उत्तर प्रदेश

शब्दों का सनातनी शुद्धिकरण

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हरि मंगल

इन दिनों अखाड़ों के महंतों और संतों के मध्य एक बहुत स्वस्थ मंथन चल रहा है। मंथन यह है कि धार्मिक यात्राओं और कुंभ के समय होने वाली अनेक गतिविधियों में प्रयोग होने वाले उर्दू, अरबी या फारसी के शब्दों का चलन बंद हो। जैसे- ‘शाही सवारी’, ‘शाही स्नान’, ‘पेशवाई’ आदि। शाही अरबी का और पेशवाई फारसी का शब्द है। संत चाहते हैं कि इन शब्दों के स्थान पर हिंदी, संस्कृत और विकल्पहीनता की स्थिति में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया जाए। संतों का तर्क है कि ‘शाही सवारी’, ‘पेशवाई’, ‘शाही स्नान’ जैसे शब्द गुलामी के प्रतीक हैं। इसलिए सनातन धर्म में इनका प्रयोग नहीं होना चाहिए।

इस मंथन का श्रीगणेश महाकाल की नगरी उज्जैन में हुआ है। बता दें कि उज्जैन में प्रतिवर्ष भाद्रपद मास में महाकाल की नगर यात्रा निकलती है, जिसे ‘शाही सवारी’ कहा जाता है। अब यहां के संतों का कहना है कि सनातन धर्म के इस कार्य के लिए अरबी शब्द ‘शाही’ का प्रयोग क्यों हो? क्यों नहीं इसके स्थान पर संस्कृत या हिंदी के शब्द हों।

यह प्रकरण तब और आगे बढ़ा जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी ‘शाही’ शब्द को हटाने का समर्थन किया। उज्जैन स्थित जनसंपर्क कार्यालय ने 3 सितंबर को एक प्रेस विज्ञप्ति में ‘शाही सवारी’ के स्थान पर ‘राजसी सवारी’ लिखा। कहा गया कि मुख्यमंत्री से बात करके ही ‘शाही सवारी’ के स्थान पर ‘राजसी सवारी’ शब्द लिखा गया है, इसके बाद यह विषय पूरे देश के साधु-संतों और अखाड़ों तक पहुंच गया। अब संत समाज ऐसे शब्दों को बदलने के लिए कमर कस चुका है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी कहते हैं, ‘‘मुगल शासक ‘शाही’ और ‘पेशवाई’जैसे शब्दों का प्रयोग अपना गौरव दिखाने के लिए करते थे। इसलिए ये शब्द सनातनियोें के लिए गुलामी के प्रतीक हैं। हिंदी भाषा के शब्दों की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। संस्कृत में ‘शाही’ जैसा कोई शब्द नहीं है।’’ उनका यह बयान कुंभ मेले में प्रवेश के समय अखाड़ों द्वारा निकाली जाने वाली ‘पेशवाई’ और प्रमुख स्नान पर्वों पर अपने आराध्य देवता और ध्वज के साथ स्नान, जिसे सदियों से ‘शाही स्नान’ के नाम से जाना जाता है, के संदर्भ में है।

बता दें कि देश के चार प्रमुख तीर्थस्थलों— प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में सदियों से एक निश्चित अंतराल के बाद हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक समागम कुंभ अ‍ैर महाकुंभ का आयोजन होता आ रहा है। इस आयोजन में सनातन धर्म के सजग प्रहरी की भूमिका निभाने वाले अखाड़े मुख्य शोभा होते हैं। आयोजन स्थल पर इनका प्रवेश पूरी भव्यता, उल्लास और उमंग के साथ होता है, जिसे देखने के लिए देश और विदेश के लाखों श्रद्धालु उपस्थित होते हैं। अखाड़ों की इस प्रवेश यात्रा को ‘पेशवाई’ नाम से जाना जाता है। इसका अर्थ हरिद्वार या प्रयागराज में मां गंगा, उज्जैन में क्षिप्रा या फिर नासिक में त्र्यंबकेश्वर के समक्ष ‘प्रस्तुत’ होना माना जाता है। इसी प्रकार प्रमुख स्नान पर्वों पर सभी शैव, वैष्णव और वैरागी अखाड़ों के साधु-संत, नागा संन्यासी अपने आराध्य देवता और अपनी धर्म ध्वजा के साथ आकर्षक रथों, वाहनों पर सवार होकर स्नान के लिए जाते हैं। इनके आगे-आगे नागा संन्यासी अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते चलते हैं। परंपरा में इस राजसी अंदाज को अभी तक शाही स्नान के नाम से जाना जाता है। अब सनातन धर्म के सबसे बड़े आयोजन में जिन दो शब्दों को लेकर संत समाज और सनातनधर्मी बड़ी आपत्ति जता रहे हैं, वे हैं पेशवाई और शाही।

