केंद्र स्थापित किए गए हैं। भारत सरकार विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं को डिजिटल रूप से संरक्षित करने के लिए ऑनलाइन शब्दकोश और अनुवाद पोर्टल भी विकसित कर रही है।
यूनेस्को द्वारा तैयार की गई एक सूची ‘एटलस ऑफ द वर्ल्ड्स लैंग्वेजेस इन डेंजर’ में लुप्तप्राय भाषाओं की स्थिति को दर्शाया गया है। स्वदेशी भाषाओं को संरक्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक दशक-लंबी योजना इंडिजिनस लैंग्वेज डिकेड (2022-2032) चलाई जा रही है। भाषाओं के संरक्षण के लिए आधुनिक तकनीक का भी उपयोग किया जा रहा है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और अन्य टेक कंपनियां अनुवाद उपकरण विकसित कर रही हैं, जिससे छोटी भाषाओं को भी डिजिटल स्पेस में स्थान मिल सके। डुओलिंगो, गूगल ट्रांसलेट जैसे मोबाइल एप्लीकेशन और डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थानीय भाषाओं को संरक्षित करने में योगदान दे रहे हैं। बहरहाल, मातृभाषा का संरक्षण केवल भाषा को बचाने का कार्य नहीं है बल्कि यह ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं को आगे बढ़ाने का माध्यम भी है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस केवल एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि भाषाई विविधता और बहुभाषावाद को अपनाने और प्रोत्साहित करने का एक अभियान है। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिए और इसे भविष्य की पीढ़ियों तक संरक्षित रखने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए।
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