नई दिल्ली । मंगलवार, 5 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए यूपी मदरसा एक्ट की संवैधानिकता को बरकरार रखा गया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर यूजर्स ने अपनी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं। कुछ यूजर्स ने इस फैसले की आलोचना की तो कुछ ने इसका समर्थन किया, जिससे इस मुद्दे पर ऑनलाइन चर्चाएं गरम हो गईं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला : यूपी मदरसा एक्ट की वैधता बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए इसे राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्रदान करने योग्य बताया। इसके साथ ही यह स्पष्ट किया गया कि यूपी सरकार राज्य में मदरसों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है, जो कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलटने वाला निर्णय है।
सोशल मीडिया पर बंटी प्रतिक्रियाएं
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ‘एक्स’ पर यूजर्स ने कई टिप्पणियां कीं। एक यूजर ने लिखा, “अगर यूपी मदरसा एक्ट वाजिब है तो जज और वकील पहले अपने बच्चों को मदरसों में भेजें और फिर गरीब अनपढ़ मुस्लिम बच्चों को भेजें। अगर यह इतना अच्छा है तो इसे सभी के लिए अनिवार्य क्यों नहीं कर दिया जाता?”
एक अन्य यूजर ने लिखा, “सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अब यूपी सरकार राज्य में मदरसा बंद नहीं कर सकती। लेकिन अगर यूपी सरकार मदरसा एक्ट 2004 में बदलाव करती है तो स्थितियां बदल सकती हैं।”
इस बयान से यह संकेत मिलता है कि कुछ लोग चाहते हैं कि मदरसों के संबंध में अधिक सुधार किए जाएं।
समान शिक्षा की मांग
कुछ यूजर्स ने समान शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया। एक यूजर ने तीखे शब्दों में कहा, “आखिर कब तक धर्म के नाम पर देश को बांटा जाएगा? क्या भारत के हर नागरिक को समान शिक्षा का अधिकार नहीं है? सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक शिक्षा की अनुमति क्यों दी?”
इस प्रकार के सवालों ने यह संकेत दिया कि लोग शिक्षा के क्षेत्र में धार्मिक आधार पर विभाजन से असंतुष्ट हैं और समान शिक्षा की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं।
जहां एक ओर कुछ यूजर्स इस फैसले से असंतुष्ट नजर आए, वहीं कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समर्थन करते हुए दिखे। एक यूजर ने लिखा, “दिल गार्डन गार्डन हो गया… सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट की वैधता को बरकरार रखा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला पलट गया है।”
इस यूजर ने फैसले को “जियो और जीने दो” की भावना का परिचायक बताया।
समान शिक्षा बनाम धार्मिक शिक्षा का मुद्दा
इस फैसले ने समान शिक्षा और धार्मिक शिक्षा के बीच की बहस को फिर से तूल दे दिया है। कुछ लोगों का मानना है कि धार्मिक शिक्षा का समर्थन देश की प्रगति में बाधा बन सकता है, जबकि अन्य लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में देख रहे हैं।
Leave a Comment