‘ट्रिपल तलाक’ को सरकार के द्वारा अवैध करार देने के बाद भी कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी मानसिकता से सने लोग छोटी सी बात पर अपनी बीवियों को तीन तलाक दे देते हैं। इसका असर ये होता है कि उस मुस्लिम महिला की पूरी जिंदगी ही एक पल में बदल जाती है। कट्टरपंथी मानसिकता से सने लोग एकतरफा तीन तलाक देकर महिलाओं को प्रताड़ित करते हैं। लेकिन अब इस पर भी कोर्ट ने शिकंजा कस दिया है। एकतरफा तीन तलाक देने को लेकर मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि शौहर की तरफ से तलाक दिए जाने को अगर बीवी ठुकरा रही है तो फिर कोर्ट के जरिए दिलाया गया तलाक ही मान्य होगा।
क्या है पूरा मामला
मामला कुछ यूं है कि तमिलनाडु के एक मुस्लिम युवक की एक मुस्लिम युवती से 2010 में निकाह होता है। हालांकि, निकाह के 8 साल बाद 2018 में महिला ने शौहर के खिलाफ घरेलू हिंसा और मारपीट का केस दर्ज कराया। उसी मामले की सुनवाई मद्रास हाई कोर्ट में जस्टिस जीआर स्वामीनाथन की बेंच कर रही थी। जस्टिस स्वामीनाथन ने मामले की सुनवाई करते हुए महिला के शौहर के पक्ष में तमिलनाडु शरियत काउंसिल की ओर से जारी किए गए तलाक सर्टिफिकेट को अवैध करार दे दिया।
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दरअसल, महिला के शौहर ने तलाक का सर्टिफिकेट कोर्ट में पेश करते हुए दावा किया कि तलाक की पुष्टि उसके पिता ने की थी। हालांकि, हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तीसरे नोटिस के स्थान पर पिता की गवाही को तलाक का आधार नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शरीयत काउंसिल हो या कोई और निजी संस्था तलाक का प्रमाण पत्र जारी करने के लिए वैध नहीं हो सकती। यह अधिकार कोर्ट के ही पास है।
कोर्ट ने टिप्पणी की कि अगर बीवी और शौहर के बीच किसी भी तरह का कोई विवाद है तो महिला के पति को अदालत का रुख करना चाहिए। कोर्ट ही इस बात का फैसला करेगा कि वास्तव में तलाक हुआ है या नहीं। इसके साथ ही जस्टिस स्वामीनाथन ने महिला को प्रताड़ित करने के मामले में उसके शौहर को 5 लाख रुपए हर्जाना देने और 2500 रुपए प्रति माह का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है।
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