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केरल की साफिया ने की मुस्लिमों को उत्तराधिकार अधिनियम में शामिल करने की मांग, SC बोला-ये संसद का अधिकार

मौजूदा व्यवस्था को केंद्र में रखा जाए तो जो लोग मुस्लिम पैदा होते हैं लेकिन बाद में अपने धर्म को त्याग देते हैं या गैर-आस्तिक बनना चुनते हैं, वे तब तक खुद को शरीयत कानून से बंधे हुए पाते हैं जब तक कि वे शरीयत अधिनियम की धारा 3 के अनुसार बाहर निकलने की औपचारिक घोषणा नहीं करते।

by Kuldeep singh
Oct 25, 2024, 08:34 am IST
in भारत
Supreme court NCPCR on Madarsa
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‘कोई भी दूसरे धर्म का व्यक्ति उत्तराधिकार अधिनियम में शामिल हो सकता है, इसका फैसला लेने का अधिकार केवल देश की संसद के पास है।’ ये कहना है सुप्रीम कोर्ट का। कोर्ट ने ये टिप्पणी केरल की एक मुस्लिम महिला साफिया पीएम की याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

दरअसल, अपनी याचिका में साफिया ने शीर्ष अदालत से ये मांग की थी कि ऐसे मुसलमान जो कि अपने मजहब को छोड़ चुके हैं उनके पास भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 में शामिल होने का विकल्प होना चाहिए। साफिया पीएम, जो कि मुस्लिमों के लिए काम करने वाले एक संगठन की अध्यक्ष हैं, उन्होंने अपने वकील प्रशांत पद्मनाभन के जरिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर तर्क दिया कि ऐसे मुसलमानों के पास भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम में शामिल होने का अधिकार होना चाहिए, जो कि मुस्लिम के तौर पर पैदा जरूर हुए, लेकिन बाद में जिन्होंने अपना मजहब छोड़ दिया।

ऐसे लोगों को मुस्लिम पर्सनल लॉ की जगह इंडियन सक्सेशन एक्ट के अंतर्गत शामिल होने का विकल्प होना आवश्यक है। इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने कही। इस मौके पर केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने जोर दिया कि उत्तराधिकार के किसी भी मामले पर निर्णय लेने का अधिकार संसद के पास है।

समस्या कहां है ?

अधिवक्ता प्रशांत पद्मनाभन के मुताबिक, अपना मजहब छोड़ने के बाद भी पूर्व मुस्लिम भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925 में नहीं शामिल हो पा रहे हैं। साफिया के वकील पद्मनाभन ने सुप्रीम कोर्ट से इस न्यायिक व्यवस्था को बदलने की मांग की। इस दौरान एएसजी ने कोर्ट को बताया कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 के अंतर्गत मुस्लिमों को छोड़कर उत्तराधिकार अधिनियम के दायरे में सभी आते हैं। फिर चाहे उनका धार्मिक जुड़ा कैसा भी हो। याचिकाकर्ता धारा 58 को चुनौती देना चाहती है।

इसे भी पढ़ें: ‘आपको क्या परेशानी है? ऐसे तो याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी’ : सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर ऐक्शन के खिलाफ दायर याचिका की खारिज

क्या कहती है वर्तमान व्यवस्था

गौरतलब है कि मौजूदा व्यवस्था को केंद्र में रखा जाए तो जो लोग मुस्लिम पैदा होते हैं लेकिन बाद में अपने धर्म को त्याग देते हैं या गैर-आस्तिक बनना चुनते हैं, वे तब तक खुद को शरीयत कानून से बंधे हुए पाते हैं जब तक कि वे शरीयत अधिनियम की धारा 3 के अनुसार बाहर निकलने की औपचारिक घोषणा नहीं करते। हालांकि, उनके बाहर निकलने के बाद भी, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 58 उन्हें वसीयत उत्तराधिकार पर सामान्य कानून की प्रयोज्यता से वंचित करती है।

Topics: Indian Succession Act-1925#muslimSupreme Courtमुस्लिमसुप्रीम कोर्टमुस्लिम पर्सनल लॉMuslim Personal Lawभारतीय उत्तराधिकार अधिनियम-1925
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