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 देश से विदेश तक डंका

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) परियोजना का प्रस्ताव 1948 में रखा गया था। 1951 में पहला आईआईटी खड़गपुर में स्थापित हुआ। आज यह संस्थान वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित है और इसके छात्र विश्व के शीर्ष संस्थानों और कंपनियों में नेतृत्व कर रहे हैं

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Jan 9, 2025, 10:42 am IST
in भारत, विश्लेषण, विज्ञान और तकनीक
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देश के विकास में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। आईआईटी की स्थापना के पीछे मुख्य उद्देश्य इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करना, प्रासंगिक क्षेत्रों में अनुसंधान करना और अधिगम और ज्ञान के प्रसार को आगे बढ़ाना है। ये संस्थान बुनियादी विज्ञान और मानविकी में शिक्षा और अनुसंधान में तो महत्वपूर्ण योगदान दे ही रहे हैं, देश के सामाजिक और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। तकनीकी नवाचार और अनुसंधान के जरिए देश के यह संस्थान विकास को नई ऊंचाइयों तक ले गए हैं। यही नहीं, कोरोना महामारी के दौरान आईआईटी ने रैपिड एंटीजन किट, मास्क और वेंटिलेटर बनाकर लोगों की मदद की।

पी.के. मिश्रा
वरिष्ठ आचार्य, बीएचयू

आईआईटी की परिकल्पना 1948 में की गई थी। उस समय भारतीय राजनीतिज्ञ एवं अर्थशास्त्री नलिनी रंजन सरकार की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी। आईआईटी परियोजना को साकार करने में उद्योगपति अर्देशिर दलाल, शिक्षाविद् और राजनीतिज्ञ हुमायूं कबीर, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बिधान चंद्र रॉय और वायसराय की कार्यकारी परिषद के सदस्य जोगेंद्र सिंह की भूमिका रही। सरकार समिति ने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) की तर्ज पर उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी भारत में कम से कम चार आईआईटी की स्थापना की सिफारिश की। इसके बाद पहले आईआईटी का मार्ग प्रशस्त हुआ। भारत का पहला आईआईटी पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में स्थापित किया गया था। उस समय यह राज्य के पूर्व हिजली डिटेंशन कैम्प में स्थित था। हिजली डिटेंशन कैम्प एक जेल थी, जिसमें ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को रखा जाता था।

आईआईटी के छात्रों ने दुनिया भर में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। इस संस्थान से निकले वैज्ञानिकों, उद्यमियों और नेताओं ने विश्व में अपनी अलग पहचान बनाई है। आईआईटी ने दुनिया के कुछ सबसे सफल सीईओ, उद्यमी और स्टार्टअप संस्थापकों को भी तैयार किया है। इनमें गूगल और अल्फाबेट इंक के सीईओ सुंदर पिचाई, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला, आईबीएम के सीईओ अरविंद कृष्ण और भारतीय बहुराष्ट्रीय आईटी कंपनी इंफोसिस टेक्नोलॉजीज के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति के नाम शामिल हैं। इस तकनीकी संस्थान के छात्रों की तकनीकी विशेषज्ञता और समस्याओं को हल करने की क्षमता अद्भुत है, जो राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण है। औद्योगिक विकास में भी आईआईटी का महती योगदान है। इसने उद्योग और शिक्षा के बीच तालमेल को मजबूत किया है। आईआईटी द्वारा किए गए अनुसंधानों ने आईटी, विनिर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में प्रगति को बढ़ावा दिया है, जिससे भारत के औद्योगिक विकास को गति मिली है।

आईआईटी के कई पूर्व छात्र देश में कई बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के डिजाइन और क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर पुल, राजमार्ग और मेट्रो सिस्टम। इन परियोजनाओं ने कनेक्टिविटी में सुधार किया है और आर्थिक विकास को प्रोत्साहन दिया है। कुल मिलाकर बुनियादी ढांचे के विकास में आईआईटी की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। स्टार्टअप और उद्यमिता को बढ़ावा देने का काम भी आईआईटी ने बखूबी किया है। स्वयं आईआईटी के इनक्यूबेशन केंद्रों में कई स्टार्टअप को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के तौर पर ओला, जोमैटो और फ्लिपकार्ट जैसे स्टार्टअप आईआईटी से पढ़ाई कर चुके छात्रों द्वारा ही शुरू किए गए हैं।

