भारत के महान जनजातीय सम्राट संग्राम शाह ने 15वीं शताब्दी में गढ़ा कटंगा में वृहत गोंडवाना साम्राज्य का निर्माण किया और कालिंजर के राजा कीरत सिंह के साथ रक्षात्मक संधि स्वीकार करते हुए अपने पुत्र दलपति शाह के लिए उनकी पुत्री वीरांगना दुर्गावती के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा। सन 1541 में संग्राम शाह का निधन हो गया। इसके बाद उनके पुत्र दलपति शाह सम्राट बने। सन 1542 में दलपति शाह का विवाह, वीरांगना दुर्गावती से हुआ। महारथी दलपति शाह ने मदन महल की जगह सिंगौरगढ़ को अपना निवास स्थान बनाया। सिंगौरगढ़ में सन 1543 में वीर नारायण सिंह का जन्म हुआ और धाय मां के रूप में इमरती देवी नियुक्त हुईं।
मध्य युग में राजपूताना में जो स्थान महान वीरांगना पन्ना धाय को प्राप्त है, वही स्थान गोंडवाना में इमरती देवी का है। भारत में स्वामी के प्रति भक्ति और समर्पण का इतिहास सदियों से चला आ रहा है। रामायण में भक्त हनुमान ने प्रभु राम के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण से जहां उनके प्रिय बने वहीं महाभारत काल में पांडव पुत्र अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण और भक्ति के लिए याद किए जाते हैं। इसी तरह की स्वामी भक्ति और त्याग गोंडवाना साम्राज्य में धाय मां इमरती देवी में देखने को मिलती है। जिन्होंने राजकुमार वीरनारायण को दुश्मनों से बचाते हुए जंगल में सुरक्षित रखा। इसी स्वामिभक्ति को देखते हुए गोंड राजा दलपति शाह और रानी दुर्गावती ने गढ़ा में इमरती ताल का निर्माण कराया। आज यह तालाब जल संरक्षण के साथ ही सौंदर्य के लिए भी पहचाना जाता है। सन 1542 में रानी दुर्गावती और दलपति शाह का विवाह हुआ और इसके साथ थी साम्राज्य का चरमोत्कर्ष भी प्रारंभ हुआ। राज्य का विस्तार उत्तर से दक्षिण 300 मील एवं पूर्व से पश्चिम 225 मील कुल 67500 वर्ग मील तक फैल गया था।
मालवा के सुल्तान कादिर शाह के आक्रमण के विरुद्ध दलपति शाह की योजना
सन 1544 में दलपति शाह और रानी दुर्गावती का निवास सिंगौरगढ़ में ही था और इसी समय ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार मालवा के सुल्तान कादिर शाह उर्फ मल्लू खां ने गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई। इस बात की खबर गुप्तचरों के माध्यम से दलपति शाह को लग गई, उन्होंने अपनी सेना को तीन हिस्सों में बांट दिया और 5000 सैनिकों और एक हजार धनुर्धारियों का नेतृत्व रानी दुर्गावती को सौंपकर सिंगौरगढ़ में रक्षा के लिए रखा और स्वयं दमोह के निकट बरसई घाटी के दर्रे में कादिर खान को धूल चटाने के लिए मोर्चा जमाया।
वीरनारायण सिंह धाय मां इमरती देवी की सुरक्षा में, युद्ध का आरंभ और विजय
रानी दुर्गावती ने वीरनारायण को धाय मां इमरती देवी के सौंप कर सिंगौरगढ़ से निकलकर दर्रे का ऊपरी मोर्चा संभाल लिया। एक सुनियोजित रणनीति के अंतर्गत युद्ध आरंभ हुआ। योजना के अंतर्गत गोंड सैनिक पीछे हटने लगे और सुल्तान की सेना आगे बढ़ने लगी और दर्रे के मध्य में फंस गई। इसी का लाभ उठाते हुए एक ओर से दलपति शाह और दूसरी ओर से रानी दुर्गावती ने भयानक हमला किया, सुल्तान की सेना में भगदड़ मच गई। सुल्तान की पराजय हुई।
वीर नारायण की रक्षा के लिए धाय मां इमरती देवी का युद्ध
बरसई घाटी के युद्ध में सुल्तान पराजित हुआ, परंतु इसी समय उसकी एक टुकड़ी भटककर धाय मां इमरती देवी के पास पहुंच गई। जैसे ही उन्होंने शिविर पर आक्रमण किया वैसे ही अपने सैनिकों समेत धाय मां इमरती ने तलवार लेकर सैनिकों पर हमला किया। भीषण युद्ध हुआ जिसमें पांच मुस्लिम सैनिकों का वध करके, वह वीरनारायण को लेकर ओझल हो गईं। एक नाले को पार करते समय उनके पांव की हड्डी टूट गई बावजूद इसके इमरती देवी ने वीरनारायण की रक्षा की। दलपति शाह और रानी दुर्गावती ने वीरनारायण और इमरती देवी को शिविर में ना पाकर तलाश किया तब एक सुरक्षित स्थान पर दोनों को पाया। धाय मां इमरती देवी की स्वामिभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा ने सभी को अभिभूत कर दिया और उनके सम्मान में इमरती ताल का निर्माण कराया जो इस वृत्तांत का साक्षी है।
गौरतलब है कि गोंडवाना साम्राज्य में जल संरक्षण पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया गया। राजाओं ने अपने सेवकों और भक्तों को पुरस्कार स्वरूप तालाबों का निर्माण कराया। इससे यह भी संदेश दिया गया कि तालाब वर्षों तक भरे रहेंगे तो पानी की समस्या नहीं रहेगी। गढ़ा में पंडा की मढ़िया के पास बने इस तालाब की देखरेख नगर निगम के हाथों में है। तालाब को संरक्षित करने और सौंदर्य को लेकर हर साल समाजसेवी और राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोग सफाई अभियान चलाते हैं। जिससे इस तालाब की सुंदरता भी देखी जा सकती है। इसी क्रम में गोंड काल में जितने भी तालाबों का निर्माण कराया गया वह किसी न किसी उद्देश्य को लेकर कराया गया। इमरती ताल राजकुमार वीर नारायण की धाय मां को वीर नारायण को शत्रुओं से सुरक्षित बचाने के लिए पुरस्कार स्वरूप दिया गया था। इसी तरह संग्राम सागर, राजा संग्राम शाह के नाम उन्हीं के द्वारा निर्मित किया गया। रानीताल को रानी दुर्गावती के नाम पर बनाया गया। फूलसागर रानी दुर्गावती की देवरानी फूलवती के नाम पर बनाया गया। रानी के विश्वासपात्र आधार सिंह कायस्थ के नाम पर आधारताल और महेश ठाकुर के नाम पर ठाकुर ताल का निर्माण कराया गया। रानी की सेविका रामचेरी के नाम पर चेरीताल का निर्माण कराया गया। भू-जल विशेषज्ञ के नाम पर कीकर ताल और रामचेरी के पुत्र मोतीसिंह के नाम पर मोती ताल बनवाया गया।गोंडवाना काल में जबलपुर परिक्षेत्र में 52 तालाब, 84 तलैया और 40 बावलियां का अनोखा संगम था। इसलिए जबलपुर को तत्कालीन समय में जलहलपुर के नाम से भी जाना जाता था।
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