विश्लेषण

बांग्लादेश के हिंदू विरोधी नेताओं की भाषा क्यों बोल रहे हैं भारत के विपक्षी नेता?

Published by
सोनाली मिश्रा

बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ जो भी हो रहा है वह किसी से भी अब छिपा नहीं है। इस्कॉन भिक्षु चिन्मय दास की गिरफ़्तारी के बाद की हिंसा भी सभी देख ही रहे हैं और उसका पूरी दुनिया में विरोध हो ही रहा है। मगर फिर भी भारत में कुछ ऐसे लोग हैं या फिर कहें भारत का हिंदू विरोधी और भारत विरोधी विपक्ष भी है, जो बांग्लादेश के समकक्ष भारत को रख रहा है।

वह वही भाषा बोल रहा है जो बांग्लादेश की हिंदू विरोधी सरकार बोल रही है। बांग्लादेश की यूनुस सरकार ने इस्कॉन के स्वामी चिन्मय दास की गिरफ़्तारी को लेकर भारत पर निशाना साधा था कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं, वह अपने यहाँ अल्पसंख्यकों की चिंता करें। बांग्लादेश ने शुक्रवार को भारत के खिलाफ जो भाषा बोली थी कि “भारत अल्पसंख्यकों को लेकर दोहरा रवैया अपनाता है। वहाँ पर अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय पर क्रूरता की कई घटनाएं हो रही हैं, मगर उनके पास उन घटनाओं पर कोई अफसोस या शर्मिंदगी नहीं है।“ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विधि मामलों के सलाहकार असीफ नजरूल की फ़ेसबुक पोस्ट के शब्द ऐसा लगा जैसे भारत के विपक्ष की आवाज बन गए हों।

बांग्लादेश के हिंदुओं की बात करने वाले पत्रकारों को भारत का पक्ष रखने वाले पत्रकार कहकर अपमानित किया जा रहा है तो वहीं बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति को छिपाने वाले पत्रकार यह दावा कर रहे हैं कि भारत का मीडिया दरअसल, गलत जानकारी फैला रहा है।

समस्या यह नहीं है कि वहाँ के कट्टरपंथी लोग या पत्रकार वहाँ के हिंदुओं की स्थिति को नकार रहे हैं, बल्कि समस्या यह है कि उनका यह दृष्टिकोण भारत के विपक्ष के लिए मार्गदर्शक वक्तव्य जैसा कुछ बनता जा रहा है। बांग्लादेश में जहां हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को वहाँ का वर्ग नकार रहा है तो भारत के विपक्षी दलों के कुछ नेता जैसे राशिद अलवी, महबूबा मुफ्ती भी यही कह रहे हैं कि भारत में भी अल्पसंख्यकों की स्थिति खराब है।

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कांग्रेस के नेता राशिद अलवी ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं के मंदिरों और हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं, मगर भारत में तो हालात और भी खराब हैं। एएनआई के हवाले से उन्होंने कहा कि “गुजरात में मस्जिदें गिराई जा रही हैं और कब्रिस्तान गायब हो रहे हैं। उत्तराखंड से मस्जिदों के खिलाफ रिपोर्ट्स आ रही हैं। संभल की घटना भी हुई है, जहां पर लोग मारे गए हैं और अजमेर दरगाह शरीफ पर सवाल उठ रहे हैं। फिर कहा कि भारत में तो बांग्लादेश से भी बुरी स्थिति है।

इससे पहले कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री रह चुकी महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, मगर जब शिव लिंग को खोजने के लिए मस्जिदें तोड़ी जा रही हों और अल्पसंख्यकों पर जुल्म हों तो बांग्लादेश और हममें अंतर क्या रहा। उन्होंने उमर खालिद के जेल में होने का उदाहरण भी देते हुए कहा था कि अगर बांग्लादेश में लोगों को जेल में भेजा जा रहा है तो भारत में भी उमर खालिद हिरासत में है। मुफ्ती ने यह भी कहा था कि आप सड़कें ठीक करा नहीं पाते, तो आप मस्जिद तोड़कर उनके नीचे से मंदिर खोजते हैं!”

राशिद अलवी और महबूबा मुफ्ती दोनों ही बांग्लादेश की भाषा बोल रहे हैं। दोनों ही लोग इस बात से व्यथित हैं कि मस्जिदों के नीचे से मंदिर खोजे जा रहे हैं। मस्जिदों के नीचे मंदिर हैं, यह तो ऐतिहासिक तथ्य हैं, इनसे गुरेज क्यों? सत्यता से परहेज क्यों?

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हाल ही में संभल की जामा मस्जिद पर जो विवाद हुआ है, वहाँ पर तो वर्ष 2012 तक पूजा होती थी। शादी ब्याह के संस्कार होते थे। यह बातें कागजातों और सरकारी दस्तावेजों में दर्ज हैं। भाजपा विधायक डॉ शलभ मणि त्रिपाठी ने एक्स पर इस सत्य को स्पष्ट करते हुए तस्वीरें भी साझा की थीं। उन्होंने लिखा था, “2012 यानी सपा सरकार से पहले तक हरि मंदिर पर पूजा अर्चना होती थी, शादी ब्याह के संस्कार भी होते थे, इसकी पुरानी तस्वीरें भी हैं, सपा सरकार में MP शफीकुर्रहमान बर्क़ के दबाव में पूजा अर्चना रूकवा दी गई। हरि मंदिर को पूरी तौर पर जामा मस्जिद में तब्दील कर दिया गया, सरकारी गजट से लेकर तमाम लेखों में यहां हिंदू मंदिर का ज़िक्र है, यही वजह है कि आज कुछ लोगों को सर्वे से डर लगता है !!”

बांग्लादेश से लेकर राशिद अलवी और महबूबा मुफ्ती जैसे लोगों को सर्वे से डर लगता है, कागजातों से डर लगता है। कागजों में ही हकीकत लिखी हुई है कि कब कौन सा मंदिर तोड़ा गया और उसके स्थान पर मस्जिद खड़ी हो गई।

जो बातें तोड़ने वालों ने खुद लिखीं उन्हें नकारना कैसा? आज भी असंख्य मस्जिदें ऐसी हैं, जिन्हें देखने से यह पता चलता है कि कभी यहाँ पर मंदिर रहा होगा। कागजों से या तथ्यों को जानने से डर कैसा? बांग्लादेश के कट्टरपंथी लोग भी हिंदुओं को इसीलिए मिटाना चाहते हैं क्योंकि वे उन तथ्यों से निगाहें चुराना चाहते हैं जो उन्हें चीख –चीख कर यह बताते हैं कि यह सब कभी हिंदू था। ढाका की पहचान ढाकेश्वरी देवी से है, मुस्लिम लीग से नहीं। यही कारण है कि जो हिंदू अपनी हिंदू पहचान लेकर चलते हैं, वे बांग्लादेश के कट्टरपंथियों के दुश्मन हैं, जो हिंदू भारत में अपने पूजा स्थलों के इतिहास की असली पहचान की लड़ाई लड़ते हैं या बात करते हैं, वे यहाँ के कट्टरपंथियों के सबसे बड़े दुश्मन हैं, फिर चाहे वे राजनेता के भेष में हों या फिर किसी और भेष में। उनकी भाषा एक ही रहेगी, बांग्लादेश से लेकर कश्मीर तक।

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