1995 में अलका लांबा और रेखा गुप्ता ने एक ही मंच से अपनी-अपनी पार्टी के लिए शपथ ली थी। (फोटो साभार: एक्स)
रेखा गुप्ता अब दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री बन गई हैं। लेकिन इस बीच सोशल मीडिया पर रेखा गुप्ता और कांग्रेस की नेता अलका लांबा को लेकर चर्चा तेज हो गई है। पर रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने पर अलका लांबा का जिक्र क्यों किया जा रहा है? आइए समझते हैं।
सोशल मीडिया पर इसको लेकर चर्चा इसलिए तेज हो गई है, क्योंकि वर्ष 1995-96 के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रसंघ का चुनाव था। उस दौरान अलका लांबा ने एनएसयूआई की तरफ से अध्यक्ष पद और रेखा गुप्ता ने ABVP से सेक्रटरी पद की शपथ एक साथ एक ही मंच से ली थी। ये बात करीब तीन दशक पुरानी है। लेकिन, अब जब रेखा गुप्ता ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, तो अलका लांबा ने वही पुरानी तस्वीर शेयर की।
इसको लेकर एक्स यूजर ओसिन जैन कहती हैं, “विचार के लिए समर्पित होकर जिन्होंने जीवन खपाया, उन्हें समय आने पर यह मौके मिले हैं। 1995 में बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस कितनी बड़ी ताकत थी, लेकिन आज रेखा गुप्ता सीएम हैं और अलका लांबा की जमानत तक जब्त हो गई। यह अंतर है एक परिवारवादी पार्टी और कार्यकर्ताओं को लेकर चलने वाली पार्टी में। अलक लांबा को तो अब कुछ दिन नींद भी नहीं आएगी।”
दरअसल, रेखा गुप्ता ने जब से भाजपा ज्वाइन की तब से वह लगातार पार्टी के साथ अच्छे और बुरे दोनों ही वक्त में खड़ी रहीं। इसके उलट अलका लांबा मौकापरस्त थीं। उन्हें जब आम आदमी पार्टी में अपना भविष्य दिखा था, तो वो कांग्रेस छोड़कर AAP में शामिल हो गई थीं, लेकिन जब वहां बात नहीं बनी तो वे फिर से कांग्रेस में शामिल हुईं। इस बार के चुनाव में भी हार गई हैं।
इसी क्रम में एक अन्य यूजर डी ससांक कहते हैं कि देखिए बीजेपी और अन्य पार्टियों में ये सबसे बड़ा अंतर है क्योंकि बीजेपी का छोटा सा कार्यकर्ता भी अपने परिश्रम और ईमानदारी की बदौलत शीर्ष पर पहुँच जाता है, जबकि परिवारवादी पार्टी को अपने परिवार के अलावा कोई दूसरा नजर ही नहीं आता यही कारण है विपक्ष के फेल होने और बीजेपी के आगे बढ़ने का।
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