 

आईआईटी के विशेष योगदान

  • आईआईटी मद्रास ने सौर ऊर्जा से संचालित मोबाइल संचार प्रणाली विकसित की, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी सुनिश्चित हुई। 
  •  आईआईटी बॉम्बे ने सरकार के साथ मिलकर ‘आकाश टैबलेट’ विकसित किया, जिससे छात्रों को सस्ती डिजिटल शिक्षा उपलब्ध हो सकी।
  •  आईआईटी कानपुर ने राष्ट्रीय सूचना केंद्र के लिए सॉफ्टवेयर विकसित किया, जिससे ई-गवर्नेंस को अधिक पारदर्शी और कुशल बनाया जा सका।
  •  आईआईटी दिल्ली ने ‘कृति’ जल शुद्धिकरण प्रणाली बनाई, जो कम लागत में गांव और शहरों में साफ पेयजल उपलब्ध कराती है।
  •  आईआईटी खड़गपुर ने मृदा स्वास्थ्य निगरानी उपकरण विकसित किए, जिससे किसानों को फसल उत्पादन में मदद मिली।
  •  आईआईटी गुवाहाटी ने कम लागत वाला इंसुलिन डिलीवरी सिस्टम विकसित किया, जिससे मधुमेह के मरीजों के लिए इलाज सस्ता हुआ।
  •  आईआईटी रुड़की ने भूकंप चेतावनी प्रणाली पर अनुसंधान किया, जिससे भूकंप संभावित क्षेत्रों में आपदा की तैयारी में मदद मिली।

स्वास्थ्य सेवाओं में भी आईआईटी का योगदान है। आईआईटी ने शोध कर कम लागत वाले चिकित्सा उपकरण और स्वास्थ्य तकनीक विकसित की हैं। इसके चलते करोड़ों भारतीयों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ और सस्ती हुई हैं। यह नवाचार स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक बेहद महत्वपूर्ण योगदान है। इसके अलावा सतत विकास के समाधान खोजने में आईआईटी जैसे संस्थान अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं। आईआईटी के शिक्षक और पूर्व छात्र शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में नीतियों के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। इनकी सलाह ने देश की विकास नीति को आकार देने में मदद की है। ये इन सलाहकार की भूमिकाएं निभा रहे हैं।

इसके अलावा आईआईटी का शोध और अनुसंधान में भी महत्वूपर्ण योगदान है। इस संस्थान ने वैश्विक संस्थानों के साथ मिलकर अनेक अनुसंधान किए हैं। उदाहरण के तौर पर आईआईटी बॉम्बे में नैनोटेक्नोलॉजी पर, आईआईटी मद्रास में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस पर और आईआईटी दिल्ली द्वारा ‘स्मार्ट ग्रिड डिजाइन’ पर किए गए काम ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। आईआईटी के छात्रों द्वारा शुरू किए गए स्टार्टअप ने न केवल भारत में उद्योगों में बदलाव किया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी ध्यान आकर्षित किया है।

आईआईटी से निकले छात्र दुनिया भर में शैक्षिक और औद्योगिक क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जिससे सांस्कृतिक और बौद्धिक आदान-प्रदान हो रहा है। इससे भारत को वैश्विक स्तर पर सराहना मिल रही है। उनके द्वारा विकसित किए गए सस्ते चिकित्सा उपकरण, नवीकरणीय ऊर्जा समाधान और उन्नत तकनीकों का वैश्विक स्तर पर उपयोग किया जा रहा है। इससे दुनियाभर में भारत की साख में बढ़ रही है।
आईआईटी वैश्विक उत्कृष्टता के केंद्र बन चुके हैं। इनका योगदान शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार और प्रौद्योगिकी से लेकर वैश्विक समस्याओं के समाधान में भी है। ये तकनीकी संस्थान भारत को समृद्ध और ‘टेक्नोलॉजिकल सुपरपावर’ बनाने की दिशा में ले जा रहे हैं।

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