प्रयागराज की बड़ी उपलब्धि

2017 से उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार चल रही है। स्वतंत्रता के बाद इतिहास में यह पहला अवसर है जब प्रदेश में सनातन धर्म और संस्कृति के लिए अनुकूल वातावरण है। इस कारण प्रयागराज को अब तक कई उपलब्धियां प्राप्त हो चुकी हैं। सबसे पहले गंगा के पावन तट पर लगने वाले कुंभ मेले को व्यवस्थित रूप देने के लिए दिसंबर, 2017 में उत्तर प्रदेश प्रयागराज मेला प्राधिकरण की स्थापना हुई।

कुंभ और अर्ध कुंभ को नया नाम देते हुए कहा गया कि हिंदू दर्शन में कुछ भी अधूरा नहीं है और विश्व के सबसे बड़े हिंदू समागम में अर्ध शब्द ठीक नहीं लगता। इसलिए अब अर्धकुंभ को कुंभ और कुंभ को महाकुंभ के नाम से जाना जाता है। अक्तूबर, 2018 में तीर्थराज प्रयाग का गौरव स्थापित करते हुए इलाहाबाद के नाम को बदल कर प्रयागराज कर दिया गया। 2019 में आयोजित हुए कुंभ के लिए पहली बार ‘भव्य और दिव्य’ शब्द जोड़ा गया, जो अब आम प्रचलन में शामिल हो गया है। यूनेस्को द्वारा कुंभ को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान की गई है।

हिंदू जनमानस पर इन सबका ऐसा प्रभाव पड़ा कि 2019 के कुंभ मेले में श्रद्धालुओं की संख्या 24 करोड़ तक पहुंच गई। माना जा रहा है कि अगर साधु-संत और अखाड़ा समाज प्रयागराज महाकुंभ 2025 के पूर्व उर्दू, अरबी, फारसी शब्दों को हटाने के लिए प्रस्ताव पारित करेगा तो योगी सरकार उसे लागू करने में तनिक देर नहीं करेगी। महाकुंभ में 14 जनवरी, 2025 को मकर संक्रांति, 29 जनवरी को मौनी अमावस्या और 3 फरवरी को वसंत पंचमी के अवसर पर राजसी स्नान की तिथि निर्धारित है।

सनातन धर्म के क्रियाकलापों में उर्दू और फारसी शब्दों के हो रहे प्रयोग का उज्जैन से शुरू हुआ विरोध संत नगरी हरिद्वार पहुंच गया है। यहां अधिकांश अखाड़ों के मठ और मंदिर हैं। यहां उनके आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, मंडलेश्वर या अन्य पदाधिकरी, संत और नागा संन्यासी रहते हैं। हरिद्वार के संतों ने एक स्वर से कहा कि ‘शाही’ और ‘पेशवाई’ जैसे शब्द मुगल सल्तनत की याद दिलाते हैं। अतएव हिंदू धार्मिक संदर्भों से उर्दू और फारसी शब्दों को हटाकर उनके स्थान पर हिंदी और संस्कृत के शब्दों को प्रचलन में लाया जाए। अखाड़ा समाज अपने इस अभियान को लेकर इतना उत्सुक है कि वह इस मामले में तत्काल सार्थक कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है। ये अखाडेÞ जनवरी, 2025 में प्रयागराज में आयोजित होने वाले महाकुंभ में पेशवाई और शाही जैसे शब्दों का प्रयोग न करने को कृत संकल्पित दिख रहे हैं। अखाड़ों के इस अभियान में अखिल भारतीय संत समिति और काशी विद्वत परिषद भी साथ खड़ी है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी कुंभ स्नान के समय अखाड़ों की परंपरा में प्रयोग होने वाले शाही और पेशवाई शब्दों के स्थान पर क्रमश: ‘राजसी’ और ‘छावनी प्रवेश’ जैसे शब्द प्रयोग में लाने की बात करते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘राजसी संस्कृत का शब्द है, जो समृद्ध सनातनी परंपराओं का प्रतीक है।’’ इस प्रकरण में अखाड़ा परिषद के साथ अन्य अखाड़ों के संत भी सामने आए हैं। जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि कहते हैं, ‘‘सनातन धर्म में उर्दू, अरबी, फारसी भाषा के शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।’’ आह्वान अखाड़ा के महामंडलेश्वर अतुलेशानंद जी महाराज कहते हैं, ‘‘शाही शब्द एक इस्लामिक शब्द है। सनातन धर्म में ऐसे किसी भी शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए।’’

