शहरी उपभोग के संकुचन और अर्थव्यवस्था के धीमा होने की आशंकाओं के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लगातार 8वां बजट पेश किया। इसी के साथ वे सबसे लंबे समय तक और सबसे अधिक बार केंद्रीय बजट प्रस्तुत करने वाली मंत्री बन गईं। उच्च कराधान और शहरी मध्यम वर्ग की अनदेखी के आरोपों के बीच करों में राहत देने के साथ सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं और बजट आवंटन भी बढ़ाया है।
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चार्टर्ड अकाउंटेंट
मध्यम वर्ग बढ़ती महंगाई, कोरोना महामारी के दौरान वेतन में कटौती और बाद में मामूली वेतन वृद्धि के कारण दबाव में था। इसके चलते शहरी खपत में कमी आई। सरकार की सबसे बड़ी चिंता राजकोषीय घाटा है। इसलिए घाटे का प्रबंधन करना और विभिन्न मानकों को नियंत्रण में रखना वित्त मंत्री की मजबूरी थी। साथ ही, बुनियादी ढांचे में सुधार और यह सुनिश्चित करने की चुनौती थी कि ये आर्थिक तबाही का कारण न बनें। सरकार दृढ़ रही और राजकोषीय घाटे को कम करने पर ध्यान केंद्रित रखा।
कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सरकार को राजकोषीय घाटे की अनदेखी करनी पड़ी थी। लेकिन बाद में वित्त मंत्री का ध्यान राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में लाने और इसे लगातार कम करने पर रहा। उन्होंने इन्हीं सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मजबूरियों के बीच बजट-2025 प्रस्तुत किया, जो परंपरागत परिपाटी से हटकर विषयगत मुद्दों के समाधान की नई बयार लेकर आया है। यह बजट केवल मध्यम वर्ग के लिए टैक्स कटौती तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई अन्य महत्वपूर्ण उपाय भी शामिल हैं, जो इस वर्ग की आर्थिक स्थिति को सुधारने व उसकी खर्च करने की क्षमता बढ़ाने में सहायक होंगे। छोटे व्यवसायियों के लिए टैक्स स्लैब में बदलाव से उन्हें आॅनलाइन लेन-देन में सुविधा होगी और व्यापार बढ़ाने का अवसर मिलेगा। उम्मीद है कि इन उपायों से मध्यम वर्ग का जीवन स्तर बेहतर होगा और वे आर्थिक विकास में सक्रिय भागीदार बनेंगे।
मध्यम वर्ग से आस
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में मध्यम वर्ग को विकास का पैमाना माना जाता है। यह वर्ग आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उपभोक्ता मांग बढ़ाने में भी सहायक होता है। यह वर्ग उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों पर खर्च करता है, जिससे बाजार में नए उत्पादों की मांग बढ़ती है और कंपनियों को अपने उत्पादों का विस्तार करने का अवसर मिलता है। उत्पादन और रोजगार के अवसर भी बढ़ते हैं। मजबूत मध्यम वर्ग सामाजिक स्थिरता को बढ़ावा देता है। खास तौर से शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाओं में इस वर्ग के निवेश से समाज में समृद्धि आती है। इसी तरह, इसका राजनीतिक दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण होता है।
यह वर्ग लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदारी कर सरकारों पर नीतिगत बदलाव के लिए दबाव डालने में भी सक्षम होता है। सरकार की भी अपेक्षा होती है कि यह आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग ले और देश के विकास में योगदान दे। मध्यम वर्ग अपने खर्चे बढ़ाए ताकि उपभोक्ता मांग में वृद्धि हो और उद्योगों को लाभ हो, जिससे रोजगार सृजन हो। इसके अलावा, यह अपेक्षा भी होती है कि मध्यम वर्ग सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता और समाज के विकास में अपना योगदान दे, जैसे कि शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, पर्यावरण संरक्षण और संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग।
