अमेरिका के सहयोगी कहे जाने वाले मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी तथा जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय ने तो इस प्रस्ताव को सुनते ही इसकी भर्त्सना की और इसे अस्वीकार कर दिया था। लेकिन ट्रंप भी अड़े हैं कि इन अरब देशों को अपने पाले में कर लेंगे। इसलिए आगे कूटनीतिक गतिविधियां क्या रंग दिखाती हैं, देखना दिलचस्प होगा।
अमेरिका के मित्र देश मिस्र की भवैं तिरछी हैं। कारण है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का गाजा को अपने अधिकार में लेकर उसका ’विकास’ करना। लेकिन इस प्रस्ताव पर पूरी दुनिया में गर्मागर्म बहस छिड़ी है, खासकर मुस्लिम देशों में जो मुस्लिम ब्रदरहुड की दुहाई देते हुए गाजा और फिलिस्तीन को ‘अपना’ मानते हैं। मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फत्तह अल-सीसी इस बात पर इतने तेवर में हैं कि सभी अरब देशों को आगामी 27 फरवरी को एक बड़ा सम्मेलन करने को राजी कर लिया है। यह अरब शिखर सम्मेलन खासतौर पर ट्रंप के गाजा में फिलिस्तीनियों को बसाने और उसका ‘विकास’ करने के विरुद्ध अरब एकजुटता दर्शाने और इस रास्ते अमेरिकी राष्ट्रपति को ऐसा कोई न बनाने देने का दबाव बनाने के लिए किया जा रहा है।
अरब शिखर सम्मेलन में मिस्र के अलावा जॉर्डन और सऊदी अरब के साथ कई अरबी देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होकर मंथन करेंगे। उनके एजेंडे में गाजा, फिलिस्तीन के साथ ही इस्राएल की आगे की संभावित कार्रवाई, संघर्षविराम जैसे मुद्दे हो सकते हैं। पिछले दिनों जब ट्रंप ने गाजा को लेकर उक्त प्रस्ताव जाहिर किया था तब इस्राएल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्यनाहू वाशिंगटन में ही थे। वे वहां हमास से अपने युद्ध को लेकर ट्रंप के साथ चर्चा करने गए थे। नेत्यनाहू और ट्रंप की उस वक्त की साथ ली गईं तस्वीरों ने ही अरब देशों को तिलमिला दिया था।
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कल इस बाबत घोषणा करते हुए मिस्र के राष्ट्रपति ने कहा कि हालात को देखते हुए यह आपातकालीन शिखर सम्मेलन बुलाया जा रहा है जो उनके ही देश में आयोजित होगा। सम्मेलन में मुस्लिम देशों के राजनेता गाजा को लेकर फिलिस्तीनियों के पुनर्वास से जुड़े ट्रंप के बयानों की बारीकी से चर्चा करने के साथ ही अपना एक साझा मत व्यक्त करेंगे।
गाजा में ट्रंप का प्रस्ताव सीधे सीधे 18 लाख से अधिक फिलिस्तीनियों के पुनर्वास को अमेरिका की देखरेख में कराने की बात करता है। इतना ही नहीं, ट्रंप ने गाजा पर यह काम करने के साथ ही उस क्षेत्र को अमेरिका के नियंत्रण में ले लेने की बात भी की थी। अरब के इस्लामवादी देश तभी से ट्रंप को लेकर नाराज हैं। वह कहते हैं कि यह फिलिस्तीनियों के अधिकारों का अतिक्रमण रकना होगा। इन मुस्लिम देशों में भी मिस्र, सऊदी अरब और जॉर्डन की तरफ से इस पर तीखी प्रतिक्रिया देखने में आई है। दिलचस्प बात है कि ये तीनों ही अरबी देश अमेरिका से निकटता रखते हैं और उसका सहयोग भी करते हैं।
अमेरिका के सहयोगी कहे जाने वाले मिस्र के राष्ट्रपति अल-सीसी तथा जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय ने तो इस प्रस्ताव को सुनते ही इसकी भर्त्सना की और इसे अस्वीकार कर दिया था। लेकिन ट्रंप भी अड़े हैं कि इन अरब देशों को अपने पाले में कर लेंगे। इसलिए आगे कूटनीतिक गतिविधियां क्या रंग दिखाती हैं, देखना दिलचस्प होगा।
मिस्र के अनुसार, फिलिस्तीन भी चाहता था कि अरब देशों का ऐसा एक सम्मेलन बुलाकर ट्रंप की गाजा को लेकर बन रही नीति की समीक्षा की जाए। उन्हें इस प्रस्ताव में ‘खतरे’ दिखाई दे रहे हैं।
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जैसा पहले बताया, ट्रंप जिस वक्त यह प्रस्ताव सामने रख रहे थे तब इस्राएल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू भी साथ थे। दोनों जब प्रेस के सामने वक्तव्य दे रहे थे तब ट्रंप का कहना था कि गाजा को अमेरिका अपने अधिकार में लेने का इच्छुक है। ऐसा करने के बाद अमेरिका द्वारा गाजा में खतरनाक बम और अन्य हथियार नष्ट कर दिए जाएंगे। जो भवन टूटे हैं उनकी मरम्मत भी अमेरिका ही कराएगा। साथ ही, गाजा के आर्थिक विकास की जिम्मेदारी भी अमेरिका की होगी। गाजा के लोगों का रोजगार और घर दोनों हासिल होंगे। ट्रंप के अनुसार इन सब कामों को करने में सेना की मदद चाहिए होगी तो अमेरिका की सेना बुलाई जा सकती है।
गाजा को लेकर ट्रंप के प्रस्ताव पर इस्राएल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इसे अपना समर्थन दिया था। नेतन्याहू का कहना था कि वे चाहते हैं, अब आगे गाजा कभी इस्राएल के लिए खतरे न पैदा करे। ट्रंप गाजा को एक नई ऊंचाई दे रहे हैं। उनके अनुसार, ट्रंप के इस प्रस्ताव को गंभीरता से लेकर इस पर विचार किया जाना चाहिए।
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