नई दिल्ली । हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में दिल्ली स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय मार्ग पर संस्कार भारती के संकुल भवन में पाञ्चजन्य द्वारा ‘काव्य घोष’ का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य राजस्थान की बलिदानी माताओं और बहनों को काव्यांजलि अर्पित करना था, जो सदैव से त्याग और वीरता की मिसाल रही हैं।
कार्यक्रम में कुल 13 युवा कवियों ने अपनी ओजस्वी रचनाओं से समां बांध दिया, जिसमें श्रोताओं ने कवियों की प्रस्तुति पर जोरदार तालियों के साथ सराहना की। प्रमुख कवियों में रितिक राजपूत ने ‘जौहर’, दास आरोही आनंद ने ‘सत्य सनातन सेनानियों का तर्पण’, धरमवीर ‘धरम’ ने ‘तुम सब बजरंगबली हो’, और अक्षय प्रताप सिंह ने ‘तिरंगा’ जैसी भावपूर्ण रचनाओं से अपनी आवाज बुलंद की।
कार्यक्रम की शुरुआत में माता सरस्वती और मां भारती के चरणों में पुष्पांजलि अर्पित की गई। पाञ्चजन्य के संपादक श्री हितेश शंकर ने कार्यक्रम की भूमिका प्रस्तुत की। मुख्य वक्तव्य प्रो. चंदन चौबे जी ने दिया, जिसमें उन्होंने हिंदी और सनातन संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डाला।
काव्य घोष के कवियों और उनकी रचनाएं
- रितिक राजपूत ने अपनी कविता “जौहर” से राजस्थान की वीरांगनाओं को श्रद्धांजलि दी।
- दास आरोही आनंद ने “सत्य सनातन सेनानियों का तर्पण” से वीरता का संदेश दिया।
- सूर्यप्रकाश ने शहीदों की शहादत पर आधारित रचना सुनाकर श्रोताओं को भावुक कर दिया।
- धरमवीर ‘धरम’ ने “तुम सब बजरंगबली हो” कविता से ऊर्जा का संचार किया।
- मंगलम की “विश्वविद्यालय और लला” ने हास्य और गंभीरता का सुंदर संयोजन प्रस्तुत किया।
- शानो श्रीवास्तव ने “सनातन, राम” पर आधारित रचना सुनाई।
- शिवम सिंह की “हनुमंत” ने वीरता और भक्ति का संगम प्रस्तुत किया।
- अमर पाल ‘अमर’ ने “पुत्र का अंतिम प्रणाम अपनी मां को” से भावनाओं की गहराई दिखाई।
- अक्षय प्रताप सिंह ने “तिरंगा” से देशभक्ति का उद्घोष किया।
- जितेन्द्र ‘जीत’ की “शबरी पुकार” ने राम भक्ति की अनूठी छवि प्रस्तुत की।
- रागिनी झा ‘धृति’ ने “राम जानकी छंद” के माध्यम से अद्भुत काव्य सौंदर्य का प्रदर्शन किया।
- प्रशांत गुप्ता की “सनातन” ने धर्म और संस्कृति की गूंज प्रस्तुत की।
- धर्मवीर ने “बजरंगबली” से कार्यक्रम को समापन की ओर अग्रसर किया।
इस कार्यक्रम की हर प्रस्तुति ने श्रोताओं को भारत की गौरवशाली संस्कृति से जोड़ दिया और हर रचना ने हिंदी साहित्य के प्रति सच्ची श्रद्धा अर्पित की। यह कार्यक्रम पाञ्चजन्य के मंच पर आयोजित एक महत्वपूर्ण साहित्यिक आयोजन के रूप में स्थापित हो गया, जिसमें काव्य की शक्ति के माध्यम से राष्ट्रभक्ति और बलिदान की भावना को बढ़ावा दिया गया।
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