भारत के इतिहास में जब मुगलों वाला अध्याय आरंभ होता है तो सबसे क्रूर और हिंदुओं के प्रति सबसे अधिक अंधकार वाले कालखंड का आरंभ होता है। हालांकि उससे पहले भी दिल्ली सल्तनत काल से ही हिन्दू संघर्षरत थे। परंतु मुगल काल इसलिए क्योंकि ये लोग स्थाई रूप से ही दिल्ली, लाहौर और आगरा के बीच बस गए थे। बाबर मात्र चार वर्ष ही रुक सका और उसका बेटा हुमायूँ तो हमेशा भागदौड़ में रहा और लुढ़कते-लुढ़कते ही उसकी मौत हो गई।
अकबर के बाद उसका अय्याश बेटा जहांगीर गद्दी पर बैठा था। हालांकि अकबर के और बेटे भी थे। मुराद और दानियाल, ये दोनों जहांगीर के भाई थे। मगर दोनों की ही मौत जल्दी हो गई थी। मुराद की मौत तब हुई थी जब जहांगीर 30 वर्ष का था और वर्ष 1604 में उसके दूसरे भाई दानियाल की भी मौत हो गई थी। ये दोनों सलीम यानी जहांगीर से भी अधिक अय्याश थे।
जहांगीर गद्दी का अकेला वारिस था। फिर भी उसने अपने अब्बा अकबर से विद्रोह किया और अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल-फजल का भी कत्ल करवा दिया। उसके बाद भी अकबर ने उसे माफ किया और उसे किसी और अभियान के लिए भेजा, मगर स्वभाव से आलसी होने के कारण वह फिर नहीं गया।
जहांगीर और उसके अब्बा हुजूर की बनती नहीं थी, या कहें कि अकबर इतने लाड़ और दुलार के बाद पाए हुए बेटे को शराब में डूबा देखकर दुखी रहता था। इस कारण अकबर ने अपना ध्यान खुसरो पर लगाना आरंभ किया। खुसरो जहाँगीर के सभी बच्चों में सबसे सुंदर था और अकबर उससे प्यार भी बहुत करता था। अपने अब्बा के खिलाफ बिना किसी कारण विद्रोह का झण्डा उठाने वाले जहांगीर ने अपने बेटे खुसरो के विद्रोह का दमन बहुत ही क्रूरता से किया था। उसने अपनी आत्मकथा में यह स्वीकार किया है कि वह बहुत ही अधिक शराब पीता था।
नूरजहाँ, इम्प्रेस ऑफ मुगल इंडिया में इलिसन बैंक्स फाइंडली कई लेखकों और यात्रियों के हवाले से जहांगीर की क्रूरता की कहानी लिखते हैं। खुसरो ने वर्ष 1606 में विद्रोह किया था। मगर वह विफल हुआ। लाहौर के बाहर युद्ध हुआ था। जहांगीर ने अपने बेटे को कारागार में डाल दिया और उसके दो दोस्तों हुसैन बेग और अब्दुर रहीम को बैल और गधे की खाल में भरने का हुकूम दिया। उसने कहा कि इन दोनों को गधों पर बैठाया जाए और उनका चेहरा पुंछ की तरफ होना चाहिए और फिर उन्हें पूरे शहर में घुमाया जाए।
चूंकि बैल की खाल जल्दी सूखती है इसलिए हुसैन बेग जल्दी ही मर गया और उसके सिर को काटकर आगरा के गेट पर लटकाने के लिए भेज दिया गया। अब्दुर रहीम बच गया और उसे रिहा कर दिया गया। उसके बाद जहांगीर ने शहर में मिर्जा कामरान के बगीचे से सड़क के किनारे लकड़ी के खंभे लगे और उन पर उसके आदमियों ने उन सभी की लाशें लटकाईं, जिन्होनें खुसरो के साथ विद्रोह किया था। इतना ही नहीं उसने अपने बेटे खुसरो को हाथी पर बैठाकर ये सब दिखाया कि उसके समर्थकों के साथ क्या किया है और खुसरो उन्हें श्रद्धांजलि दे। उस हाथी पर जहांगीर भी बैठा था और साथ ही महावत खान भी था। महावत हर सिर को खुसरो को बताता जा रहा था।