2020-21 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में मध्यम वर्ग की आबादी लगभग 43.2 करोड़ है, जो कुल जनसंख्या का लगभग 31 प्रतिशत है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस वर्ग की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 56 प्रतिशत है। 2020 तक इस वर्ग ने देश की कुल आय का 50 प्रतिशत, कुल खर्च का 48 प्रतिशत और बचत में 52 प्रतिशत योगदान दिया। मध्यम वर्ग की आर्थिक ताकत का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 2020-21 में इसकी कुल अर्जित आय 84,120 अरब रुपये थी, जिसमें खर्च 62,223 अरब रुपये और बचत 11,774 अरब रुपये थी। 2030 तक इस वर्ग की आबादी बढ़कर 71.5 करोड़ और 2047 तक 100 करोड़ से अधिक होने की उम्मीद है। यानी अगले 20 वर्ष में मध्यम वर्ग की आबादी भारत की कुल आबादी का 61 प्रतिशत हो जाएगी। मध्य वर्ग की इतनी विशाल आबादी भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने की क्षमता रखती है।
बजट में राहत उपायों की घोषणा इस वर्ग की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में सहायक होंगी। सालाना 12 लाख रुपये तक की आय पर आयकर छूट और 75,000 रुपये की नियमित छूट न केवल आर्थिक राहत देगी, बल्कि मध्यम वर्ग की खर्च करने की क्षमता भी बढ़ाएगी। किराये से होने वाली आय पर टीडीएस सीमा भी सालाना 2.40 लाख बढ़ाकर 6 लाख रुपये कर दी गई है। इससे किरायेदारों को भी राहत मिलेगी। इसके अलावा, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आवश्यक जीवनरक्षक दवाओं पर कस्टम ड्यूटी में छूट दी गई है, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च में कमी आएगी।
बजट में दो गृह ऋणों पर विचार किया गया है, यानी घर खरीदार दो ‘सेल्फ-आॅक्यूपाइड प्रॉपर्टीज पर टैक्स नहीं चुकाएंगे। यह कदम रियल एस्टेट क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देगा और घर खरीदारों को आर्थिक रूप से मजबूत करेगा। शिक्षा ऋण पर किसी प्रकार का टीडीएस नहीं लगेगा, जिससे छात्रों की पढ़ाई पर वित्तीय बोझ कम होगा। खासकर वित्तीय संस्थानों से लिए गए 10 लाख तक के शिक्षा ऋण पर टीडीएस हटाया गया है। साथ ही, महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भी सरकार ने आवश्यक वस्तुओं का बफर स्टॉक मजबूत किया है और आपूर्ति बनाए रखने के लिए खुले बाजार में सामान जारी किया है। आयकर छूट और अन्य राहत उपायों से मध्यम वर्ग की आर्थिक स्थिति सुधरेगी, तो वह अधिक खर्च करेगा। इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी व रोजगार के अवसर सृजित होंगे। दशकों तक बजट में सड़कों, राजमार्गों, ग्रामीण, कृषि, राज्यों, समाज के विभिन्न वर्गों, लोकलुभावन योजनाओं आदि के लिए हजारों-लाखों करोड़ रुपये आवंटित किए जाते रहे। लेकिन इस बार सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे सकारात्मक बदलाव आएंगे।
बजट में 12 लाख रुपये आय पर आयकर छूट देने के बाद सरकार की आय में लगभग एक लाख करोड़ रुपये की कमी के बावजूद बुनियादी ढांचा योजनाओं जैसे-सड़क, हवाईअड्डे, रेल, इंटरनेट और कृषि पर खर्च बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को गति देने पर जोर दिया गया है। यह बजट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समृद्ध, विकसित और सशक्त भारत की कल्पना का प्रतीक है। यह सभी वर्गों की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करता है। बजट में अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए गए हैं। इन कदमों से स्पष्ट है कि बजट-2025 में पुरानी परंपराओं से हटकर विकास को प्राथमिकता देने के साथ गरीबों, युवाओं, किसानों और महिलाओं को भी सशक्त बनाने का लक्ष्य रख गया है।
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