संस्कृति

कौन हैं लाल बाग के राजा, क्यों होती है इतनी चर्चा, किसने शुरू की परंपरा, क्यों कहते हैं ‘मन्नतों के गणेश’

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Parul

गणेश उत्सव के बारे में बात हो तो लालबाग के राजा की बात आना तो स्वभाविक है। मुम्बई के सुप्रसिद्ध लाल बाग के राजा से कौन परिचित ना होगा। मुम्बई के लालबाग बाजार में लालबाग पुलिस स्टेशन के पास उनका पंडाल लगता है। हर साल पंडाल में दर्शन के लिए 5 किलोमीटर लंबी कतार लगती है। देश-विदेश से लोग उनके दर्शन को आते है। इस वर्ष भी 7 सितम्बर के दिन इसकी शुरुआत हुई और 17 सितम्बर को इसका समापन हो जायेगा। समापन के दौरान गिरगांव चौपाटी में मूर्ति का विसरजन किया जाता है।

लालबाग के राजा को ‘नवसाचा गणपति’ के नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ है मन्नत पूरी करने वाले गणपति। इस नाम की कहानी के साथ ही इनकी स्थापना की कहानी भी जुड़ी हुई है। इस परम्परा की शुरुआत महाराष्ट्र में गणेश उत्सव के बाद हुई। लोकमान्य तिलक ने ब्रिटिश सरकार से बचकर, स्वतंत्रता संग्राम के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए ‘सार्वजनिक गणेशोत्सव’ की शुरुआत 1893 में पुणे में की थी। इसके बाद 1934 में लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की स्थापना हुई थी। तंगी व कठिनाईयों से जुझ रहे मछुआरों के मंडल ने अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए एक छोटी गणेश मूर्ति की स्थापना की थी। 2 साल बाद उनकी मनोकामना पूरी हो गई। उसी के बाद से यह परंपरा चली आ रही है।

लाल बाग के राजा की पहली मूर्ति 2 फिट ऊंची थी। उसके बाद हर साल सबसे ऊंची मूर्ति लाना मानो यहाँ की परंपरा हो गई। 2001 के बाद से समाचारों में भी लालबाग चा राजा का नाम आने लगा। बड़े-बड़े नेता, अभिनेता, उद्योगपति यहाँ अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आने लगे। मान्यता है कि सच्चे दिल से माँगी हुई मन्नत लालबाग के राजा जरूर पूरी करते हैं। इस वर्ष लालबाग के राजा की थीम राम मन्दिर से प्रेरित है। इसकी सजावट प्रसिद्ध कला निर्देशक नितिन चंद्रकांत देसाई के द्वारा की गई है। इस बार मूर्ति की ऊंचाई 18-20 फीट है।

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