बांग्लादेश में इस्लाम (Islam) की मजहबी कट्टरता के नए-नए मामले सामने आ रहे हैं। कथित नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार में जिस प्रकार से मजहबी कट्टरता का भयानक रूप सामने आ रहा है, वह हालांकि चकित तो नहीं करता है, परंतु उन मामलों पर उनकी चुप्पी हैरान करती है, जो लगातार शेख हसीना को तानाशाह बताते रहे थे। बांग्लादेश में इन दिनों बुक फेयर चल रहा है और हमने पहले भी यह देखा था कि कैसे कुछ कट्टरपंथियों ने उस बुक स्टॉल पर हमला किया था, जो तस्लीमा नसरीन की किताबें प्रदर्शित कर रहा था। अब महिलाओं के मासिक (Women Menstrual) को लेकर लगाए गए स्टाल पर हमला किया गया है।
हालांकि मोहम्मद यूनुस की सरकार ने यह आश्वासन दिया था कि ऐसा दोबारा नहीं होगा, मगर अब फिर से पुस्तक मेले में हमला हुआ है। हालांकि इस हमले से पहले भी बांग्लादेश में हर उस पहचान पर हमला हुआ है, जो उसे इस्लामिक मुल्क की पहचान से दूर करता है। जैसे कि हिन्दू और बौद्ध मंदिर, ईसाई चर्च और सूफी संतों की दरगाह पर। मुजीबुर्रहमान का घर तक जला दिया गया और हाल ही में माँ सरस्वती के मंदिर पर भी हमला किया गया था और प्रतिमाओं को तोड़ दिया गया।
मगर ये सब कहा जा सकता है कि ऐसे मामले थे जिनमें ऐसा कहा जा सकता था कि अल्पसंख्यकों या ऐसे वर्ग से संबंधित हैं, जिनका मजहबी यकीन से कोई लेना देना नहीं है। मगर अब पुस्तक मेले में महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर निशुल्क सैनिटरी पैड का वितरण कर रहे स्टॉल को भी बंद करा दिया गया है।
PRAN-RFL समूह के स्टॉल पर उनके “stay-safe” नाम से सैनिटरी पैड का डिस्प्ले किया गया था और वे महिलाओं के मध्य जागरूकता पैदा करने के लिए एक कोने में इनका निशुल्क वितरण कर रहे थे। मगर एक समूह ने इस पर आपत्ति जताई कि कैसे “निजी उत्पाद” की बिक्री यहाँ पर की जा सकती है। उन्होंने इस कार्य को अनैतिक करार दिया और कहा कि इसे हटाया जाए।
इसे लेकर बांग्ला अकादमी के डायरेक्टर जनरल, मोहम्मद आजम ने आदेश दिए कि पुस्तक मेले में पुस्तक के अलावा और कुछ नहीं बेचा जा सकता है, इसे इसे हटाया जाए। हालांकि, समूह का कहना है कि वह इन्हें बेच नहीं रहा था, बल्कि निशुल्क वितरण किया जा रहा था। इसके बाद कहा जा रहा है कि दो स्टॉल बंद हो गए। यूनुस सरकार में लगातार ही ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं, जो यह दिखा रहे हैं कि कैसे यूनुस सरकार मजहबी कट्टरपंथियों के सामने अपना सिर झुका रही है। पुस्तक मेले में भी दो मामले ऐसे हुए, जिनमें यही देखा गया कि कैसे यूनुस सरकार भीड़ के सामने झुक गई। बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन की पुस्तकों के मामले से लेकर अब सैनिटरी पैड के निशुल्क वितरण तक।
एक और बात इन दोनों घटनाओं में आम है कि ये दोनों ही मामले महिलाओं के विरोध में रहे। जहां पहली घटना में निशाने पर तस्लीमा नसरीन थीं तो दूसरे मामले में तो एक विशेष उम्र की सभी महिलाएं थीं। किसी को भी महिला स्वास्थ्य के उत्पादों के निशुल्क वितरण से क्या समस्या हो सकती है? ढाका ट्रिब्यून के अनुसार PRAN-RFL समूह के दो स्टॉल लगातार चल रहे थे और आरंभ में समस्या कोई नहीं थी। मगर 11 फरवरी के बाद कुछ इस्लामी समूह के सदस्यों ने सैनिटरी नैपकिन के उत्पादों को निजी उत्पाद बताया और उनके सार्वजनिक प्रदर्शन को बंद करने की मांग की।
ईवेंट मैनेजमेंट कंपनी के सीईओ रकीब खान के भेजे हुए एक पत्र के अनुसार “अगले दिन, इसी मांग को लेकर और लोग आए। बाद में बांग्ला अकादमी, पुलिस, अंसार और इवेंट मैनेजमेंट स्वयंसेवकों की मदद से स्थिति को नियंत्रण में लाया गया। जब 13 फरवरी को स्टॉल फिर से खुले, तो कुछ समूहों ने सीधे बांग्ला अकादमी में शिकायत दर्ज कराई।”
इसके बाद ये दो स्टॉल बंद हो गए। समूह के लोगों का कहना था कि इतनी महिलाएं इस मेले में आती हैं, इसलिए हमारा इरादा था कि उनकी जरूरतों को ध्यान में रखा जाए। इसे लेकर सोशल मीडिया पर भी लोग गुस्से में हैं। मगर ऐसा नहीं है कि केवल स्टॉल ही बंद किये जा रहे हैं, बांग्लादेश में इंसान भी कैद किये जा रहे हैं और जिस समय वहाँ का सबसे बड़ा पुस्तक मेला चल रहा है, उसी समय बांग्लादेश में लेखक और कवि सोहेल हसन गालिब को इसलिए हिरासत में ले लिया गया है क्योंकि उन पर यह आरोप लगा कि उनके कारण लोगों की मजहबी भावनाएं आहत हुई हैं।
उन पर आरोप है कि उन्होनें अपनी किसी रचना के माध्यम से मजहब पर अपमानजनक बात काही है और ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस ने गालिब को सनरपार में उनके घर से गिरफ्तार कर लिया और उन्हें जेल भेज दिया गया और उसके बाद उन्हें अदालत में पेश किया गया। जहां से उन्हें दो दिनों की रिमांड में भेज दिया गया।
और यह सब उसी दौरान हुआ, जब बांग्लादेश में पुस्तकों का मेला लगा हुआ है, कथित अभिव्यक्ति की आजादी का जश्न चल रहा है, मगर तस्लीमा नसरीन की किताबों को प्रदर्शित करने वाले स्टॉल पर हमला भी हो रहा है और कवि सोहेल हसन गालिब को उनकी रचनाओं के कारण जेल में भेजा जा रहा है और यह सब कथित उदारवादी और नोबल विजेता मोहम्मद यूनुस की ऐसी सरकार में हो रहा है, जो देश में सुधार करने आई है।
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