कहा जा रहा है कि सितंबर के अंत में या अक्तूबर में अखाड़ा परिषद की बैठक प्रयागराज में हो सकती है, जिसमें सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों के समक्ष इस प्रकरण को रखा जाएगा। शब्दों के चयन पर अंतिम मुहर लगने के बाद एक प्रस्ताव प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा उन सभी स्थानों के प्रशासनिक अधिकारियों को प्रेषित किया जाएगा, जहां पर कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन होते हैं। अभी सभी अखाड़ों के संतों से बोलचाल या बैनर, पोस्टर में उर्दू, अरबी या फारसी के प्रचलित शब्दों का प्रयोग न करने तथा उनके स्थान पर हिंदी, संस्कृत या अंग्रेजी के शब्दों के प्रयोग का अनुरोध किया जा रहा है।

उज्जैन में महाकाल की सवारी (फाइल चित्र)

उज्जैन के राजा महाकाल

ऐसी मान्यता है कि उज्जैन के राजा महाकाल हैं। इसलिए प्रतिवर्ष उनकी यात्रा निकाली जाती है, जो पूरे नगर का भ्रमण करती है। मान्यता है कि राजा अपनी प्रजा को अपनी आंखों से देखते हैं। यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी। यही कारण है कि उज्जैन में कोई राजा नहीं रहता है। विक्रमादित्य भी अपने को राजा नहीं मानते थे। मध्य प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी उज्जैन के रहने वाले हैं। वे उज्जैन में अपने को ‘राजा’ नहीं मानते।

श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने तो अपने महामंडलेश्वरों, महंतों सहित समस्त संतों को स्पष्ट रूप से कहा है कि वे बोलचाल में हिंदी, संस्कृत या अंग्रेजी भाषा के शब्दों को प्रचलन में लाएं। अखाड़ों के साथ संत समाज भी खड़ा है। श्रीराम जन्मभूमितीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के वरिष्ठ सदस्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती कहते हैं, ‘‘मुगल शासकों का एक ही उद्देश्य था भारत में इस्लाम को बढ़ावा देना। इसके लिए उन्होंने हिंदुओं के धर्म, संस्कृति एवं परंपरा को नष्ट करने का पूरा प्रयत्न किया था। वे हर चीज का इस्लामीकरण करना चाहते थे। हमारी धार्मिक परंपराओं में उर्दू, अरबी, फारसी शब्दों का प्रयोग उसी कारण से प्रचलन में आया। अंग्रेजों के समय में भी उन शब्दों का प्रचलन बना रहा, लेकिन अब ऐसे शब्दों को बदला जाना चाहिए। ऐसा करने से हिंदू समाज का गौरव बढ़ेगा।’’ अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा, ‘‘मुगलों के आक्रमण के समय ही अखाड़ों की रचना प्रारंभ हुई थी। मुगल अरबी, फारसी समझते थे इसलिए उस कालखंड में हिंदुओं के धार्मिक उत्सवों पर अरबी, फारसी की छाप पड़ी, जो मुस्लिम शासनकाल के बाद अंग्रेजों के समय भी यथावत बनी रही। इस्लामिक काल में उर्दू राजभाषा थी। अंग्रेजों के समय तक फारसी का प्रयोग होता था। लेकिन अब इन शब्दों को बदलना ही जाना चाहिए।’’ आचार्य जितेंद्रानंद सरस्वती ‘शाही स्नान’ के लिए ‘राजसी’ या ‘देवत्व स्नान’ तो जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर शैलेशानंद जी ‘अमृत स्नान’, ‘दिव्य स्नान’ जैसे नाम का सुझाव दे रहे हैं। ‘पेशवाई’ के लिए ‘कुंभ नगर प्रवेश’ का नाम सुझाया जा रहा है। संतों का कहना है कि ‘शाही’ स्नान व ‘पेशवाई’ शब्द को लेकर भाषा विज्ञानियों से भी परामर्श लिया जाएगा और उसे अखाड़ा परिषद की बैठक में रखा जाएगा जहां सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधि मिलकर अंतिम निर्णय लेंगे।

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