दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधिकारियों पर कड़ी नाराजगी जताई, जब वे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के हस्ताक्षर वाली फाइल पेश करने में असमर्थ रहे। इस फाइल में निर्णय लिया गया था कि दिल्ली स्थित ऐतिहासिक मुगलकालीन जामा मस्जिद को ‘संरक्षित स्मारक’ घोषित नहीं किया जाएगा। यह मामला एक जनहित याचिका (PIL) से जुड़ा हुआ है जिसमें मस्जिद को संरक्षित इमारत घोषित करने और इसके आसपास के क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि पूर्व के आदेश के बावजूद, मस्जिद की स्थिति और इसके निवासियों से संबंधित जरूरी दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत नहीं किए गए। इसके बदले में कुछ अन्य दस्तावेज प्रस्तुत किए गए थे, जिससे अदालत ने नाराजगी व्यक्त की।
पीठ ने एएसआई के अधिकारियों को अंतिम अवसर प्रदान करते हुए आदेश दिया कि मामले में एक व्यापक हलफनामा दायर किया जाए और अगली सुनवाई पर मनमोहन सिंह के निर्णय वाली मूल फाइल प्रस्तुत की जाए। अदालत ने एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक को मामले का प्रत्यक्ष निरीक्षण करने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि एक विस्तृत और स्पष्ट हलफनामा दायर हो।
2014 में सुहैल अहमद खान और अजय गौतम द्वारा दायर इस जनहित याचिका में जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित करने और इसके आसपास के सभी अतिक्रमणों को हटाने का आग्रह किया गया है। याचिका में यह भी सवाल उठाया गया कि मस्जिद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के प्रबंधन के अधीन क्यों नहीं है, जबकि इसे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देखा जाता है।
जनहित याचिका में जामा मस्जिद के ‘शाही इमाम’ मौलाना सैयद अहमद बुखारी द्वारा इस उपाधि के इस्तेमाल और उनके बेटे को ‘नायब इमाम’ नियुक्त करने पर भी आपत्ति जताई गई है।
अदालत को केंद्र सरकार की ओर से बताया गया था कि जामा मस्जिद एक “जीवंत स्मारक” है जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा करते हैं और इसे संरक्षित स्मारक घोषित करने के लिए कुछ चुनौतियां हैं। एएसआई ने अदालत को बताया था कि 2004 में जामा मस्जिद को केंद्रीय संरक्षित स्मारक घोषित करने का मुद्दा उठाया गया था, लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शाही इमाम को आश्वासन दिया था कि इसे संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाएगा।
मनमोहन सिंह ने 20 अक्टूबर 2004 को शाही इमाम को लिखे पत्र में स्पष्ट किया था कि जामा मस्जिद को संरक्षित स्मारक घोषित नहीं किया जाएगा। एएसआई के हलफनामे में इस पत्र का जिक्र किया गया और कहा गया कि चूंकि जामा मस्जिद कोई केंद्रीय संरक्षित स्मारक नहीं है, इसलिए यह एएसआई के प्रबंधन के अंतर्गत नहीं आती है।
उच्च न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि एएसआई को सभी आवश्यक दस्तावेज अगली सुनवाई में पेश करने होंगे। इसके साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि आदेश का पालन नहीं किया गया, तो अधिकारी उच्च अधिकारियों को बुलाने पर मजबूर होंगे।
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