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‘आपको क्या परेशानी है? ऐसे तो याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी’ : सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर ऐक्शन के खिलाफ दायर याचिका की खारिज

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SHIVAM DIXIT

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में जारी बुलडोजर ऐक्शन के खिलाफ दायर अवमानना याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की तीन जजों की बेंच ने यह याचिका यह कहते हुए खारिज की कि यह तीसरे पक्ष द्वारा दायर की गई है, जो बुलडोजर ऐक्शन से प्रभावित नहीं है। याचिका नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन द्वारा दायर की गई थी।

बेंच ने कहा, “आप तीसरा पक्ष हैं। आपको क्या परेशानी है? इस मामले में प्रभावित पक्षों को आने दीजिए। हम उनकी बात सुनेंगे। यदि हम ऐसे मामलों को सुनने लगे, तो याचिकाओं की बाढ़ आ जाएगी।”

याचिका का आधार

इस याचिका में कहा गया था कि तीनों राज्यों—उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड—में बुलडोजर ऐक्शन अब भी जारी है, जबकि अदालत का आदेश था कि किसी भी कार्रवाई से पहले अदालत की मंजूरी ली जाए। याचिका में हरिद्वार, कानपुर और जयपुर की घटनाओं का उल्लेख किया गया था और इन जिलों के डीएम को पार्टी बनाने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा बिना परमिशन के बुलडोजर से घरों पर कार्रवाई की जा रही है, जो कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है। याचिका के अनुसार, प्रशासन का दावा है कि निर्माण अवैध थे, लेकिन कोर्ट का आदेश स्पष्ट है कि किसी भी ऐसे ऐक्शन के लिए अदालत की अनुमति लेना अनिवार्य है।

अदालत का तर्क

कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका को खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता प्रभावित पक्ष नहीं है। अदालत ने कहा, “यदि प्रभावित पक्ष अदालत में आते हैं, तो हम उनकी सुनवाई करेंगे, लेकिन तीसरे पक्ष द्वारा दायर याचिकाएं स्वीकार नहीं की जा सकतीं।” इस मामले में यूपी सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि याचिका तथ्यों से परे है और सिर्फ अखबारों की खबरों पर आधारित है।

बुलडोजर ऐक्शन पर कोर्ट के पुराने आदेश

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थानों, सड़कों, फुटपाथ और जलाशयों की घेरेबंदी कर बनाए गए अतिक्रमणों पर कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन निजी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने से पहले अदालत की अनुमति आवश्यक है। याचिका में तर्क दिया गया था कि उक्त आदेश का उल्लंघन हो रहा है, लेकिन अदालत ने यह मानने से इनकार कर दिया।

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