बांग्लादेश की इस्लामिक सरकार अपने सभी विरोधियों को ठिकाने लगाने और संविधान में बदलाव करने के बाद अब चुनाव कराना चाहती है, ताकि एक पूर्णकालिक सरकार का गठन किया जा सके। इसके लिए बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने एक बयान जारी कर इस बात की उम्मीद जताई है कि राजनीतिक दल आपसी बातचीत के जरिए देश के सुधारों पर न्यूनतम सहमति पर पहुंचेंगे, ताकि जल्द राष्ट्रीय चुरना हों।
आलमगीर का कहना है कि संवैधानिक सुधार आय़ोग ने जो रिपोर्ट पेश की है, उस पर चर्चा करके आम सहमति पर पहुंचने की कोशिश होगी। बीएनपी नेता ने इस बात पर भी उम्मीद जताई कि विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ चर्चा के बाद ऐसा लग रहा है सुधार पर सभी सहमत हैं। फखरुल आलम का कहा के देश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने राष्ट्रीय सहमति आयोग के साथ पहली बैठक की। उन्होंने सुधारों की आवश्यकता और महत्व पर बल दिया।
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इस बैठक में बैठक में लेबर पार्टी, एनपीपी, बीएनपी, जातीय पार्टी (काजी जाफर), जातीय नागोरिक समिति, जमात-ए-इस्लामी, इस्लामी आंदोलन, एलडीपी, बिप्लोबी वर्कर्स पार्टी, गणोसंहति आंदोलन, नागोरिक ओइक्या, खिलाफत मजलिस, गोनो अधिकार परिषद, गोनो फोरम, जगपा, भाजपा बांग्लादेश जेएसडी के प्रतिनिधिमंडल इसमें शामिल रहे।
आवामी लीग को किया गया दरकिनार
जबकि, देश में हो रहे बदलावों को लेकर की गई इस बैठक से आवामी लीग को पूरी तरह से बाहर रखा गया है। खास बात ये है कि इस बैठक में जितनी भी पार्टियां शामिल रहीं, वो सभी कहीं न कहीं इस्लामिक कट्टरपंथ को बढ़ावा देती है। वहीं आवामी लीग को लेकर देश की बीएनपी की अगुवाई वाली कट्टरपंथी सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि वो बांग्लादेश में आवामी लीग या उससे जुड़े किसी भी प्रतीक को बचने नहीं देंगे। कट्टरपंथियों ये इसी बात से परिलक्षित होती है कि हाल ही कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश में म्यूजियम बन चुके शेख मुजीबुर्रहमान के घर तक को ध्वस्त कर दिया.
वहीं जमात ए इस्लामी भी चाहती है कि संविधान बदलने के बाद अब देश में जल्द आम चुनाव कराए जाएं। जमात के नेता जमात नायब ए अमीर सैयद अब्दुल्ला मोहम्मद ताहिर का कहना है कि चुनाव से पहले सुधारों को देश में लागू कर दिया जाए। हम सभी तरह से सुधारों के साथ खड़े हैं। स्पष्ट हो कि जमात ए इस्लामी और बीएनपी का आपसी गठजोड़ है औऱ अंतरिम सरकार में जमात ए इस्लामी बीएनपी की सहयोगी है। यही वजह थी कि शेख हसीना की सत्ता गिरते ही अंतरिम सरकार बनाने के बाद बीएनपी ने सबसे पहले जमात पर लगाए गए प्रतिबंध को खत्म किया।
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