जहांगीर ने इसके बाद यह तय किया कि वह उन सभी को मारेगा, जिन्होंने खुसरो का साथ दिया था। उसने सिखों के पाँचवें गुरु गुरु अर्जन देव का भी कत्ल कराया। अपनी आत्मकथा में वह लिखता है कि गोबिन्दवाल में ब्यास नदी के तट पर अर्जन नाम का हिन्दू संत भेष में रहता है। उसने भोले-भाले हिंदुओं और कुछ बेवकूफ मुस्लिमों को भी अपने जाल में फंसा रखा है। वे उसे गुरु कहते हैं और उस पर विश्वास जताते हैं। उसके बाद वह कहता है कि ”कई बार मुझे लगा कि इस बेवकूफी पर रोक लगाई जाए और उसे इस्लाम मानने वालों के बीच लाया जाए।” खुसरो जब वहाँ से होकर गुजर रहा था, तो अर्जन देव ने खुसरो से भेंट की और उन्होंने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया। गुरु अर्जन देव की हत्या खुसरो का साथ देने के कारण तात्कालिक कारण के चलते कराई गई थी, मगर इस पुस्तक से यह स्पष्ट होता है कि उसका कारण कुछ और था। खुसरो को भी सजा मिलनी आवश्यक थी। इसलिए उसे महावत खान के अनुरोध पर अंधा कर दिया गया। हालांकि जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में खुसरो के अंधे किए जाने का उल्लेख नहीं किया है, परंतु तत्कालीन लेखक और कई और इतिहासकार इस घटना की पुष्टि करते हैं। उसकी आत्मकथा में भी एक ऐसे व्यक्ति का उल्लेख है, जिसने खुसरो होने का दावा किया था और अपनी आँखों के घाव दिखाए थे।
नूरजहाँ, इम्प्रेस ऑफ मुगल इंडिया में इलिसन बैंक्स फाइंडली फादर फेरानो के 1609 के उद्धरण के हवाले से लिखते हैं कि जहांगीर अपने बेटे को लाहौर से आगरा एक हाथी की पीठ पर लाया था और वह रास्ते में उस जगह पर रुका, जहां उन दोनों के बीच युद्ध हुआ था और फिर उसकी आँखों में कुछ बूटियों का जूस डालकर उसे अंधा कर दिया।
वर्ष 1611 में फिंच दो कहानियाँ बताते हैं कि एक तो जहाँगीर खुसरो को काबुल ले गया, जहाँ पर वह युद्ध हुआ था, और फिर उसने पिघले सीसे से अपने बेटे को अंधा कर दिया और दूसरी यह कि जहाँगीर ने रूमाल से ही अपने बेटे को अंधा कर दिया। वर्ष 1613 में हॉकिंस यह कहते हैं कि खुसरो अपने अब्बा की कैद में था और उसे उसके अब्बा के इशारे पर अंधा कर दिया गया था। टेरी, वर्ष 1622 के आसपास यह कहते हैं कि 1606 के विद्रोह के बाद खुसरो को जेल में डाल दिया गया था, जहां पर उसकी आँखों में कुछ चिपका दिया गया था। हालांकि बाद में कुछ वर्ष बाद उसकी आँखों से वह चिपचिपा पदार्थ हटा दिया गया, मगर फिर भी वह खुलकर देख नहीं पाता था। कुछ कहते हैं कि उसकी आँखों में इतनी तेज कोई तार घुसेड़ा गया था, कि दर्द न सह पाने के कारण अंधा हो गया था।
खुसरो अंधा कैसे हुआ इसके विषय में एकमत नहीं हुआ जा सकता है, मगर इस विषय में लोग एकमत हैं कि उसे अंधा किया गया था।
सलीम बनकर जो जहाँगीर अपने अब्बा के खिलाफ लगातार विद्रोह का झण्डा उठाए रहा, उसने अपने ही बेटे को इतनी भयानक सजा विद्रोह की दी थी और इसी का बहाना लेकर उसने सिखों के पाँचवे गुरु अर्जन देव की भी हत्या की थी। लेकिन जहाँगीर इस सीमा तक कम्युनिस्ट लेखकों का प्रिय है कि उसकी कथित प्रेम कहानी पर “मुगले आजम” बनाई जाती है और उसकी तमाम अय्याशियों को, जिन्हें वह स्वयं स्वीकारता है, को प्यार में डूबे हुए आदमी की कहानी बता दिया जाता है। सलीम-अनारकली की वह कहानी दिखाई जाती है, जिसका उल्लेख जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में कहीं नहीं किया है। उसने लगभग अपनी हर बीवी और रखैल का उल्लेख किया है, उनसे पैदा हुए बच्चों के बारे में बताया है, मगर अनारकली नामक महिला का उल्लेख उसने अपनी आत्मकथा तूज़ुके जहांगीरी जिसका अंग्रेजी अनुवाद TUZUK-I-JAHANGlRl OR MEMOIKS OF JAHANGIR के रूप में उपलब्ध है, में कहीं भी उसका उल्लेख नहीं है, जिसके बहाने सलीम को एक महान प्रेमी बनाकर पेश किया जाता है।
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